श्रम संहिताएं : मज़दूरों को बनायेंगी बंधुआ

प्रचंड बहुमत – प्रचंड हमला – 1
मज़दूरों के विरोधों के बीच मोदी-2 सरकार ने वेज कोड बिल और व्यावसायिक सुरक्षा बिल लोक सभा से पारित कर दिया।
यह मेहनतकश आवाम के लिए ख़तरनाक़ क्यों है, इसे हम किस्तों में धारावाहिक दो रहे हैं।
श्रम संहिताएं यानी ‘हायर एण्ड फॉयर’
अपने पहले कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी ने ख़ुद को ‘मज़दूर नम्बर वन’ बताया और ‘श्रमेव जयते’ जैसा जुमले की आड़ में मज़दूरों के रहे-सहे अधिकारों पर डाका डालने का काम बदस्तूर जारी रहा। मोदी-1 सरकार ने पूँजीपतियों को किये गये वायदों के अनुसार तमाम मज़दूर विरोधी क़दम उठाए। इनमें सबसे प्रमुख हैं लंबे संघर्षों के दौरान हासिल श्रम कानूनों को मालिकों के हित में बदलना। इसके मूल में है- ‘हायर एण्ड फॉयर’ यानी देशी-विदेशी कंपनियों को रखने-निकालने की खुली छूट के साथ बेहद सस्ते दाम पर मजदूर उपलब्ध कराना। स्थाई प्रकृति के रोजगार को समाप्त करके फिक्स्ड टर्म करना, कौशल विकास के बहाने फोक़ट के मज़दूर नीम ट्रेनी भरती करना, पिछले दरवाजे से मालिकों के लाभ के लिए नये-नये रास्ते बनाना आदि।
इस पूरे उपक्रम का महत्वपूर्ण पहलू है केन्द्र सरकार द्वारा मौजूदा 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को खत्म करके 4 संहिताओं में बदलना। ये संहिताएं हैं- मजदूरी पर श्रम संहिता, औद्योगिक संबंधें पर श्रम संहिता, सामाजिक सुरक्षा व कल्याण श्रम संहिता तथा व्यवसायिक सुरक्षा एवं कार्यदशाओं की श्रम संहिता।
द्वितीय श्रम आयोग से श्रम संहिता तक
ये संहिताएं बाजपेयी की भाजपा नीत सरकार के दौरान प्रस्तुत दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) की ख़तरनाक़ सिफ़ारिशों पर आधरित हैं। लेकिन उस समय व्यापक विरोध के कारण यह क़ानून का रूप नहीं ले सका, लेकिन धीरे-धीरे उसके आधार पर क़ानून बदलते रहे।
प्रचंड बहुमत से लौटी मोदी-2 सरकार के हौसले और बुलन्द हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजे आते ही भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने श्रम क़ानूनों में फेरबदल की बात उछाली, तो नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने शपथ ग्रहण से पहले ही देशी-विदेशी पूँजीपतियों को श्रम सुधारों सहित तमाम आर्थिक सुधारों की गति तेज़ करने का भरोसा दिया। राजसिंहासन संभालते ही एनडीए सरकार ने मेहनतकश वर्ग पर आक्रामक हमले के साथ मालिकों के हित में विकास के घोडे़ को सरपट दौड़ा दिया है। सरकार ने 4 श्रम संहिताओं को वर्तमान बजट का हिस्सा बनाया। पिछले 23 व 30 जुलाई को 2 संहिताओं – मज़दूरी पर श्रम संहिता-2019 तथा व्यवसायिक सुरक्षा एवं कार्यदशाओं की श्रम संहिता-2019 लोक सभा में परित करके अपने प्रचंड बहुमत का करिश्मा भी दिखा दिया।
इन संहिताओं से निजी कंपनियों के साथ रेलवे, खानों, तेल क्षेत्र, प्रमुख बंदरगाहों, हवाई परिवहन सेवा, दूरसंचार, बैंकिंग और बीमा कंपनी, निगम व प्राधिकरण, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम या सहायक कंपनियां, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित सभी प्रकार के नौकरी पेशा व श्रमजीवी पत्रकार प्रभावित होंगे।
