चुनने का समय: तीसरी बार मोदी सरकार, तो लेबर कोड होगा लागू, मज़दूर बनेगा बंधुआ!

मोदी सरकार की पहली पारी में नीम ट्रेनी जैसे फोकट के मज़दूर, दूसरी पारी तक पुराने श्रम क़ानून खत्मकर चार श्रम संहिताएं, जगह फिक्स्ड टर्म। जब यह लागू होगा तो फ़र्क यह पड़ेगा…

‘आबकी बार, 400 पार’ के नारे के साथ मोदी नीत भाजपा फिर चुनावी मैदान में है। मोदी सरकार तीसरी सरकार बनाने की तैयारी में आरएसएस के दिशानिर्देशन में अडानी-अंबानी जैसे कॉरपोरेट के साथ साम, दाम, दंड, भेद के साथ अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है।

यह तय है कि यदि मोदी यानि संघ-भाजपा की तीसरी सरकार बनती है तो इसकी सबसे बड़ी मार मेहनतकश मज़दूर साथियों झेलनी है।

मोदी सरकार की पहली पारी में नीम ट्रेनी जैसे फोकट के मज़दूर बनाने का तोहफा मिला। दूसरी पारी तक पुराने श्रम कानूनी अधिकार छीने गए और खतरनाक चार श्रम संहिताएं (लेबर कोड) बन गए। स्थाई की जगह फिक्स्ड टर्म बना। सेना में भर्ती का फिक्स्ड टर्म लागू करके भाजपा सरकार ने अपना तेवर दिखला चुकी है।

अब यदि तीसरी बार सरकार बनी तो मजदूरों को बंधुआ मज़दूर बनाने का काम पूरा हो जाएगा। तैयारी पूरी है और लंबे संघर्षों से हासिल 44 श्रम कानूनों को खत्म कर के चार श्रम संहितों (लेबर कोड्स) लागू हो जाएगा।

यह चार श्रम संहिताएं हैं- औद्योगिक संबंध संहिता 2020; मज़दूरी श्रम संहिता 2019; सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थितियों की संहिता 2020। तमाम विरोधों के बावजूद केंद्र की मोदी सरकार ने इन संहिताओं की नियमावलियाँ भी पारित कर ली हैं। ज्यादातर राज्य सरकारों ने इन संहिताओं को अपनाकर उसकी नियमावलियाँ भी तैयार कर ली हैं।

नई श्रम संहिताएँ क्यों हैं घातक?

इन श्रम संहिताओं से मज़दूर, औद्योगिक संस्थान एवं कार्य दिवस नए रूप में होगा। सबसे घातक मुद्दों में स्थाई रोजगार की जगह फिक्स्ड टर्म इम्पालाइमेन्ट (नियत अवधि रोजगार) होगा। छाँटनी-बंदी आसान होगी, यूनियन बनाना, आंदोलन और समझौता लगभग असंभव होगा; श्रम न्यायालय खत्म होंगे और श्रम अधिकारी फैसिलिटेटर होंगे, जिनका काम सलाह देना होगा।

काम के घंटे मालिक की मनमर्जी होगी। वह एक घंटा काम करा कर भी घर भेज सकता है। संहिताएं ओवरटाइम के घंटों के बारे में मौन हैं। जबकि 12 घंटे काम कराने की बात से स्पष्ट है कि 12 घंटे तक के कार्य के लिए ओवरटाइम का भुगतान की बाध्यता नहीं होगी।

नए श्रम कानून अपने को सुरक्षित समझ रहे 8 फीसदी मज़दूर आबादी को भी असंगठित क्षेत्र में धकेलने की मुकम्मल तैयारी है।

इन संहिताओं के मूल में है- ‘हायर एण्ड फायर’ यानी मनमर्जी काम पर रखना-निकालना

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आइए इन चारों श्रम संहिताओं के मूल बिंदुओं को जानने की कोशिश करते हैं।

औद्योगिक संबंध संहिता 2020

इस क़ानून के अस्तित्व में आते ही लंबे संघर्षों से हासिल हुए अधिकार जो एक हद तक मजदूरों को यूनियन बनाने, कारखाने में काम करने, छुट्टी, माँगपत्र देने, रोजगार की सुरक्षा आदि के संबंध में जो तीन सबसे महत्वपूर्ण कानून है- ट्रेड यूनियन अधिनियम 1926, औद्योगिक रोजगार (स्थाई आदेश) अधिनियम 1946 और औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 समाप्त हो जाएगा।

