रॉकेट इंडिया में माँगपत्र का संघर्ष; प्रशासन ने यूनियन नेताओं को शांतिभंग की ‘आशंका’ में किया पाबंद

मज़दूर जब भी अपने हक की आवाज उठाते हैं, पुलिस सक्रिय हो जाती है और प्रशासन मज़दूरों को पाबंद करने को तत्पर रहता है। भाजपा राज में पुलिस की मनमानी बेइंतेहा बढ़ चुकी है।

पंतनगर (उत्तराखंड)। प्रबंधन, पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत से कानून का बेजा इस्तेमाल कर मज़दूरों और मज़दूर नेताओं पर दबाव बनाने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। कथित शांतिभंग एक ऐसा हथियार बन गया है, जो शांति भंग के दोषियों को बचाता है और मज़दूरों को शिकार बनाता है। ताजा बानगी औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल पंतनगर, ऊधम सिंह नगर की रॉकेट इंडिया फैक्ट्री का है।

यूनियन अध्यक्ष गोविंद सिंह व महामंत्री धीरज जोशी ने बताया कि अपने माँगपत्र के समाधान के लिए संघर्षरत कंपनी की श्रमिक यूनियन रॉकेट रिद्धि सिद्धि कर्मचारी संघ की पूरी कार्यकारिणी के ऊपर शांतिभंग की कथित आशंका जताते हुए जिला प्रशासन ने धारा 107, 116, 116(3) के तहत पाबंद किया है।

यह पहला मामला नहीं है, बल्कि यह इस क्षेत्र में एक परंपरा बन गई है कि जहां भी मज़दूर अपने सामान्य हक के लिए भी आवाज उठाते हैं, पुलिस और प्रशासन खुलकर मालिकों के पक्ष में खड़ा हो जाता है। मज़दूरों की आवाज दबाने के लिए धरना-प्रदर्शन पर रोक लगाने से लेकर कथित शांति भंग की आशंका के बहाने मुक़दमें लाद दिए जाते हैं।

यूनियन का माँगपत्र विवादित, दबाने आया प्रशासन

रॉकेट इंडिया, पंतनगर में श्रमिकों की यूनियन रॉकेट रिद्धि सिद्धि कर्मचारी संघ ने नए वेतन समझौते के लिए 23 जनवरी 2023 को अपना मांग पत्र दिया था, जो लगातार विवादित बना रहा। यूनियन के अनुसार द्विपक्षीय व सहायक श्रमायुक्त (एएलसी) ऊधम सिंह नगर द्वारा आहूत त्रिपक्षीय वार्ताओं में प्रबंधन की हठधर्मिता बनी रही सहमति नहीं बनी।

ऐसी स्थिति में सामान्यतः एएलसी के बाद मामला डीएलसी के पास संदर्भित होना चाहिए। लेकिन यह परंपरा और कानूनी रास्ता विगत कुछ सालों से बंद हो चुका है और एएलसी द्वारा मालिकों की चाहत के अनुसार सभी मामले न्यायालय भेजने की तैयारी रहती है, ताकि मज़दूर कोर्ट की लंबी प्रक्रिया में उलझे रहें। इसी क्रम में इस मांगपत्र को भी एएलसी महोदय ने श्रम न्यायालय के लिए संस्तुति कर दी।

विगत 15 महीने से माँगपत्र विवादित बना हुआ है। लंबे समय से कोई समाधान न निकलने पर श्रमिक शांतिपूर्ण वैधानिक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और 10 अप्रैल से वैधानिक हड़ताल की नोटिस दी थी।

इस बीच प्रबंधन अपने हथकंडे अपनाता रहा। उसका डराना-धमकाना बेअसर रहा, यहाँ तक कि सिविल न्यायालय से भी कोई स्थगना आदेश नहीं मिला तो उसने पुलिस और प्रशासन के साथ मिलकर इस तरह की की नोटिस जारी करवा दी ताकि मज़दूर अपने हक के लिए आंदोलन की दिशा में ना जा सके।

इस नोटिस में यूनियन की पूरी कार्यकारिणी अध्यक्ष गोविंद सिंह, महामंत्री धीरज जोशी, उपाध्यक्ष डीकेस सनवाल, कोषाध्यक्ष प्रकाश चंद, सुरेंद्र कुमार सिंह, हेमचंद पांडे, भूपेंद्र सिंह अधिकारी, जितेंद्र सिंह बंगारी, रामेंद्र सिंह, ध्यान सिंह, मुकेश कुमार, दुर्गेश मणि त्रिपाठी और भूपेंद्र कुमार उपाध्याय के नाम दर्ज हैं।

