वेतन श्रम संहिता में चालाकी क्या है?

वेतन संहिता-2019 की विभिन्न धाराओं के आलोक में देखते हैं-
वेतन के लिए मौजूदा 4 श्रम क़ानूनों – न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, मजदूरी संदाय अधिनियम, बोनस संदाय अधिनियम और समान पारिश्रमिक अधिनियम व श्रम बोडों को ख़त्म करके बने वेतन श्रम संहिता-2019 द्वारा बड़े ही चालाकी से मज़दूरों के अधिकारों में कटौती की गयी है। देखने की बात यह है कि तमाम धाराओं में बहुत सी पुरानी बातों को बरकरार रखने के साथ कुछ ऐसे शब्द जोड़ दिये गये हैं, जिससे पूर्ववर्ती बातों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। यही इस संहिता की सबसे बड़ी चालाकी है। आइए, इसके कुछ खतरनाक पहलुओं को देखें-
न्यूनतम वेतन की गणना कैसे की जाएगी?
नई पारित संहिता के अनुसार, न्यूनतम मज़दूरी की गणना और उस पर फैसला केंद्र या राज्य सरकारों (उपयुक्त सरकार) द्वारा किया जाएगा, जो कि कुछ कारकों पर विचार करेगी जैसे-
धारा 6 (6) में लिखा है- मज़दूरी की न्यूनतम दर निर्धारण हेतु उपयुक्त सरकार –
(ए) अकुशल, कुशल, अर्ध-कुशल और अति-कुशल या भौगोलिक क्षेत्र या दोनों श्रेणियों के तहत काम करने के लिए श्रमिकों के आवश्यक कौशल को ध्यान में रखेगी; तथा
(बी) मज़दूरी की न्यूनतम दर तय करते वक्त उनके काम की कठोर स्थिति, तापमान या नमी, ख़तरनाक व्यवसायों या प्रक्रियाओं को सहन करना या भूमिगत कार्य जो कि सरकार द्वारा निर्धारित किया जा सकता है को ध्यान में रखा जाएगा; तथा
(सी) मज़दूरी की न्यूनतम दर के ऐसे निर्धारण के मानदंड इस प्रकार निर्धारित किए जाएंगे।
गौर करें- वेतन तय करने का प्राथमिक कारक ‘कौशल’ या ‘भौगोलिक’ क्षेत्र हैं – और खंड (ए) कहता है ध्यान में ‘रखेगी’। इन दोनों कारकों पर विचार करना अनिवार्य है। खंड (बी) में, लिखा है कि सरकार ”अनिवार्य नहीं“ ख़तरनाक या भूमिगत काम की गंभीरता है को तय ‘कर’ सकती है। जबकि खंड (सी) में, लिखा है कि मज़दूरी तय करने के मानदंड ‘निर्धारित’ किए जा सकते हैं। यानी सरकार की भूमिका अस्पष्ट है।
कुल मिलाकर, वेतन निर्धरण की तीन ज़रूरी विशेषताओं को इस संहिता के माध्यम से पलट दिया गया है। ये हैं : न्यूनतम मज़दूरी की गणना कैसे की जाएगी, कार्य दिवस क्या होगा और वे कौन से तरीक़े होंगे जिनसे क़ानून को इन पर लागू किया जाएगा। ये सारे परिवर्तन वेतन संबंधित श्रम क़ानूनों की सुरक्षात्मक प्रकृति को प्रभावी ढंग से नष्ट करने में सक्षम हैं।
नई परिभाषा यह कि न्यूनतम मज़दूरी मुख्यतः मज़दूर के कौशल पर आधारित होगी!
आगे देखिए-
धारा 42 – सरकार एक ‘सलाहकार बोर्ड’ बनाएगी जो पारिश्रमिक तय करेगा। यानी केंद्रीय/राज्य वेतन आयोग या वेतन पुनरीक्षण आदि ख़त्म।
वेतन तय करने के ज़रूरी व मान्य प्रावधान खत्म
इस नए प्रावधान के ज़रिये, मोदी सरकार ने न्यूनतम मज़दूरी तय करने के उस सिद्धांत को ही पलट दिया है, जो एक श्रमिक और उसके परिवार को जीवित रहने की आवश्यकता है। (न्यूनतम मज़दूरी केवल जीवित रहने के लिए है, जबकि उचित मज़दूरी निर्वाह मज़दूरी और उससे आगे न्यायपूर्ण मज़दूरी है)। 1957 में 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन ने न्यूनतम मज़दूरी की गणना का तरीका निर्धरित किया था। 1992 में, सुप्रीम कोर्ट ने गणना के इस तरीके की पुष्टि करते हुए इसे और व्यवहारिक किया था। सातवें वेतन आयोग में इसी को आधार बनाकर केन्द्रीय कर्मियों के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित हुआ था। 2016 के 46 वें आईएलसी सम्मेलन में इसकी पुष्टि की गई थी जिसका उद्घाटन खुद मोदी ने किया था।
मनमाने काम के घण्टे
धारा 6 (4), धारा 16 व धारा 17 – के मुताबिक़, अब पारिश्रमिक – घंटे के हिसाब से, या दिन, साप्ताहिक, पखवारा, या महीने के हिसाब से तय किया जा सकता हैं। जो, काम के लिए मज़दूरी की न्यूनतम दर; या टुकड़े के काम के लिए मज़दूरी की एक न्यूनतम दर; के हिसाब से दिया जाएगा।