इससे मज़दूरों पर फर्क पड़ने वाले कुछ खास बिंदुओं की हम यहां चर्चा करते हैं-

★ यह कानून स्थाई रोजगार को पूरी तरह से खत्म करने वाला है क्योंकि कर्मकार की परिभाषा में एक नया शब्द डाला गया है- फिक्स्ड टर्म इम्पालाइमेन्ट। मतलब साफ है कि अब कंपनियां स्थाई मजदूर रखने की जगह पर 3 साल, 4 साल या 5 साल के लिए एक नियत अवधि में रोजगार में रखेंगी और अवधि समाप्त होते ही बाहर कर देंगी।

★ इस संहिता के तहत उद्योग की परिभाषा को ही बदल दिया गया है। इसके तहत तमाम संस्थानों में काम करने वाले लाखों मज़दूरों को श्रम कानून के दायरे से ही बाहर हो जाएंगे।

★ प्लेटफॉर्म श्रमिक, प्रशिक्षु, आईटी श्रमिक, स्टार्टअप्स और लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम में कार्यरत, घर आधारित स्वनियोजित श्रमिक, असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक, वृक्षारोपण श्रमिक व मनरेगा श्रमिक आदि लाखों नए और मौजूदा श्रेणियों को वैधानिक औद्योगिक संबंध संरक्षण के दायरे से बाहर रखा गया है।

★ मज़दूर की परिभाषा को बदला गया है जिसमें ₹18000 से कम मासिक वेतन पाने वाले को ही मजदूर कहा गया है और इसके ऊपर कमाने वालों को कर्मचारी कहा गया है। इससे तमाम मज़दूर यूनियन बनाने के अधिकार सहित अपने तमाम अधिकारों से वंचित हो जाएगा।

★ इसके अलावा मालिक/नियोक्ता की भी परिभाषा को बदल दिया गया है। अब ठेकेदार भी मालिक होगा। यानी ठेका मज़दूरों के लिए कंपनी की पीएफ, वेतन, अवकाश आदि की कोई जवाबदेही नहीं होगी।

★ सामूहिक समझौते की जगह मालिक एक व्यक्ति से भी समझौता कर सकता है। जिसका अर्थ किसी भी मज़दूर के लिए समझना कठिन नहीं है, विशेष रूप से मांग पत्र देने के बाद की स्थितियों को।

★ इस संहिता के तहत जहां पर 300 से कम श्रमशक्ति कार्य करती है, वहां पर लेऑफ, छँटनी, बंदी या तालाबंदी के लिए नियोक्ता को अनुमति लेने की जरूरत नहीं रहेगी। इस दायरे में मज़दूरों की एक बड़ी आबादी आ जाएगी।

★ आर्टिफिसियाल इंटीलीजेंस (एआई) रोबोट द्वारा कार्य कराने का प्रचलन बढ़ने से मज़दूरों की संख्या और भी कम होती जाएगी।

★ गैर कानूनी ठेका प्रथा को कानूनी रूप मिल जाएगा। क्योंकि अब 50 मज़दूरों से कम क्षमता वाले संस्थान में ठेकेदार को लाइसेंस लेने की अनिवार्यता भी खत्म कर दी गई है।

★ इस संहिता द्वारा बड़े हमलों में ट्रेड यूनियन अधिकार पर हमला महत्वपूर्ण है। अन्य दिक्कतों के अलावा यूनियन बनाने से पहले सभी सदस्यों के नामों का सत्यापन करवाना अनिवार्य होगा जो प्रबंधन द्वारा नियुक्त अधिकारी करेगा।

यदि कोई यूनियन मज़दूर अधिकारों के लिए मालिकों से बात करना चाहती है तो 51 फ़ीसदी मज़दूरों की सहमति प्राप्ति को साबित करना पड़ेगा।

★ संहिता की नियमावली में वर्क्स कमेटी के गठन की बात है। वर्क्स कमेटी नियोक्ता और श्रमिक प्रतिनिधियों की भागीदारी से बनेगी, जिसमें कमेटी प्रतिनिधि नियोक्ता द्वारा नामित किए जाएंगे। इस वर्क्स कमेटी का अध्यक्ष प्रबन्धन होगा यानी पूरी बागडोर नियोक्ता के हाथ में होगी

★ कंपनी प्रबंधन के साथ किसी भी मसले पर यहाँ तक कि माँगपत्र देने और उस पर वार्ता करने के लिए पंजीकृत ट्रेड यूनियनों की मान्यता का बड़ा खेल खेला गया है।