रॉकेट प्रबंधन का मनमनापन

रॉकेट इंडिया में मज़दूरों की इस यूनियन के अतिरिक्त स्टाफ की भी यूनियन रॉकेट इंडिया कर्मचारी संघ भी पंजीकृत है। जहां प्रबंधन मज़दूरों की यूनियन के माँगपत्र पर सवा साल से अड़ियल बना हुआ है, वहीं स्टाफ की क़ानूनी यूनियन को उसने स्वीकार भी नहीं किया। स्टाफ यूनियन के तीन माँगपत्र लंबित हैं, जो औद्योगिक न्यायाधिकरण में विचाराधीन हैं।

यही नहीं उसने स्टाफ यूनियन के अध्यक्ष सहित तीन कर्मचारियों का राज्य से बाहर स्थानांतरण कर दिया था, जिसे उच्च न्यायालय, नैनीताल ने अविधिक घोषित कर दिया। इसके बावजूद, प्रबंधन उन्हें महीनों से घर बैठकर वेतन दे रहा है।

दूसरी तरफ वह इस यूनियन को तोड़ने, गैर यूनियन सदस्य कर्मचारियों का वेतन बढ़ाने और यूनियन सदस्यों का तीन साल से वेतन न बढ़ाने, सदस्यों को लालच देकर यूनियन छोड़ने को विवश करने आदि जैसे गैर कानूनी गतिविधियों में सक्रिय है। इन सब में प्रशासन खामोश है।

ध्यानतालब है प्रशासन का नोटिस

परगना मजिस्ट्रेट रुद्रपुर की ओर से दिनांक 04/04/2024 को धारा 111 के तहत भेजे गए नोटिस में लिखा है कि प्रभारी निरीक्षक थाना पंतनगर रूद्रपुर की चलानी रिपोर्ट दिनांक 03/04/2024 के द्वारा अवगत कराया गया है कि एक पक्षीय गोविंद सिंह आदि उपरोक्त सभी व्यक्ति रॉकेट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड सिडकुल पंतनगर में कंपनी के श्रमिक हैं, जिनके द्वारा कंपनी में अपनी मांगों को लेकर आए दिन कंपनी प्रबंधन रॉकेट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड पंतनगर में विवाद, भड़काऊ नारेबाजी व श्रमिकों को उत्तेजित किया जाना संज्ञान में आया है। वर्तमान में उपरोक्त व्यक्तियों में कंपनी प्रबंधन को लेकर काफी रोज व्याप्त है, जिस कारण उपरोक्त व्यक्ति कंपनी में कोई बड़ी घटना घटित कर शांति व्यवस्था भंग कर सकते हैं। चलानी रिपोर्ट अंतर्गत धारा 107, 116, 116(3) सीआरपीसी के तहत माननीय न्यायालय में पेश किया जा रहा है उपरोक्त को भारी से भारी धनराशि के मुचलके पर पाबंद करने की कृपा करें।

इस आधार पर परगना मजिस्ट्रेट रुद्रपुर थाना पंतनगर रूद्रपुर उक्त चलानी रिपोर्ट से सहमत होकर निर्देशित किया कि आप दिनांक 08/04/2024 को उनके न्यायालय में 11:00 बजे पूर्वाह्न में उपस्थित होकर कारण स्पष्ट करें क्यों ना आपको 1 वर्ष की अवधि के लिए सदाचार कायम रखने के लिए ₹25000 का बंध पत्र तथा इतनी धनराशि की दो प्रतिभूतियों सहित पाबंद किया जाए।

ध्यान रहे कि 3 अप्रैल को पुलिस ने चलनी रिपोर्ट दी, 4 अप्रैल को एसडीएम ने नोटिस जारी कर दिया, 6 अप्रैल (शनिवार) साँय प्लांट में आकार पुलिस ने यूनियन को नोटिस दी, जिसमें सोमवार, 8 अप्रैल को हाजिर होने का फरमान था। यानि सबकुछ सुनियोजित लगता है।

मज़दूर नेताओं पर लगातार मुक़दमें क्यों?

