मारुति संघर्ष का सबक : यह वर्ग संघर्ष है!

मारुति मजदूरों की लड़ाई आज भी जारी है और यह लड़ाई अपने संगठन की लड़ाई से बदलकर एक वर्ग की लड़ाई बन गयी है…

मारुति मज़दूर आंदोलन : एक नजर मे – 10 

(लगभग 2500 मज़दूर काम से निकाले गए और 148 मज़दूर जेल की कालकोठरी में डाल दिये गये, 13 मज़दूर आज भी अन्यायपूर्ण उम्रक़ैद की सजा भुगत रहे… प्रोविजनल कमेटी के राम निवास द्वारा प्रस्तुत श्रृंखला की समापन कड़ी)

अंतिम क़िस्त-

मज़दूर वर्ग में दहशत पैदा करने के लिए पूरी यूनियन बॉडी को बनाया निशाना

पूरी यूनियन बॉडी को निशाना बनाकर कम्पनी राज बताना चाहता है कि इस देश में मज़दूर आन्दोलन, यूनियन बनाने के अधिकार और दूसरे ट्रेड यूनियन अधिकारों सहित मज़दूरों के मानव अधिकारों को पूँजीपतियों और राज्य सत्ता द्वारा कुचल दिया जाएगा। यूनियन पदाधिकारियों पर सिर्फ इसलिए हमला किया गया क्योकि वे प्लांट के अन्दर प्रबंधन द्वारा मज़दूरों के शोषण के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व कर रहे थे।

पिछले किस्तों में हमने बताया था कि कैसे यूनियन 2011 से ठेका प्रथा के खात्मे की माँग, कार्यस्थल पर सम्मान और प्रबंधन के शोषणकारी अभ्यास के खात्मे की माँग करते हुए स्थायी और ठेका मज़दूरों की एकजुटता के साथ ट्रेड यूनियन अधिकारों और सम्मान के लिए लंबा निर्णायक संघर्ष छेड़ दिया था।

इसे भी देखें- https://marutisuzukiworkersunion.wordpress.com/

भाजपा की खट्टर सरकार ने हाईकोर्ट में दी चुनौती

मारुति के 117 बेगुनाह मज़दूरों की रिहाई प्रदेश की भाजपा सरकार को रास नहीं आई। जब पूरे देश से मारुति मज़दूरों की रिहाई, फर्जी मुक़दमों की वापसी, बेगुनाह बन्दी को मुआवजा देने और मज़दूरों की कार्य बहाली की माँग उठ रही थी, तब जापानी मालिकों की भक्ती में राज्य की खट्टर सरकार बेगुनाह मज़दूरों की रिहाई के खिलाफ हाईकोर्ट चली गयी।

18 मज़दूर भी 18 मार्च, 2017 को जब गुडगांव कोर्ट से बरी ही हो गये तो मानेसर प्लांट की यूनियन प्रबंधन से उनकी नियुक्ति के बारे में बात करने गई। कंपनी ने कुछ समय बाद उन्हें काम पर लेने से मना कर दिया। फिर मज़दूर हरियाणा के खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के पास गए तो सरकार ने कार्यबहाली का आश्वासन दिया, लेकिन कार्यबहाली कराने की जगह सरकार बेगुनाह बरी मज़दूरों के खिलाफ हाईकोर्ट चली गयी और उनकी बेगुनाही को चुनौती दे दी।

कांग्रेस हो या भाजपा, सभी मालिकों के ही सेवक हैं

2012 में कांग्रेस सरकार ने मारुति मज़दूरों का भरपूर दमन किया। मार्च-अप्रैल, 2013 में कैथल में हरियाणा के उद्योग मंत्री रणदीप सुरजेवाला के निर्वाचन क्षेत्र में धरने और अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे मज़दूरों को जिस तरह के दमन का शिकार होना पड़ा, जिसमें 100 मज़दूरों की आधी रात में गिरफ्तारी हुई, उसके विरोध में होने वाले प्रदर्शन को भारी पुलिस दमन का शिकार होना पड़ा, प्रोविजनल कमेटी व अन्य संगठनो के 9 नेताओं की गिरफ्तारी हुई, वह कांग्रेस सरकार के दमन की बानगी मात्र है।

भाजपा सरकार भी उसी राह पर आगे बढ़ती रही। इससे यह सिद्ध होता है की किस प्रकार से कम्पनी व सरकार मिलकर मज़दूरों के खिलाफ खडी हैं।

असल में कांग्रेस हो या भाजपा, मालिकों का हित साधने और मज़दूरों का दमन करने में सभी एक ही थैली के चट्ट्टे-बट्ट्टे हैं। पिछले 9 सालों के संघर्ष के दौरान मज़दूर इसे बेहतर ढंग से समझ सके हैं।

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समझाना होगा कि यह वर्ग संघर्ष है