यूनियन मान्यता की एक जटिल प्रक्रिया में सत्यापन अधिकारी सभी कागजातों का और चुनाव द्वारा गुप्त मतदान के माध्यम से यूनियन सदस्यता का भी सत्यापन करेगा और उसके द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर नियोक्ता उक्त यूनियन को मान्यता देगा, जो 3 वर्ष के लिए अधिकतम 5 वर्ष के लिए होगा।

★ हड़ताल करना लगभग असंभव हो जाएगा। हड़ताल के लिए नोटिस देने को कठिन बनाया गया है। पूरे समझौता वार्ता या श्रम अधिकारियों के समक्ष सुनवाई के दौरान मज़दूर यदि हड़ताल करते हैं तो वह गैरकानूनी घोषित किया जाएगा।

★ 50 फ़ीसदी से अधिक मज़दूर यदि किसी कार्यदिवस पर अवकाश पर होंगे तो उसे भी गैरकानूनी हड़ताल का दर्जा दिया जाएगा।

★ गैर कानूनी हड़ताल के लिए मज़दूरों को 2 साल तक की सजा और एक लाख रुपए तक का आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है। और यूनियन का पंजीकरण भी रद्द किया जा सकता है।

★ एक से अधिक यूनियनें होने पर यूनियन को 51% मजदूरों की सदस्यता साबित करके अकेली वार्ताकार यूनियन बनेगी।

★ जहां मज़दूरों के ऊपर भारी जुर्माने और जेल का प्रावधान है, वहीं मालिकों के वेतन, पीएफ, बोनस जैसे डकैती पर भी आपराधिक वाद समाप्त कर दिए गए है और केवल आर्थिक दंड का प्रावधान कर दिया गया है।

★ श्रम अधिकार फैसिलिटेटर होंगे। इसका मतलब ही है सुविधा देने वाला। जैसा नाम, वैसा काम! यानी उनका मुख्य काम होगा सुविधा देना, सलाह देना!

★ नियोक्ता हर चीज को स्वतः प्रमाणित करेगा, जिसे फैसिलिटेटर मानने को बाध्य होगा। मज़दूर साल में एक बार ही शिकायत दर्ज करा सकता है। 

★ औद्योगिक विवादों का निपटारा श्रम न्यायालय द्वारा नहीं बल्कि एक ऐसी औद्योगिक न्यायाधिकरण द्वारा किया जाएगा जिसमें प्रशासन का हस्तक्षेप होगा।

मजदूरी श्रम संहिता 2019

इस संहिता में वेतन निर्धारण का कोई मानदंड या प्रारूप नहीं बनाया गया है। और पुराने वेतन बोर्ड आदि को समाप्त कर दिया गया है।

★ इसमें अवकाश, कार्य के घंटों आदि की हेरा फेरी की गई है।

★ वेतन निर्धारण के लिए काम की जगह और मज़दूर के कौशल को आधार बनाया गया है। न्यूनतम वेतन निर्धारण के लिए आबादी के अनुसार देश को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बांटने की बात है।

★ न्यूनतम मज़दूरी तय करने वाले बोर्ड का प्रारूप भी स्पष्ट रूप से मालिकों के पक्ष में बना दिया गया है।

★ मज़दूरी तय करने का वह फार्मूला पूरी तरह से बदल दिया गया है। यानी मालिक मनमर्जी न्यूनतम वेतन निर्धारित करने के लिए कानूनी रूप से मजबूत हो जाएंगे।

★ कार्य दिवस के संबंध में काफी घालमेल और हेराफेरी की गई है। दैनिक 12 घंटे काम करने का प्रावधान भी कर दिया गया है। हालांकि साप्ताहिक कार्य 48 घंटे लिखा है।

★ काम पूरा होने तक मज़दूर काम छोड़कर नहीं जा सकता। लेकिन सिर्फ उन कर्मियों को ओवरटाइम भुगतान का जिक्र किया गया है जो छुट्टी के दिन काम करते हैं।

★ कच्चा माल, बिजली आदि की अनुपलब्धता के बहाने घंटा- दो घंटा भी काम करवाकर मालिक मज़दूर को मुक्त कर सकता है, और वेतन भी पूरी देने की बाध्यता नहीं रहेगी।

★ ओवरटाइम के घंटों को भी एक तिमाही में 50 घंटे से बढ़ाकर 125 घंटे कर दिया गया है। दूसरी ओर कंपनियां खुद को घाटे में दिखाकर बोनस जैसे अहम देनदारी से भी बच सकती हैं।