उल्लेखनीय है कि गए 5 सालों में जैसे-जैसे देश व्यापार करने की सुगमता सूचकांक (इज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस इंडेक्स) में बढ़ा है वैसे ही बेरोज़गारी भी पिछले 45 सालों के अपने चरम पर पहुँची है।
विधेयक के अनुसार ‘प्रवर्तन में प्रौद्योगिकी का उपयोग’ क़ानूनों के उलझाव में घटोत्तरी करेगा। असल में प्रौद्योगिकी का यह इस्तेमाल निरीक्षण प्रणाली को पूरी तरह से नष्ट करने पर केन्द्रित है। निरीक्षण किसी की सूचना या शिकायत दर्ज कराने पर नहीं वरन कंप्यूटर द्वारा चयनित कार्यस्थलों पर करके औपचारिकता पूरी होगी।
मालिकों को निरीक्षण होने की सूचना भी पहले से मिल जाएगी। साथ ही मालिकों पर निरीक्षण में मदद करने या साथ देने की भी बाध्यता ख़त्म कर दी गयी है। विधेयक के अंतर्गत नव-नियुक्त ‘निरीक्षक/फैसीलेटर’ का काम है मालिकों को श्रम कानूनों का अनुपालन करने में सहायता प्रदान करना, इनके पास मालिकों द्वारा श्रम कानूनों की अवमानना को माफ़ करने के भी अधिकार होंगे। मौजूदा विधेयक में मालिकों को आपराधिक मामलों तक में जेल जाने के सारे प्रावधान ख़त्म हो गये। साथ ही वे सारे प्रावधान भी ख़त्म कर दिए हैं जिन से मालिकों पर अंकुश लगता था।
सरलता के नाम पर जटिलता यह कि संहिताओं के तहत एक नया प्राधिकरण गठित होगा, जो समझौते की प्रक्रिया और न्यायालय के बीच खड़ी की जाएगी। इस नए प्राधिकरण के परिणामस्वरूप मज़दूरों को न्याय मिलना लगभग असंभव होगा।
लोक सभा से पारित दोनों ही विधेयकों में साफ़ तौर पर ठेकेदारों की जिम्मेदारी को अंतिम बताया गया है। यह एक बड़ा बदलाव है। इससे मूल नियोक्ता को मज़दूरी या बोनस के संदान की अपनी जिम्मेदारी से बच निकलने का मौका मिल जायेगा, यहाँ तक कि कार्यस्थल पर दुर्घटना या मृत्यु होने पर भी ठेका मज़दूरों के प्रति उसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनेगी, न ही कोई अपराधिक मामला चलाया जा सकेगा।
ठेके पर दिए जाने वाले काम के लिए एक समान संयुक्त लाइसेंस लाने की भी बात है, जिससे स्थई व अस्थाई (पेरेनिअल व नॉन-पेरेनिअल) काम का अंतर गड्ड-मड्ड हो जायेगा। यह ठेका मज़दूरी अधिनियम पर सीधा वार है। मालिक मनमाने तरीके से कोई भी काम अस्थायी व ठेका श्रमिक से करवा सकेगा।
वेतन व बोनस में कटौती का अधिकार
इसका असर देश के हर मज़दूर पर पड़ेगा, मुनाफा न होने के कथित कारणों से घाटे के नाम पर कंपनियां न सिर्फ मज़दूरों के बोनस की चोरी करेंगी, वरन उन्हें न्यूनतम मज़दूरी की दर भी कमतर रखने का रास्ता मिल जायेगा।
उदाहरण सामने है- मोदी सरकार ने राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन दर 178 प्रतिदिन किया।
मोदी-1 के 5 सालों में सरकार ने त्रिपक्षीय प्रणाली को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है और भारतीय श्रम सम्मेलन को नेस्तोनाबूद। आम चुनावों के बाद भाजपा सांसदों का संबोधन करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि सरकार का ध्येय अब ‘जीवन को आसान बनाना’ (इज़ ऑफ़ लिविंग) होना चाहिए। न्यूनतम वेतन की बढ़ोत्तरी मजदूरों का पेट काट कर मुट्ठीभर अमीरजादों के जीवन को आसान बनाएगा।
क्रमशः जारी…
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