अन्जाने में छिडे इस वर्ग युद्ध को मालिक तो समझ गए थे लेकिन मज़दूर न समझ सके और उनके द्वारा फैलाए जाल में फंसकर 18 जुलाई 2012 को मैनेजमेंट की साजिश का शिकार हो गए। प्रबंधन ने मज़दूर हितैशी मैनेजर अवनीश देव की बलि चढ़ाकर आरोप मज़दूरों पर लगा दिया। लगभग 2500 मज़दूर काम से निकाले गए और 148 मज़दूर जेल की कालकोठरी में डाल दिये गये।

मारुति मज़दूरों की जारी यह लड़ाई अपने संगठन की लड़ाई से बदलकर एक वर्ग की लड़ाई बन गयी है। जहाँ पूँजीपतिवर्ग खुलेआम इसे वर्गसंघर्ष कहता है। सरकारें, प्रशासन, पुलिस, श्रम विभाग सहित उसके सभी अमले और न्यायपालिका तक इसे वर्ग संघर्ष का रूप देकर आक्रामक हैं।

लड़ाई आज भी जारी है…

मारुति प्रबंधन व हरियाणा सरकार के इतने बड़े हमले के बाद आज तक भी मज़दूर संघर्षरत हैं। जहाँ 13 मज़दूर विभिन्न अपराधिक मामलों में आज भी न्याय की उम्मीद में जेल काट रहे हैं वहीं लगभग 400 मज़दूर अपने गैर कानूनी बर्खास्तगी के खिलाफ लेबर कोर्ट में अपना मुकदमा लड़ रहे हैं। मानेसर प्लांट के अंदर जो मज़दूर कार्यरत हैं वह लगातार अपने साथियों की रिहाई वह गैरकानूनी बर्खास्तगी के खिलाफ यथासंभव प्रयत्न कर रहे हैं और हर वर्ष 18 जुलाई के दिन मारुति प्रबंधन व सरकार के खिलाफ अपनी एकजुटता प्रकट करते हैं।

इसपर भी सोचना ज़रूरी है…

मारुति कम्पनी में जो मज़दूर भाई कार्यरत हैं, उन्हें यह यह भी याद रखना होगा कि प्रबन्धन जो सुविधाएं उन्हें दे रहा है वह सिर्फ संघर्ष की ही देन है। इसलिए हमें सिर्फ कम्पनी के खिलाफ संघर्ष करने से ही सफलता नहीं मिलेगी, बल्कि सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों को भी समझना होगा। जब तक हम अपने वर्ग की राजनीति में स्पष्ट समझ नहीं बनाएंगे तब तक हम इनकी गलत नीतियों का शिकार होते रहेंगे। सरकार सिर्फ और सिर्फ पूँजीपतियों की सेवा में ही लगी हुई है।

इस पूँजीवादी व्यवस्था में सरकार कोई भी हो मालिकों की सेवक होती है और हमेशा मज़दूर विरोधी रही है, इसलिए हमें अपनी राजनीतिक समझ को बढ़ाने व मज़दूर वर्ग की राजनीति स्थापित करने की आवश्यकता है। सिर्फ आर्थिक योगदान मात्र से हम अपने साथियों को जेल से बाहर नही निकलवा सकते और ना ही कम्पनी में 17 जुलाई, 2017 से पूर्व की स्थिति बहाल करा सकते हैं।

मारुति मज़दूरों ही नहीं, पूरे मज़दूर जमात के लिए यह एक सबक है कि मज़दूर वर्ग के लिए ये सिर्फ मारुति मज़दूरों की लड़ाई तक सीमित नहीं रह गयी है। यह सच है कि मारुति मज़दूरों को पूरे देश व दुनिया के मज़दूरों के एक बड़े हिस्से का समर्थन व सहयोग मिला। लेकिन इस संघर्ष को और व्यापक संघर्ष में तब्दील करना होगा। यही आज वक़्त की जरूरत है।

पहली क़िस्त-  मारुति मजदूर आंदोलन : एक नजर मे1

दूसरी क़िस्त- संघर्ष, यूनियन गठन और झंडारोहण

तीसरी क़िस्त – दमन का वह भयावह दौर

चौथी क़िस्त- दमन के बीच आगे बढ़ता रहा मारुति आंदोलन

पाँचवीं क़िस्त- रुकावटों को तोड़ व्यापक हुआ मारुति आंदोलन

छठीं क़िस्त- मारुति आंदोलन : अन्याय के ख़िलाफ़ वर्गीय एकता

सातवीं क़िस्त- मारुति कांड : जज और जेलर तक उनके…

आठवीं क़िस्त- मारुति कांड : फैसले के ख़िलाफ़ उठी आवाज़

नौवीं क़िस्त- मारुति संघर्ष : न्यायपालिका भी पूँजी के हित में खडी

समाप्त

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