★ समान काम का समान वेतन में गोलमाल है। यह बाल श्रम को बढ़ावा देने वाला है। इसमें घर से चलने वाले तमाम कामों व अन्य कामों 15 साल से कम उम्र के बालश्रमिकों को काम पर रखने की छूट दी गई है।

★ मनरेगा मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी के दायरे से बाहर रखा गया है। आशा वर्कर, आंगनवाड़ी, भोजन माता, स्वास्थ्य मिशन आदि स्कीम वर्कर; घरेलू कामगारों, गिग और प्लेटफ़ॉर्म मजदूर आदि के वेतन के बारे में चुप्पी है।

सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020

कर्मचारियों के मुआवजा की अब तक मौजूदा परिभाषा ही बदल दी गई है। कार्यस्थल पर चोट लगने पर मुआवजा मालिक के रहमो करम पर होगा और मुआवजा देने की बाध्यता समाप्त कर दी गई है।

★ ईएसआई के तहत पहले की तरह सुरक्षा की गारंटी समाप्त कर दी गई।

★ ईपीएफ में पहले की सुरक्षा को कम कर दिया गया है। मजदूरों को अपने ईपीएफ जमा राशि को निकालने में कई रुकावटें बनाई गई है, क्योंकि अब इपीएफ शेयर मार्केट पर आधारित कर दिया गया है।

★ ईपीएफ में मालिक का योगदान 12% से घटाकर 10% कर दिया गया है। मालिक 50 फ़ीसदी मज़दूरों से हस्ताक्षर करवाकर पीएफ में पैसा जमा करने के झंझट से भी मुक्त हो जाएगा।

★ लाभ 93 फीसदी असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं मातृत्व लाभ के बारे में काफी धोखा है।

★ ग्रेच्युटी भुगतान महज जुमला होगा क्योंकि फिक्स्ड टर्म रोजगार होगा।

व्यवसाय की सुरक्षा स्वास्थ्य एवं कार्य दशाओं की संहिता 2020

नाम के अनुरूप यह संहिता वास्तव में व्यवसाय की सुरक्षा के लिए है। कारखाने की परिभाषा को बदल दिया गया है, जो व्यापक मज़दूरों के विरुद्ध है।

★ बिजली से चलने वाले संस्थानों में 20 तथा बिजली के बिना चलने वाले संस्थानों में 40 मजदूर होने पर ही उसे फैक्ट्री माना जाएगा।

★ जुमलेबाजी यह कि जहां नियोक्ता को कार्यस्थल की सुरक्षा के तमाम प्रावधान लागू करने की बात की गई है, वहीं मज़दूर उन सुविधाओं को हासिल कैसे करेगा यह गायब है।

★ सामान्य तौर पर 500 से कम संख्या वाले कारखानों में सुरक्षा का प्रावधान नियोक्ताओं की मनमर्जी होगा।

★ 50 मज़दूरों तक की आपूर्ति करने वाले ठेकेदार नियमों से मुक्त रहेंगे। बगैर किसी उचित सुरक्षा प्रावधान के इस संहिता के तहत अब रात्रि पाली में भी महिला मज़दूरों से काम कराए जाने की खुली छूट दे दी गई है।

तमाम दावों के बावजूद यह संहिता मज़दूरों के स्वास्थ्य और जानमाल के लिए नए खतरे पैदा करने वाली है जो संविधान में प्रदत्त सम्मानजनक रोजगार और जिंदगी जीने की गारंटी का भी उल्लंघन करती है।

यह याद रहे कि मोदी सरकार जिन क़ानूनों को मनमाने तरीके से खत्म कर रही है, वे खैरात में नहीं मिले थे, बल्कि लंबे संघर्षों के दौरान तमाम शहादतें और कुर्बानियाँ देकर हमारे पुरखों ने हासिल की थीं। आज मज़दूर आंदोलन की कमजोर स्थिति और मज़दूर जमात को जाति-धर्म-राष्ट्र के जुनूनी माहौल में उलझाने का लाभ उठाकर ऐसा हो रहा है।

मज़दूर साथियों के लिए यह अबतक का सबसे विकट दौर है, इसे समझना होगा! उन्हें राष्ट्र-धर्म के जुनूनी माहौल और जुमलेबाजी के भ्रम से बहार निकलना होगा और संघर्ष को सही दिशा में आगे बढ़ा रही ताक़तों के साथ कन्धा मिलाना होगा!

फिलहाल इस चुनावी मौके पर यह बेहद अहम मसाला है, जिसे सोचना ही होगा!