धारा 13 – सप्ताह 6 दिन का होगा। सरकार की अनुमति से तकनीकी या आपातकालीन स्थिति में काम के घंटे बढ़ाये जा सकते हैं।
संहिता के अनुसार प्रत्येक दिन में काम की अवधि इतनी तय की जाएगी कि वह तय घंटों से आगे न बढ़े, इस तरह की अवधि के भीतर, ऐसी अवधि में ऐसे अंतराल के साथ, उचित सरकार द्वारा अधिसूचित किया जा सकता है।
इस गड़बड़झाला को देखें- आठ घंटे कार्य दिवस की मौजूदा सीमा को गोलमाल रखकर काम के घंटे तय करने के लिए इसे सरकार पर छोड़ दिया। इस प्रकार सामान्य कार्य दिवस में बिना डबल ओवरटाइम दर का भुगतान किए अधिक घंटे काम करने का रास्ता बना दिया।
यही नहीं, अब नौकरी घंटों या दिन के हिसाब से भी दी जा सकेगी, महीने के हिसाब से पगार की कोई बाध्यता नहीं रह जाएगी।
बाल श्रम को मान्यता
धारा 19 (5) – 15 साल से कम आयु के कर्मचारी पर ज़ुर्माना नहीं लगा सकते -यानी 15 वर्ष से नीचे की आयु के बच्चों को भी काम पर रखा जा सकेगा (बाल श्रम को काम में लगाने के प्रावधान दूसरी संहिताओं में और स्पष्ट है)।
निकालने का रास्ता सुगम
धारा 17 (2) – निष्कासन, बार्खास्तगी, छँटनी अथवा त्यागपत्र की स्थिति में दो कार्यदिवस में अर्जित वेतन का भुगतान करना। यानी 2 दिन की नोटिस देकर काम से निकाला जा सकेगा।
नियोक्ता पर आपराधिक वाद नहीं
-धारा-20 हड़ताल, कार्य से अनुपस्थिति पर वेतन कटौती का प्रावधान
-धारा-21 कार्य के दौरान डैमेज या नुकसान पर वेतन कटौती
-धारा-45 (7) (वेतन भुगतान के उल्लंघन पर) नियोक्ता पर सिविल न्यायालय में वाद दाखिल होगा, आपराधिक वाद नहीं बनेगा, जिससे जेल जाने का पूर्ववर्ती प्रावधन खत्म, महज आर्थिक दंड लगेगा।
क़ानून को कैसे लागू किया जाएगा?
अधिकार विहीन इंस्पेक्टर-कम-फैसीलेटर नियुक्त होगा।
सेक्शन 51 (5) इंस्पेक्टर-कम-फ़ैसिलिटेटर के काम-
(ए) किसी शिकायत पर नियोक्ता व श्रमिकों को संहिता के अनुपालन हेतु सलाह देना;
(बी) उपयुक्त सरकार द्वारा सौंपे गए प्रतिष्ठानों की जाँच करना, जो उपयुक्त सरकार द्वारा जारी निर्देशों या दिशानिर्देशों के अधीन होगा।
इसलिए, किसी शिकायत पर अब इंस्पेक्टर-कम-फ़ैसिलिटेटर नियोक्ताओं और श्रमिकों दोनों को सलाह देगा। वास्तव में, जांच प्रक्रिया की एक विस्तृत प्रणाली दी गई है जो स्पष्ट करती है कि एक वेब-आधारित निरीक्षण प्रणाली होगी। निरिक्षण की जानकारी कम्पनी को पहले होगी। नियोक्ता द्वारा स्वप्रमाणित दस्तावेज मान्य होंगे।
फैसीलेटर रिकॉर्ड का निरीक्षण भी कर सकते हैं, पूछताछ कर सकते हैं और उपयुक्त वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट करने के बाद जुर्माना भी लगा सकते हैं। लेकिन उन्हें इस कार्यवाही से पहले उल्लंघनकर्ता मालिक को अपने तरीके से ‘संशोधन’ या ‘सुधार’ करने के लिए समय देना होगा।
समझौता करने का नया प्रावधान –
आपसी समझौता करना – को धारा 56 में दिया गया हैं। इसका मतलब है कि मालिक और श्रमिक एक आपसी समझौते पर पहुँच सकते हैं और मजदूरी या बोनस आदि पर विवाद का निपटारा कर सकते हैं। ज़ाहिर है कि यह प्रभावी रूप से श्रमिकों को समझौता स्वीकार करने के लिये मजबूर करेगा।
इन महत्वपूर्ण परिवर्तनों के साथ यह संहिता मज़दूर-मालिक संबंध के संतुलन को निर्णायक रूप से मालिक के पक्ष में स्थानांतरित कर देगा। नई संहिता में ऐसे कई प्रावधान हैं जो श्रमिकों के विभिन्न वर्गों के तमाम अधिकारों को खत्म कर देगा।
ग़ौरत़लब है कि जम्मू-कश्मीर को खण्डित करने व अनुच्छेद 370 व 35(ए) ख़त्म करने के ग़ैर जनतांत्रिक क़दम के शोर में मोदी सरकार द्वारा मज़दूरों पर हो रहे इन बड़े हमलों पर विरोध के स्वर दब गये। यह एक घातक दौर की आहट है।
क्रमशः जारी…
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