सुप्रीम कोर्ट से भी एलजीबी यूनियन अध्यक्ष की जीत

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बर्खास्तगी गैरक़ानूनी होने के खि़लाफ एलजीबी प्रबन्धन की एसएलपी सर्वोच्च अदालत ने किया ख़ारिज
नई दिल्ली। एलजीबी वर्कर्स यूनियन ऊधम सिंह नगर (उत्तराखण्ड) के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह की कार्यबहाली के आदेश के खि़लाफ एलजीबी प्रबन्धन द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर एसएलपी ख़ारिज हो गयी। इस महत्वपूर्ण जीत से मजदूरों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई।
इससे पूर्व बर्खास्तगी को गलत ठहराने के श्रम न्यायालय के आदेश को बरकार रखते हुए नैनीताल उच्च न्यायालय ने प्रबन्धन की रिट याचिका को खारिज़ कर दिया था, जिसके खि़लाफ प्रबन्धन ने सर्वोच्च अदालत में अपील की थी। 25 अक्टूबर को हुई सुनवाई में श्रमिक पक्ष की ओर से अधिवक्ता श्री राजेश त्यागी ने जबर्दस्त पैरवी की और मजदूरों को जीत हासिल हुई।
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यूनियन बनाने पर किया था बर्खास्त
सन 2012 में एलजी बालाकृष्नन एण्ड ब्रास लिमिटेड, पंतनगर में यूनियन बनने के बाद एलजीबी वर्कर्स यूनियन के तत्कालीन महामंत्री व वर्तमान अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह को प्रबन्धन ने ग़ैरक़ानूनी रूप से बर्खास्त कर दिया था। मज़दूरों ने एकता के साथ कंपनी के भीतर और श्रम न्यायालय में संघर्ष जारी रखा।
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श्रम न्यायालय ने बख़ास्तगी को अनुचित श्रम व्यवहार ठहराया था
सन 2015 में श्रम न्यायालय, काशीपुर से वीरेंद्र की जीत हुई थी। श्रम न्यायालय ने इसे स्पष्ट रूप से अनुचित श्रम अभ्यास बताते हुए बख़ार्स्तगी को गलत ठहराया था। तब प्रबन्धन ने दलील दी थी कि विरेन्द्र ट्रेनी था और उसकी ट्रेनिंग समाप्त कर दी गई। लेकिन कोर्ट ने श्रमिक पक्ष की इस दलील को माना था कि एक साल की ट्रेनिंग समाप्त करके वह 7 माह से स्थाई कर्मकार के रूप में कार्य कर रहा था। स्थाई की सभी सुविधाएं भी उसे मिल रही थीं, लेकिन नियुक्ति पत्र नहीं मिला था और यूनियन बनाने के कारण निकाला गया है।
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उच्च न्यायालय ने भी श्रम न्यायालय के आदेश रखा बरकरार
श्रम न्यायालय से मिली जीत के बाद काफी संघर्ष के पश्चात प्रबंधन 2015 में उनकी कार्यबहाली करने को बाध्य हुआ था, लेकिन कंपनी ने उच्च न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दे दी थी। उच्च न्यायालय के अधिवक्ता योगेश पचौलिया की शानदार पैरवी के बाद न्यायालय ने प्रबन्धन की दलीलें खारिज़ कर दी थीं और श्रम न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा।
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प्रबन्धन विरेन्द्र को स्टाफ में आने और बेहतर वेतन की पेशकश करता रहा
2015 में हुई कार्यबहाली के बाद से ही प्रबन्धन द्वारा विरेन्द्र का उत्तपीड़न जारी रहा। कम्पनी उसको ट्रेनी बताकर बेहद कम वेतन, अवकाश व बोनस देती रही। प्रबंधन बार-बार उन्हें स्टाफ में आने और बेहतर वेतन देने की पेशकश भी करता रहा। लेकिन विरेन्द्र उसे ठुकराता रहा और संघर्ष जारी रखा। अभी भी उसे अन्य श्रमिकों के समान वेतन, बोनस, अवकाश व अन्य सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। लेकिन विरेन्द्र सिंह इन सभी उत्तपीड़नों को सहते हुए लगातार संघर्षरत है और पूरी यूनियन इसमें साथ खड़ी है।
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मज़दूर लगातार हैं शोषण के शिकार
2012 में आन्दोलन की पराजय के बाद से ही प्रबंधन मजदूरों का दमन-शोषण करता रहा है। मज़दूरों का तबसे संघर्ष जारी है। मज़दूरों पर लगातार दबाव बनाने के लिए यूनियन के जनवरी 2017 में माँगपत्र पर पौने तीन साल से प्रबन्धन ने समझौता नहीं किया और वह श्रम न्यायालय में विचाराधीन है। प्रबन्धन दर्जनों मज़दूरों को आरोप पत्र देकर, अवकाश, गेटपास आदि रोककर लगातार परेशान करता रहा है, लेकिन मज़दूर इन सबको सहते हुए भी एकजुट हैं और मोर्चे पर डटे हुए हैं।
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जीत से मज़दूरों में खुशी की लहर
इस जीत से मज़दूरों में खुशी की लहर दौड़ गई। एलजीबी वर्कर्स यूनियन ने इसे मज़दूरों के एकजुट संघर्ष की जीत बताया है और उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता श्री राजेश त्यागी तथा संघर्ष के सभी सहयोगियों को धन्यवाद दिया है!
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इस संघर्ष के सहयोगी मज़दूर सहयोग केन्द्र ने जीत के लिए विरेन्द्र सिंह सहित एलजीबी वर्कर्स यूनियन के सभी साथियों को बधाई दी है।
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