रोम का राजा और तमाशबीन लोग

-महेंद्र नेह की लघु कथा

जिस वर्ष रोम में भीषण अकाल  पड़ा तो वहां के  राजा  ने उसकी कोई परवाह नहीं की . उसे मालूम था कि रोम की प्रजा मेले -तमाशे देखने की बहुत शौक़ीन है .अतः उसने राजधानी में राष्ट्रीय स्तर पर  विराट मेले के आयोजन की घोषणा कर दी .


मेले में अद्भुत और जीवंत  तमाशे दिखाने की विशाल स्तर पर तैयारियां की गईं. ऐसे ऐसे शो जिन्हें देख कर  दर्शक दांतों तले उंगलियाँ दबाने और झूम कर तालियाँ बजाने के लिए विवश हो जाये . शो एकदम सुपर बने और अधिक से अधिक लोग देख सकें ,इसके लिए बड़े -बड़े  प्रेक्षाग्रह और स्टेडियम बनवाये गए . देश भर से तरह तरह के खतरनाक पशु -पक्षी लाये गए . छोटे -छोटे अपराध करने पर अनगिन  लोगों को  बंदी  बना लिया गया , जिससे वे मेले  के आयोजन में काम आ सकें . 


रोमवासियों में तमाशा देखने की इतनी दीवानगी थी कि वे पूरे परिवार ,ढोर -डांगरों को लेकर घर से निकल पड़े . वैसे भी घर में खाने को कुछ न बचा था अतः तमाशा देखने के मजे से वंचित क्यों रहा जाये ? बहुत से लोग रोम पहुँचने से पहले ही रास्ते में मर गए . जो पहुँच गए उन्होंने पाया कि सभी स्टेडियम फुल हो चुके हैं .लालसा इतनी तेज थी कि लोगों ने जंगली पशुओं के बाड़ों में घुस कर अन्दर पहुँचना तय किया .आधे जंगली पशुओं के भोजन बन गए , शेष को बंदी बना लिया गया 


खेल -तमाशे अद्भुत और रोमांचक थे . मसलन -35 प्रतियोगी रथों को एक ऐसे संकरे मार्ग से दौड़ते हुए गुजरना था ,जिसमें केवल एक विजेता को बचना और बाकी सब को टूट -टूट कर बिखर जाना था .दर्शक विभोर थे . एक अन्य जिसमें बंदी महिलाओं को खम्भों से बाँध दिया गया .तीतर-बटेर उनकी आँखों पर , अंगों पर चौंच मार कर घायल कर रहे थे , दर्शक तालियाँ बजा रहे थे . एक खेल , जिसमें एक नाव में पचास  बंदी बैठा कर किनारे से कुछ दूर ले जाया गया ,फिर नाव में छेद कर दिया गया .बंदी तैर कर किनारे की और दौड़े तो सिपाहियों ने बरछे दिखा कर उन्हें वापस धकेल दिया . बंदी डूब रहे थे -मर रहे थे .लेकिन रोम का राजा, मंत्री , सभासद और तमाशबीन दर्शक इस बात का लुत्फ़ उठा रहे थे  , कि वे  रोमांचित हो सकें  कि आदमी जब पानी में डूबता तो  कैसी -कैसी अजीब हरकतें करता है .सभी खेलों में जो अंतिम आदमी बचता था तो उसे ओलम्पिक विजेता की तरह  कीमती पुरस्कार और राष्ट्रीय विजेता का मैडल दिया जाता था. 


इस तरह के अनेक तमाशे उस भव्य मेले उस राष्ट्रीय आयोजन में हुए . अकाल से जूझते हुए लाखों लोग मरते रहे ,बंदी बनाये जाते रहे  , इसकी परवाह न तो राजा को थी न प्रजा को .राजा , मंत्री ,सभासद और मेले के  तमाशबीन लोग प्रसन्न थे , इतने भव्य मेले के आयोजन के लिए राजा की जय बोल रहे थे और  तालियाँ बजाये जा रहे थे. 


# महेंद्र नेह

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