यह पहला मामला नहीं है। उत्तराखंड के औद्योगिक क्षेत्रों में प्रबंधन की इच्छा पर पुलिस की मनगढ़ंत नोटिस पर प्रशासन द्वारा आए दिन मजदूरों के लिए कथित शांति भंग की नोटिस जारी की जाती है और मजदूरों और मजदूर नेताओं को प्रताड़ित किया जाता है।

अलग-अलग संघर्षों के दौरान पूर्व में श्रमिक संयुक्त मोर्चा के नेताओं, इंटरार्क, लुकास टीवीएस, ब्रिटानिया ठेका मज़दूरों, नेस्ले, वोल्टास, भगवती-माइक्रोमैक्स से लेकर सत्यम ऑटो, गुजरात अंबुजा आदि सहित तमाम कंपनियों के मज़दूर इस प्रताड़ना के शिकार होते आ रहे हैं। जबकि स्पष्ट धोखाधड़ी के प्रमाण के बावजूद गुजरात अंबुजा प्रबंधन पर कार्रवाई नहीं हुई।

यही नहीं आंदोलनों के दौर में प्रबंधन की सह पर मजदूरों पर फर्जी मुकदमे कायम करना भी आम बात है। 2017 के आंदोलन के दौरान महिंद्रा सीआईई कंपनी के कई मज़दूर आज भी खतरनाक आपराधिक धाराओं में मुकदमे झेल रहे हैं। विगत वर्षों में इंटरार्क पंतनगर व किच्छा, भगवती आदि के मज़दूर फर्जी आपराधिक मुक़दमें झेल रहे हैं।

स्थिति यह है कि 2019 के चुनाव के समय जिला प्रशासन इंटरार्क व भगवती के मज़दूरों को चुनाव में बाधा पहुँचने वाला खतरनाक अपराधी घोषित करके पाबंद करने का हास्यास्पद नोटिस जारी कर चुका है।

इन सवालों का क्या जवाब है?

सवाल यह है कि क्या यूनियन और प्रबंधन के बीच औद्योगिक विवाद नही होता? धरना-प्रदर्शन, नारेबाजी या हड़ताल अपराध है? क्या मज़दूर नेता अपराधी हैं? पुलिस को एकपक्षीय आशंका कैसे हो गई? बगैर किसी जांच के थाना प्रभारी ने कैसे शांतिभंग मान ली, परगना मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट दी और मजिस्ट्रेट ने भी उससे सहमति व्यक्त कर नोटिस जारी कर दिया।

सवाल यह भी गहरा है कि, जिस एसडीएम के पास चुनावी प्रक्रिया के कारण मज़दूरों से बात करने की भी फुरसत नहीं है, उन्हे ऐसी नोटिस जारी करने का वक़्त कैसे मिल गया?

स्थिति यह है कि प्रबंधन माँगपत्र का विवाद एएलसी के पास ले गया, जिन्होंने वार्ताओं की खानापूर्ति करके श्रम न्यायालय के संस्तुति कर दी। इधर प्रबंधन को सिविल न्यायालय से स्थगनदेश (स्टे) नहीं मिला तो पुलिस व प्रशासन ने बाकी काम पूरा कर दिया।

भाजपा राज में मज़दूरों पर पुलिस भारी

यह आम बात है कि मज़दूर जब भी अपने हक की आवाज उठाते हैं, दमन के शिकार होते हैं। भाजपा सरकारों के राज में यह बेइंतेहा बढ़ चुका है।

लुकास टीवीएस मज़दूर संघ का जायज हक़ के लिए जारी आंदोलन, पहले धरना कंपनी गेट पर नहीं होने दिया गया, फिर श्रम भवन में जारी धरने को पुलिस ने उठा दिया और स्थानीय गांधी पार्क भेज दिया गया। अंततः चुनावी आचार संहिता के बहाने पुलिस ने गांधी पार्क से धरना जबरिया खत्म करावा दिया। मज़दूर इधर-उधर भटक रहे हैं और उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

परगना मजिस्ट्रेट की इस नोटिस को ही अगर गौर किया जाए तो थाना प्रभारी एकतरफा कथित शांतिभंग की आशंका को मान लेते हैं और परगना मजिस्ट्रेट चालानी नोटिस भी जारी कर देते हैं।

वहीं यदि मज़दूरों की ओर से प्रबंधन की खुली गुंडई या स्पष्ट घोटाले के खिलाफ भी यदि कोई तहरीर दी जाती है तो अमूमन तो उसे स्वीकार ही नहीं किया जाता है, और अगर किन्हीं माध्यमों से पुलिस प्रशासन के पास तहरीर भेज दी जाती है तो उसे रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाता है।

यह ऐसा सच है जो आज मजदूरों के सामने खुली चुनौती बनकर खड़ा है। जाहिरातौर पर आज मज़दूरों की एकता कमजोर है, इसलिए ऐसी हरकतें लगातार बढ़ रही हैं, जोकि घोर निंदनीय है।