रॉकेट इंडिया द्वारा कर्मचारियों का राज्य से बाहर अवैध स्थानांतरण, नैनीताल हाईकोर्ट ने लगाई रोक

रॉकेट इंडिया में सुपरवाइजर स्टाफ कर्मचारियों द्वारा यूनियन बनाने के प्रतिशोधवश प्रबंधन ने प्रमुख पदाधिकारियों का अविधिक रूप से राज्य से बाहर स्थानांतरण किया था।

रुद्रपुर (उत्तराखंड)। रॉकेट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, सिडकुल, पंतनगर के प्रबंधन द्वारा यूनियन बनाने के प्रतिशोधवश तीन प्रमुख पदाधिकारियों/कर्मचारियों का राज्य से बाहर किए गए स्थानांतरण पर नैनीताल उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है।

दरअसल रॉकेट इंडिया में स्टाफ कर्मचारियों ने अपनी यूनियन बनाई, जो कि सिड़कुल क्षेत्र में स्टाफ-कर्मचारियों की पहली यूनियन है। जिसके बाद से प्रबंधन ने यूनियन सदस्य/ कर्मचारियों को तरह-तरह से उत्पीड़ित और परेशान करने लगा था।

इसी दरमियान प्रबंधन ने रॉकेट इंडिया कर्मचारी संघ के अध्यक्ष अभिषेक त्यागी, आशीष कुमार और महेश चंद्र भट्ट का राज्य से बाहर अलग-अलग प्लांटों में स्थानांतरण कर दिया, जिसको यूनियन ने उच्च न्यायालय नैनीताल में चुनौती दी। उच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री योगेश पचौलिया की जोरदार पैरवी के बाद 19 मई को अदालत ने स्थानांतरण पर स्टे (रोक) लगा दी।

इस मामले में अभी अगली सुनवाई 8 जून को निर्धारित है।

प्रबंधन स्टाफ यूनियन को नहीं दे रहा मान्यता

ज्ञात हो कि रॉकेट इंडिया में पहले से मजदूरों की एक यूनियन रॉकेट रिद्धि-सिद्धि कर्मचारी संघ के नाम से पंजीकृत है और लगातार सक्रिय है। कोविड के दौरान प्रबंधन ने सुपरवाइजर स्टाफ कर्मचारियों की छँटनी शुरू कर दी। इनको नियमानुसार ओवरटाइम भुगतान भी नहीं मिलता।

ऐसी स्थिति में ये कर्मचारी एकजुट हुए और रॉकेट इंडिया कर्मचारी संघ के नाम से अपनी एक यूनियन गठित कर पंजीकृत करा ली। करीब पौने 2 साल से यूनियन अस्तित्व में है और इसने मांग पत्र भी प्रबंधन को दे रखा है।

लेकिन प्रबंधन ने शुरू से ही इस यूनियन को मानने से इंकार कर दिया। प्रबंधन का तर्क है कि यह स्टाफ के लोग हैं और प्रबंधन वर्ग में आते हैं। प्रबंधन ने इसको रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन के समक्ष चुनौती दी लेकिन उसे कोई सफलता अभी तक नहीं मिली।

जबकि उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 और अन्य प्रावधानों के तहत यह सभी लोग कर्मकार की परिभाषा में आते हैं और इसी आधार पर इनकी यूनियन भी पंजीकृत हुई थी।

यूनियन बनाने का ‘दण्ड’ भोग रहे कर्मचारी

इस दरमियान प्रबंधन ने कर्मचारियों को परेशान करना शुरू किया। यूनियन से जुड़े करीब सवा सौ सदस्यों की वेतन वृद्धि पिछले 3 साल से रोक दी है, जबकि गैर यूनियन सदस्यों की वेतन में भरी बढ़ोत्तरी हुई है। यूनियन के एक सदस्य को फर्जी आरोप में बर्खास्त कर चुका है।

फिर भी कर्मचारियों का मनोबल नहीं गिरा। जब प्रबंधन को और कोई रास्ता नहीं मिला तो उसने अपनी दमनकारी नीति के तहत यूनियन के प्रमुख तीन सदस्यों/पदाधिकारियों का राज्य से बाहर स्थानांतरण कर दिया।

जबकि उत्तराखंड राज्य के प्रावधानों और स्थाई आदेश के अनुसार राज्य से बाहर बगैर सहमति के स्थानांतरण नहीं किया जा सकता है। यही नहीं, इनमें दो पदाधिकारी संरक्षित कर्मकार हैं, जिनपर किसी कार्रवाई से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है।

प्रबंधन ने इन कानूनों का अनुपालन नहीं किया। यही मामला इंटरार्क कंपनी के मामले में भी सामने आया था जिस पर नैनीताल हाई कोर्ट ने 2020 में और अभी ताजा मामले में रोक लगा चुकी है और इसे गलत बताया। इसी आधार पर रॉकेट इंडिया कर्मचारी संघ को भी राहत मिली है।

फिलहाल उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद यूनियन सदस्यों में उत्साह का संचार हुआ है। और अब देखना यह है कि प्रबंधन उनकी कार्य बहाली कब और कैसे करता है?

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