मारुति गुडगाँव व मानेसर के मज़दूरों ने फिर निभाया भाईचारा

अन्यायपूर्ण उम्रक़ैद झेलते मारुति मज़दूरों को दिया 65 लाख का आर्थिक सहयोग
गुडगाँव। अन्यायपूर्ण उम्र क़ैद कि सजा भुगत रहे मारुति सुजुकी, मानेसर के जुझारू 13 नेताओं को मारुति गुडगाँव व मारुति मानेसर प्लांट की यूनियनों ने 5 लाख रुपए प्रति परिवार का आर्थिक सहयोग देकर उनके साथ दीवाली कि खुशियाँ बांटीं। 8 सालों में यह पहली बार है जब सभी 13 मज़दूर त्यौहार में पैरोल पर जेल से बहार हैं और अपने परिवारों के साथ दीवाली मानाने जा रहे हैं।
ज्ञात हो कि विगत 8 वर्षों से जेल की कालकोठरी में बंद मारुति के 13 मज़दूर नेताओं के परिवारों को हर साल दीवाली में मानेसर प्लांट के मज़दूर आर्थिक सहयोग करते हैं। इस बार मारुति गुडगाँव प्लांट के मज़दूरों ने भी दोनों प्लांटों की एकता के साथ कुल 65 लाख रुपए का आर्थिक सहयोग दिया है जो और मजबूती को प्रदर्शित करता है।
इस अवसर पर सजा भुगत रहे सभी 13 मज़दूरों के साथ मारुति उद्योग कामगार युनियन गुरुग्राम, मारुति सुजुकी वर्कर्स युनियन मानेसर, मारुति सुजुकी प्रोविजनल कमेटी, पवारट्रेन एम्पलाइज यूनियन आदि के पदाधिकारियों के अलावा क्रन्तिकारी नौजवान सभा के साथी मौजूद रहे।

मारुति मज़दूरों के अन्याय की दास्तान
18 जुलाई, 2012 को मारुति सुजुकी, मानेसर प्लांट में हुई साजिशपूर्ण घटना में एक मैनेजर की मौत का सहारा लेकर कंपनी प्रबंधन व हरियाणा सरकार की मिलीभगत से 148 मज़दूरों को जेल के अंदर डाल दिया गया था। लगभग 5 साल बाद 18 मार्च 2017 को सेशन कोर्ट गुडगांव ने 117 मज़दूरों को बाइज्जत बरी किया व 31 लोगों को दोषी करार दिया। जिनमें से 13 मज़दूर आज भी जेल की कालकोठरी में अन्यायपूर्ण उम्रक़ैद की सजा भुगत रहे हैं।
इस मजदूर विरोधी फैसले का तमाम यूनियनों ने पुरजोर विरोध किया था और एक निष्पक्ष न्यायिक जाँच की माँग की थी। लेकिन 8 साल बीत जाने के बावजूद अभी तक कोई न्यायिक जांच नहीं हुई। 13 मज़दूरों की रिहाई का संघर्ष जारी है। जबकि बर्खास्त मज़दूर आज भी अपनी न्यायिक मांगों को लेकर सड़कों पर हैं वह कानून के चक्कर काट रहे हैं।
यह एतिहासिक आन्दोलन है
इस अवसर पर मज़दूर नेताओं ने कहा कि मारुति मानेसर के मजदूरों का संघर्ष जोकि पिछले 9 वर्ष से निरंतर चल रहा है गुडगांव क्षेत्र का एक ऐतिहासिक आंदोलन है जो कि भारत में ही नहीं पूरे विश्व के अंदर एक निरंतर जुझारू आंदोलन के रूप में जाना जाता है। अपना स्वतंत्र संगठन बनाने की माँग को लेकर वर्ष 2011 में शुरू हुआ यह आंदोलन आज पूरे क्षेत्र में एक सशक्त संगठन के रूप में पहचान बना चुका है।
नेताओं ने कहा कि शुरू से ही इस आंदोलन में शामिल मज़दूरों में एक गजब का भाईचारा व एकता थी। अपने संगठन के लिए मज़दूरों ने अपने परिवारों तक को त्याग दिया था और पूँजीपति, सरकार व न्यायपालिका के गठजोड़ के विरुद्ध अपनी एकता के बल पर हम सभी मज़दूर निरंतर लड़ते रहे इस लड़ाई में इन्होंने बहुत कुछ खोया तो कुछ हासिल भी किया।
कहा कि एक और जहाँ 2500 मज़दूरों को नौकरियों से निकाला गया और 150 मज़दूरों को जेल की यातनाएं दी गई। जिनमें से आज भी 13 बेगुनाह मज़दूर उम्र कैद की सजा काट रहे हैं वहीं दूसरी ओर मज़दूरों का शोषण करने वाली मारुति मैनेजमेंट जहाँ मात्र ₹3400 मासिक वेतन पर मज़दूरों से फोकट में काम लिया जाता था वही इस आंदोलन के चलते आज मारुति के मज़दूर 80 हजार से एक लाख रुपए तक का वेतन ले रहे हैं।
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मज़दूर निभा रहे हैं भाईचारा
अपनी एकता प्रदर्शित करते हुए मज़दूर नेताओं ने कहा कि बेशक आज भी हमारे अग्रणी 13 साथी जेल की सजा काट रहे हैं लेकिन उनकी रिहाई के लिए अभी भी हर तरीके से संघर्ष जारी है। वर्तमान में जो मज़दूर साथी कारखाने के अंदर काम कर रहे हैं व अन्य इकाइयों के मज़दूर भी इन जेल में बंद मज़दूरों के साथ अपने वर्गीय भाईचारे की मिसाल देते हुए इनके साथ खड़े हैं।
मज़दूर पीड़ित परिवारों को लगातार आर्थिक सहयोग भी दे रहा है। फैसले के बाद मारुति के मज़दूरों ने इनके परिवारों की आर्थिक सहायता के लिए चंदा इकठा किया जिसमें सनबीम, बेलसोनिका, पावरट्रेन, मारुति गुडगांव प्लांट ने भी मानेसर प्लांट का साथ दिया और लगभग 2.5 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता की।
इस वर्ष 8 साल बाद पहली बार ये 13 मज़दूर किसी त्यौहार को अपने घर मना रहे हैं, वे पैरोल पर हैं। इनके त्यौहार को रौनक देने के लिए मारुति उद्योग कामगार यूनियन गुरुग्राम द्वारा प्रति परिवार 3 लाख रुपए और मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन मानेसर द्वारा 2 लाख रुपये प्रति परिवार की आर्थिक सहायता कर इन परिवारों के साथ एकजुटता प्रकट की।
- मारुति मज़दूर आन्दोलन : दसवीं क़िस्त-
आज वर्ग एकजुटता की ज़रुरत ज्यादा
बर्खास्त मज़दूरों की मारुति सुजुकी प्रोविजनल कमेटी के साथियों ने कहा कि मज़दूर प्रबंधन की गलत नीतियों का शिकार हुए हैं और आज बेरोजगार हैं। मारुति कांड महज उदहारण है। आज लगभग हर उद्योग के मज़दूर इन्हीं हालत में पीड़ित हैं। कोविड-19 महामारी ने मालिकों की मनमानी को खुली छूट दे दी है।
आज श्रम क़ानूनी अधिकारों को जिस तरह से ख़त्म किया जा रहा है, उसने मालिकों को बेलगाम कर दिया है। वर्तमान हालत में उद्योग जगत के तमाम मज़दूरों को एकजुट होकर लड़ने की जरूरत है तभी हम इन गलत नीतियों का डटकर सामना कर पाएंगे।