गैरकानूनी काम बंदी के शिकार हैं वोल्टास के मज़दूर

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श्रम विभाग की मिलीभगत से प्रबंधन की गैरकानूनी कृत्य पर कोई रोक नहीं

पंतनगर (उत्तराखंड)। औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल स्थित वोल्टास लिमिटेड के 8 मज़दूर पिछले 25 सितंबर से गैरकानूनी काम बंदी के शिकार बने हैं, जिसमें यूनियन के अध्यक्ष, महामंत्री व संगठन मंत्री भी शामिल हैं। प्रबंधन ने मज़दूरों का पूरा वेतन भी काट दिया। सारे तथ्य इस काम बंदी को गैरकानूनी साबित कर रहे हैं, फिर भी श्रम विभाग उनकी अनदेखी कर रहा है।

दरअसल वोल्टास इम्पलाइज यूनियन ने अपने नए वेतन समझौते के लिए 9 दिसंबर 2017 को माँग पत्र दिया था। प्रबंधन तब से लगातार मज़दूरों का दमन और शोषण कर रहा है। इस पूरे दौरान प्रबंधन ने मज़दूरों की कई तरह से सुविधाओं और वेतन में कटौतियाँ की। यूनियन ने स्थायीकरण की माँग उठाई थी तो प्रबंधन में ठेका मजदूरों को बाहर कर दिया। एक स्थाई मज़दूर को गैरकानूनी रूप से निलंबित किया। उसने पूरे मामले को उलझाये रखा, जबकि श्रम विभाग इस पर मूकदर्शक बना रहा, माँग पत्र को श्रम न्यायालय में संदर्भित कर दिया।

यूनियन ने औद्योगिक विवाद कायम रहते वेतन और सुविधाओं में कटौती व प्रबन्धन के अन्य कृत्यों के खिलाफ जब लगातार आवाज़ बुलंद की तो श्रम विभाग में इस पर सुनवाई की औपचारिकता शुरू की। उसी बौखलाए प्रबन्धन ने यूनियन अध्यक्ष, महामंत्री, संगठन मंत्री सहित 8 श्रमिकों का गेट बंद कर दिया। श्रम विभाग इस मामले में भी लीपापोती करता रहा।

यूनियन ने एएलसी व डीएलसी के सामने जब तमाम तथ्य रखे तो श्रम अधिकारियों ने बताया कि प्रबंधन ने ले-ऑफ ले लिया है। यूनियन ने यह तर्क भी रखा कि कंपनी का स्थाई प्रमाणिक आदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के प्रावधानों के तहत है जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि काम बंदी के लिए अध्याय 5ए के तहत कार्यवाही होगी। इसको नज़रअंदाज करते हुए श्रम विभाग इसे उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के तहत बताता रहा।

प्रबन्धन का तर्क है कि जिस प्लांट से मज़दूर निकाले गए हैं, वहाँ केवल 12 मज़दूर कार्यरत हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के प्रावधानों या केंद्रीय प्रावधानों के तहत 50 श्रमिकों से कम वाले प्लांट में ले-ऑफ लेने का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि इस मामले में भी प्रबंधन झूठ बोल रहा है। वोल्टास 500 से अधिक श्रमबल वाले कारखाने के रूप में पंजीकृत है और मजदूरों को उसी अनुरूप सुविधाएँ भी मिल रही हैं।

यूनियन का कहना है कि प्रबंधन ने जिन 8 श्रमिकों की गेट बंदी की है वह श्रम अधिकारियों द्वारा बताए गए सलाह के आधार पर है और इसको लिखित रूप से श्रम विभाग में यूनियन ने दिया भी है, लेकिन इसको भी अधिकारियों ने नजरअंदाज कर दिया।

इन हालात में मजदूरों का संघर्ष जारी है। सारे कानूनी दाँव-पेंच के बीच मज़दूरों का दमन जारी है और मज़दूर कंपनी गेट पर लगातार धरने पर बैठे हुए हैं।

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