मज़दूरों की अजीब दास्तां है ये…

मज़दूर नेताओं को धमका रही उत्तराखंड पुलिस, माइक्रोमैक्स, वोल्टास, एडविक, एमकोर, सत्यम ऑटो, इंट्रार्क, आईटीसी… में मज़दूरों के दमन-उत्तपीड़न की बानगी…

पुलिस का काम मज़दूरों को धमकाना और मालिकों की मुखबिरी

28 सितंबर को शहीदे आजम भगत सिंह के जन्मदिवस पर उत्तराखंड के औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल, पंतनगर स्थित भगवती प्रोडक्ट्स (माइक्रोमैक्स) के धरना स्थल पर श्रमिक संयुक्त मोर्चा के नेतृत्व में कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम के पहले अभी मजदूर एकत्रित हो रहे थे, कि पुलिस की गाड़ी पहुँच गई। पुलिस ने पहले यह पूछा कि क्या हो रहा है? भगत सिंह का नाम सुनने के बाद उसने मोर्चे के अध्यक्ष  और महासचिव को धमकियां दीं और कहा कि तुम्हारे ऊपर मुकदमे दर्ज हैं, जेल में डाल दूंगा। 

मजदूर एकत्रित होने लगे तो पुलिस ने इससे आगे तो कार्रवाई नहीं की, लेकिन उसके बाद  पुलिस के एक सिपाही ने कौन-कौन लोग आए हैं, किसके नेतृत्व में हो रहा है, इसकी एक सूची बनाई और उस सूची को माइक्रोमैक्स कंपनी के गार्ड को सुपुर्द कर दिया। मजदूरों ने जब यह जानना चाहा कि ऐसा क्यों किया तो पुलिस ने कहा कि कंपनी ने माँगा है।

साफ है कि पुलिस मालिकों की मुखबिरी भी कर रही है।

यह तो महज एक बानगी है स्थिति  और भी विकट है

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एक साल पुराना था फर्जी मुक़दमा

यहाँ यह जान लेना जरूरी है कि एक साल पूर्व  इंट्रार्क कंपनी के एक आंदोलन के दौरान पुलिस ने श्रमिक संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष दिनेश तिवारी व इंट्रार्क यूनियन के नेताओं और मजदूरों सहित  कई यूनियनों व संगठनों के नेताओं पर फर्जी मुकदमा ठोक दिए थे। उस दौरान  कुछ मजदूर नेता गिरफ्तार भी किए गए थे।

इसी तरह महिंद्रा सीआईई के 6 मज़दूरों को डेढ़ साल पहले के आंदोलन के दौरान हुए फर्जी मुक़दमें में पुलिस ने सक्रियता दिखाई और 3 मज़दूरों को जेल जाना पड़ा। अभी वहाँ 7 और मज़दूरों को उसी दौर के एक दूसरे फर्जी मुक़दमें में तलवार लटकी हुई है।

उत्तराखंड की कंपनियों में बढ़ते दमन की कुछ ताजा बानगी 

उत्तराखंड में मजदूरों के शोषण, उत्पीड़न, दमन की रोज नई नई कहानियां दर्ज हो रही है, चाहे माइक्रोमैक्स हो, एमकोर हो, एडविक, वोल्टास इंट्रार्क या फिर सत्य ऑटो या आईटीसी हो।

भगवती प्रोडक्ट (माइक्रोमैक्स) डीएम ने कहा मज़दूर ही फसादी

माइक्रोमैक्स में 27 दिसंबर 2018 से 303 मजदूर गैरकानूनी छँटनी के शिकार हैं। वहाँ छँटनी से ठीक पूर्व जब माइक्रोमैक्स के मजदूर कुमाऊँ कमिश्नर की एक लोक अदालत में जिलाधिकारी से मिलने गए, तो जिलाधिकारी महोदय ने फरमाया था कि मजदूरों की नेतागिरी बढ़ गई है और इसीलिए कंपनियां यहाँ से भाग रही हैं। हालात यह थे कि उसके बाद कंपनी ने खुलेआम गैरकानूनी छँटनी की, कंपनी की सारी मशीनें राज्य से बाहर भेज दी और श्रम विभाग से लेकर प्रशासन सभी उसकी मदद करते रहे।

इसके ठीक उलट पुलिस ने मजदूरों पर मुकदमें ठोंक दिए। हद तो यह हो गई जिला प्रशासन ने लोकसभा चुनाव के दौरान माइक्रोमैक्स और इंट्रार्क के कुछ मजदूर नेताओं के नाम नोटिस भेजा, जिसमें चुनाव के दौरान इन मजदूरों से भारी बवाल का अंदेशा जताया गया और उन्हें पाबंद कर दिया।

