उत्तराखंड : बंद होती कंपनियां, संघर्षरत मजदूर

आन्दोलन को मज़बूर हैं माइक्रोमैक्स, एमकोर, एडविक के मज़दूर

उत्तराखंड में टैक्स और सब्सिडीओं को खाकर कंपनियों का राज्य से पलायन का दौर तेज हो गया है। ऐसे में मजदूरों के संघर्ष का भी एक नया दौर शुरू हो गया है।


दूसरी ओर यूनियन बनाने पर होने वाले दमन के खिलाफ ही मजदूरों का संघर्ष में उतरना पड़ा है।


भगवती प्रोडक्ट्स (माइक्रोमैक्स)

पंतनगर औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल स्थित भगवती प्रोडक्ट्स (माइक्रोमैक्स) कंपनी ने विगत 27 दिसंबर 2018 से 303 श्रमिकों की गैरकानूनी छँटनी कर दी थी। बचे हुए श्रमिकों को ले-ऑफ दे कर बैठा दिया। कंपनी से मशीनें वह कच्चा माल राज्य से बाहर स्थानांतरित कर दी।


ऐसे में विगत साढ़े आठ माह से माइक्रोमैक्स के मजदूरों का जमीनी स्तर पर और कानूनी दोनों संघर्ष जारी है। मजदूरों का कंपनी गेट पर लगातार धरना और क्रमिक अनशन चल रहा है। जुलूस प्रदर्शन जारी है।

इस पूरे दौर में स्थानीय प्रशासन, श्रम विभाग, और राज्य सरकार पूरी तरह से मालिकों के पक्ष में खड़ी है और मजदूरों का तरह-तरह से दमन व उत्पीड़न कर रही हैं। इसके खिलाफ भी मजदूरों संघर्षरत हैं।

इस दौरान नैनीताल हाईकोर्ट ने कंपनी से मशीनों की आवाजाही पर पूरी तरह से रोक लगा दी है।

एमकोर, सितारगंज

सितारगंज औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल स्थित एमकोर फैक्ट्री के प्रबंधन ने भी विगत 29 जुलाई को कंपनी बंद कर दी और राज्य से बाहर पलायन की तैयारी में जुट गया। तब से मजदूरों का संघर्ष जारी है।

इस बीच नैनीताल हाईकोर्ट ने वहां भी मशीनों की शिफ्टिंग पर रोक लगा दी है।

एडविक हाइटेक, पंतनगर

पंतनगर स्थित एडविक हाईटेक में डेढ़ साल पहले यूनियन पंजीकृत हुई थी और तब से प्रबंधन मजदूरों का तरह-तरह से शोषण दमन कर रहा है। एक मजदूर राजू विश्वास को निलंबित करके गेट बंद कर दिया, मजदूरों की वार्षिक वेतन वृद्धि बंद कर दी।

श्रम विभाग द्वारा संघर्ष के दबाव में दो बार समझौते कराए गए, लेकिन प्रबंधन ने उन समझौतों का पालन नहीं किया और श्रम विभाग भी अपने ही समझौतों का अनुपालन नही किया। उल्टे मामले को कोर्ट भेजने की तैयारी में है।

ऐसे में पिछले 53 दिनों से कंपनी गेट पर मजदूरों का धरना चल रहा है।

आज के दौर में जिस तरीके से श्रम कानून में परिवर्तन हो रहा है और सरकारों का रुख पूरी तरीके से मजदूरों के खिलाफ बना हुआ है। ऐसे में क्षेत्र की कंपनियों में भी मजदूर उसी दमन का शिकार हैं और संघर्षरत हैं।

ऐसे में मज़दूरों की व्यापक एकता से बड़ी गोलबंदी और बड़े आंदोलन की ज़रूरत है।

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