मारुति आंदोलन : अन्याय के ख़िलाफ़ वर्गीय एकता

मारुति मजदूर आंदोलन : एक नजर मे – 6

(मारुति मज़दूर आंदोलन को मजबूती देने के साथ दूसरे मज़दूर आंदोलनों में भागीदारी और तालमेल से आगे बढ़ता आंदोलन… प्रोविजनल कमेटी के राम निवास की रिपोर्ट जारी…)

छठीं क़िस्त

मारुति मजदूरों को कुचलने के बहाने जिस तरीके से भारत और जापान के पूँजीपतियों ने केंद्र व राज्य सरकारों, शासन, प्रशासन, पुलिस और न्यायपालिका के साथ मिलकर एक वर्गीय हमला बोला था, उसके प्रतिकार के रूप में मारुति मजदूरों ने भी देशभर के मजदूरों को अपने आंदोलन से जोड़ने की मुहिम लगातार चलाई।

इस प्रक्रिया में देश ही नहीं दुनिया के अन्य देशों के मजदूरों ने भी मारुति मजदूरों के साथ अपनी वर्गीय एकता दिखलाई और आंदोलन को मजबूती दी।

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यह पूँजी की एकजुट ताकत के खिलाफ श्रम की एकजुट ताकत का टकराव था। जिस चुनौती को मारुति के मज़दूरों ने प्रोविजनल कमेटी के नेतृत्व में स्वीकार किया और आगे बढ़ाया। हर कदम पर – चाहें सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियां हो या मजदूरों के दमन का सवाल – मारुति के मज़दूर खड़े हुए और यह सिलसिला लगातार आगे बढ़ा और बढ़ रहा है।

मज़दूर विरोधी नीतियों के खिलाफ देशव्यापी हड़ताल में भागीदारी

मोदी सरकार बड़े पूँजीपतियों के हित में देश के मज़दूर वर्ग पर एक बड़ा आघात करते हुए मज़दूर विरोधी श्रम कानूनी सुधारों को तेज कर दिया। इन मज़दूर विरोधी हमलों के खिलाफ केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा अखिल भारतीय मज़दूर हड़ताल की संयुक्त घोषणा की गयी।

इस संदर्भ में मारुती सुजुकी वर्कर्स यूनियन (मानेसर प्लांट), मारुती सुजुकी कामगार यूनियन (गुड़गांव प्लांट), मारुती सुजुकी पॉवरट्रेन इंडिया एमप्लोयीज़ यूनियन (इंजन प्लांट) और सुजुकी मोटरसाईकिल इंडिया एमप्लोयीज़ यूनियन (बाइक प्लांट) ने ‘मारुती सुजुकी मज़दूर संघ’ के बैनर के अंतर्गत संयुक्त रूप से उत्पादन रोकने और 2 सितम्बर की हड़ताल में शामिल होने का फैसला किया। प्रबंधन को पहले से ही स्ट्राइक नोटिस दिया जा चुका था।

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मारुती यूनियनों ने गुड़गांव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल औद्योगिक क्षेत्र में सभी यूनियनों के बीच हड़ताल में शामिल होने की सर्वसहमति बनाने और इलाके में हड़ताल को सफल करने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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अन्य आंदोलनों में भागीदारी

प्रोविजनल वर्किंग कमेटी ने गुडगांव, धारूहेड़ा, मानेसर, बावल में वर्ष 2012 से अब तक हर मजदूर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। चाहे घोषी इंडिया का आंदोलन हो, मारुति मज़दूरों की रिहाई व कार्यबहाली आदि अपने संघर्ष हो या मज़दूरों पर हो रहे दमन हों। गुड़गांव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल-नीमराना-भिवाड़ी क्षेत्र के मज़दूर वर्ग के संघर्षों से, श्रीराम पिस्टन, डाईकिन, मिंडा, बैक्सटर, मुंजाल किरिऊ, पौस्को, औटोफिट, हीरो मोटोकोर्प, अस्ति, ताल्ब्रोस, औटोलिव, नपिनो ऑटो, JNS, बजाज मोटर्स, ओरिएंट क्राफ्ट, ऋचा गारमेंट्स, रीको, हीरो, सुजुकी बाइक, होन्डा टपूकड़ा का आंदोलन हो या फिर डाइकिन का बहादुराना मजदूर आंदोलन, प्रोविज़नल कमेटी ने हमेशा इन आंदोलनों से अपना करीबी रिस्ता रखा है। इसके अलावा देश भर के अन्य मजदूर आंदोलनों व आटो यूनियनों से तालमेल स्थापित करने का प्रयास भी किया और जारी रखा है।

इसी के साथ जेल में अन्यायपूर्ण तरीके से बंद 148 मजदूरों की रिहाई का संघर्ष जमीनी लड़ाई के साथ क़ानूनी रूप में भी लगातार जारी रहा। निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक ज़मानत तक नहीं मिल रहा था। स्थिति की भयंकरता को ऐसे भी समझा जा सकता है कि चंडीगढ़ हाई कोर्ट ने ज़मानत की अर्जी पर साफ कहा कि मारुति मजदूरों को ज़मानत देने से विदेशी निवेश प्रभावित होगा।

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साफ है कि मारुति मजदूरों का संघर्ष खुले रूप में एक वर्गीय संघर्ष है।

सम्बंधित पोस्ट- http://मारुति मजदूर आंदोलन : एक नजर मे-1

क्रमशः जारी…

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