इस बार दीपावली पर मज़दूरों को नहीं मिलेगा बोनस

उत्तराखंड में बोनस भुगतान की अवधि 31 मार्च, 2021 हुई

मज़दूरों के ऊपर बहुत तेजी से केंद्र की मोदी सरकार से लेकर राज्य सरकारें कुल्हाड़ा चला रही हैं और मालिकों के हित में एक के बाद एक कदम उठाती चली जा रही है। इसी क्रम में उत्तराखंड सरकार ने एक शासनादेश जारी करके वर्ष 2019-20 के मिलने वाले बोनस भुगतान की अवधि 31 मार्च 2021 तक के लिए बढ़ा दी है।

ज्ञात हो कि बोनस भुगतन अधिनियम. 1965 के तहत पिछले वित्तीय वर्ष के बोनस का भुगतान 30 नवंबर से पूर्व करने का प्रावधान है। इस अवधि तक बोनस भुगतान न करना दंडनीय और आपराधिक श्रेणी में आता है। लेकिन कोरना संकट के बहाने पूँजीपतियों ने उत्तराखंड सरकार से बोनस भुगतान करने की अवधि बढ़ाने की अपील की थी, जिसे उत्तराखंड सरकार ने “सहर्ष स्वीकार” कर लिया।

1 जुलाई, 2020 को प्रमुख सचिव श्रम के आदेश से गुपचुप रूप से शासनादेश भी जारी हो गया। अब जब कुछ कंपनी के मज़दूरों/यूनियनों ने समय से बोनस देने की प्रबंधन से माँग की तो प्रबंधन उक्त शासनादेश की प्रतियां उन्हें पकड़नी शुरू कर दी।

श्रम कानूनों को ख़त्म करने का ख़तरनाक दौर

ज्ञात हो कि केंद्र की मोदी सरकार लंबे संघर्षों के दौरान हासिल 44 श्रम कानूनी अधिकारों को खत्म करके मालिकों के हित में चार संहिताओं में बदल रही है। इसमें से वेज कोड कानूनी रूप ले चुका है और देशभर में मज़दूरों और मजदूर संगठनों/यूनियनों के विरोध के बावजूद अन्य तीन संहिताएँ सदन में प्रस्तुत कर दिया है।

मालिकों के हित मे राज्य सरकारें और तेज

दूसरी ओर कोविड-19 की आड़ में राज्य सरकारों ने तमाम श्रम कानूनी अधिकारों को खत्म करने की दिशा में कदम तेज गति से दौड़ा दिया। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा सहित देश के तमाम राज्यों की सरकारों ने संविधान विरोधी कदम उठाते हुए श्रम कानूनों को निलंबित करने/बदलने तक के फरमान जारी कर दिए हैं।

उत्तराखंड सरकार ने नियत अवधि (फ़िक्सड टर्म) रोजगार को कानूनी मान्यता देने के बाद 1000 दिनों के लिए नए उद्योगों के नाम पर श्रम कानूनों को स्थगित कर दिया है।

ऐसे बहुत से और आदेश हैं जिनकी जानकारी खुलकर सामने धीरे-धीरे आ रही है। उन्हीं में से बोनस भुगतान का उत्तराखंड शासन का यह आदेश भी है।

भक्ति छोड़ो, सच का सामना कर संघर्ष तेज करो!

ऐसे में मज़दूरों को यह समझना होगा, विशेष रूप से उन मज़दूरों को जो अभी भी अंधभक्ति में ‘हर-हर मोदी घर-घर मोदी’ करते हुए पगलाए हुए हैं।

साथियों अब भी समय है चेतो और मज़दूर विरोधी इन कदमों के खिलाफ एकजुट व्यापक संघर्ष के लिए सड़क पर उतरने के लिए कमर कस लो!

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