एमकोर फ्लेक्सबल में बंदी

एमकोर फैक्ट्री के मालिकों ने 29 जुलाई को अचानक कंपनी बंद कर दी और मजदूर एक झटके में बेरोजगार हो गए। श्रम विभाग और प्रशासन ने न केवल इस पूरे प्रकरण से अपने को अलग करने की कोशिश की उल्टे मालिकों को सहयोग करते रहे।

वोल्टास में अवैध गेटबन्दी

सिडकुल, पंतनगर में ही स्थित वोल्टास लिमिटेड में माँग पत्र करीब 22 महीने से विवादित है। इस दौरान प्रबंधन द्वारा लगातार मजदूरों की सुविधाओं और वेतन में गैरकानूनी कटौतियां की जाती रही। तमाम शिकायतों के बावजूद श्रम विभाग इन सब को अनसुना करता रहा, माँग पत्र को कोर्ट के लिए संदर्भित कर दिया। काफी दबाव के बाद उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 6-ई के तहत प्रबंधन को वार्ता के दौरान उल्लंघन की नोटिस जारी किया।

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प्रबंधन ने इसके ठीक विपरीत 8 मजदूरों का गैरकानूनी रूप से गेट बंद कर दिया। इस प्रकरण पर मजदूरों ने जब सहायक श्रम आयुक्त से मुलाकात की और जानना चाहा तो वे भरमाने की कोशिश करते रहे। यहाँ तक कि यूनियन अध्यक्ष व महामंत्री भी बाहर हैं, जो कि संरक्षित कर्मकार भी हैं। इस मुद्दे पर भी कार्रवाई करने की जगह एएलसी ने टाल दिया। 

यूनियन ने एएलसी को यह भी बताया कि मजदूरों की गेट बंदी से पूर्व कंपनी के एचआर मैनेजर और श्रम प्रवर्तन अधिकारी के बीच सलाह परामर्श हुआ और उन्होंने ही गेट बंदी का रास्ता बताया। उस समय दूसरी कंपनियों के मजदूर खड़े थे जिन्होंने उन बातों को सुना और वे गवाह हैं। लेकिन इस बात को भी सहायक सहायक श्रम आयुक्त गोलमाल कर गए।

एडविक में अपने ही कराए समझौते से पलटे श्रम अधिकार

यूनियन बनने के बाद से ही एडविक हाइटेक, पंतनगर में दमन का सिलसिला चल रहा है। एक मजदूर का गेट बंद हुआ। आंदोलन के दबाव में 2 बार सहायक श्रम आयुक्त समझौता करा चुके हैं, जिसकी प्रबंधन ने खुलेआम धज्जियां उड़ा दी और श्रम विभाग कहता है क्या करें?

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सत्यम ऑटो के मज़दूरों का पुलिसिया उत्पीड़न 

सत्यम ऑटो, सिडकुल, हरिद्वार के प्रबंधन ने 2017 में 300 मजदूरों को एकमुश्त गैरकानूनी रूप से बाहर कर दिया। मामला यह था कि सत्यम ऑटो के इन मजदूरों ने प्रबन्धन की मनमर्जी वाले समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया था। 

पिछले 27 सितंबर को मुख्यमंत्री ने हरिद्वार में उद्योगपतियों के साथ सम्मिट रखा था। उसमें सत्यम ऑटो के मजदूर ज्ञापन देने जा रहे थे, उससे पहले ही तीन मजदूरों को पुलिस ने जबरिया उठाकर चौकी में बंद रखा और बाकी मजदूरों को तीतर-बितर कर दिया।

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हरिद्वार की ही आईटीसी कंपनी के मजदूर अपने वेतन समझौते के लिए लंबा संघर्ष करते रहे। उसके एवज में उन्हें भी मिला दमन और प्रबंधन की मनमानी शर्तों पर समझौता करने की मज़बूरी।

ये चंद घटनाएँ बयां कर रही हैं कि श्रम विभाग, प्रशासन, पुलिस से लेकर मुख्यमंत्री तक किस प्रकार मज़दूरों को कुचलने में खुलेआम मालिकों के पक्ष में खड़े हैं।

मेहनत करने वाले मज़दूर अपराधी और मज़दूरों की हत्या तक करने वाले मुनाफाखोर बेदाग!

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