मानेसर: पुलिस बैरिकेटिंग काम न आई, बर्खास्त मारुति मज़दूरों की औचक रैलियाँ सफल रहीं

मानेसर औद्योगिक क्षेत्र में मारुति श्रमिकों की कई रैलियों ने पुलिस-प्रशासन को परेशान कर दिया, जिन्होंने मज़दूरों की रैली को रोकने के लिए धरना स्थल पर बैरिकेडिंग कर दी थी।
मानेसर, गुड़गांव। पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत संघर्षरत मारुति मज़दूरों ने आज 18 दिसंबर को पुलिस बैरिकेटिंग के बावजूद मानेसर औद्योगिक क्षेत्र में 7 किलोमीटर की दूरी तय कर व्यापक रैली निकाली। 12 साल में यह पहली बार है कि मारुति के बर्खास्त मज़दूर फैक्ट्री गेट के पास रैलियां निकाल सके हैं।
ज्ञात हो कि 18 सितंबर, 2024 से मारुति सुजुकी स्ट्रगल कमेटी के नेतृत्व में बर्खास्त मारुति मज़दूरों का आईएमटी मानेसर तहसील के सामने अनिश्चितकालीन धरना चल रहा है। तीन महीनों से मानेसर तहसील पर जारी धरना के दौरान संघर्षरत मारुति श्रमिकों ने मानेसर में सामूहिक आम सभा और रैली की योजना बनाई थी।

इस दौरान बड़ी संख्या में पुलिस ने धरना स्थल को घेर लिया और मारुति प्लांट की ओर श्रमिकों की रैली को रोकने के लिए बैरिकेड्स लगा दिए। लेकिन श्रमिकों ने पहले से ही 4 अलग-अलग प्रदर्शनों की योजना बनाई थी, थी कि शिफ्ट छूटने पर मारुति सुजुकी मानेसर गेट नंबर 2,3,4 और मारुति सुजुकी पावरट्रेन व कास्टिंग प्लांट गेट से रैलियां निकाली जाएंगी। जिसे सफल बनाया।
इन प्लांट गेटों से प्रदर्शनों और 4 औचक रैलियों ने प्रबंधन, सुरक्षा बलों और पुलिस को हैरान कर दिया, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद वे उन्हें रोक नहीं सके। इन रैलियों ने मानेसर औद्योगिक क्षेत्र में 7 किलोमीटर की दूरी तय की और धरना स्थल पर श्रमिकों के साथ शामिल हुईं। 12 साल में यह पहली बार है कि मारुति के बर्खास्त कर्मचारी फैक्ट्री गेट के पास रैलियां निकाल सके हैं।
धरना स्थल पर हुई जन सभा में नौकरी से निकाले गए मज़दूर व उनके परिवार के सदस्यों और जन संघर्ष मंच हरियाणा, सीएसटीयू, आईएमके, एआईसीसीटीयू, एसएससी, एआईसीडब्ल्यूयू, केएनएस, कलेक्टिव, बेलसोनिका यूनियन आदि जैसे विभिन्न संगठनों और यूनियनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।

मारुति मानेसर के बर्खास्त मज़दूरों का 12 साल से जारी संघर्ष
मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट के बर्खास्त मज़दूरों का संघर्ष पिछले 12 सालों से जारी है। यह संघर्ष केवल उनके रोजगार की बहाली के लिए नहीं, बल्कि अस्थायी श्रमिकों के अधिकारों, यूनियन बनाने के मौलिक अधिकार और न्याय की लड़ाई का प्रतीक बन गया है। पिछले एक दशक में, न केवल इन मज़दूरों को अन्यायपूर्ण तरीके से बर्खास्त किया गया, बल्कि श्रमिक आंदोलन पर दमनकारी नीतियों का सामना भी करना पड़ा। यह संघर्ष आज भारतीय श्रमिक आंदोलन के सामने खड़ी कई चुनौतियों को उजागर करता है।

पुनर्बहाली का आंदोलन: संघर्ष का नया दौर
18 सितंबर, 2024 से मारुति सुजुकी स्ट्रगल कमेटी के नेतृत्व में बर्खास्त मारुति मज़दूरों का आईएमटी मानेसर तहसील के सामने अनिश्चितकालीन धरना चल रहा है। कार्यबहाली और अस्थायी मज़दूरों पर आधारित उत्पादन का अंत धरने की मुख्य मांगें हैं। कार्यक्रम की घोषणा के बाद ही प्रबंधन ने अदालत में धरने पर रोक लगाने की याचिका डाली, अदालत से धरना स्थल के लिए गेट से 500 मीटर दूर बैठने की अनुमति मिली। प्रशासन ने भी धरना जमने से रोकने की कोशिश की, लेकिन मज़दूरों ने दृढ़ निश्चय के साथ आंदोलन जारी रखा।
यह प्रतिरोध 2022 में जेल से अपने सभी साथियों की रिहाई के बाद, कार्यबहाली की माँग पर ज़ोर देते हुए एक नए दौर की परिणीति है जिसके तहत बर्खास्त मज़दूर फिर एक बार सड़क पर उतरे और गुड़गांव डीसी, श्रम विभाग और राज्य के मुख्यमंत्री को अपनी मांगे संबोधित की।
फर्जी मुकदमा व बर्खास्तगी: ट्रेड यूनियन संघर्षों का अपराधीकरण
18 जुलाई 2012 को मारुति मानेसर में एक प्रबंधक की मौत के बाद प्रबंधन ने 546 स्थायी, बदली और 1800 ठेका श्रमिकों को बिना जांच के बर्खास्त कर दिया। बिना किसी गवाह, सबूत या जांच के ये कार्रवाई मज़दूरों के ट्रेड यूनियन संघर्ष के अपराधिकरण की एक सोची समझी साज़िश थी। अदालत में पाया गया की प्रबंधक की मौत सांस घुटने से हुई है ना की किसी और चोट से। कंपनी घटना का कोई सीसीटीवी प्रमाण नहीं दे पायी लेकिन पूरी जली हुई फैक्ट्री के भीतर पुलिस को लाश के बगल में माचिस का डब्बा साबुत मिल गया।
इन बेमेल सबूतों को देख कर 2017 में अदालत ने 148 आरोपितों में से 117 मज़दूरों को चार साल की जेल काटने के बाद निर्दोष पाया और मुक्त कर दिया। जिन 13 को गुनहगार ठहराकर आजीवन कारावास की सजा दी गई उनमें 12 यूनियन प्रतिनिधि थे और एक दलित मज़दूर था, जिसके साथ सुपरवाइज़र द्वारा की गई बदसलूकी बहस की पहली चिंगारी बनी थी।
ऐसे हथकंडे हाल में तमिलनाडु के सैमसंग हड़ताल, उत्तराखंड में डॉलफिन आंदोलन और इससे पहले महाराष्ट्र के रिलायंस मज़दूरों के आंदोलन पर हमलों में भी इस्तेमाल किए गए हैं। लेबर कोर्ट में मामला चलने के 10 साल बाद भी अंतिम फ़ैसले का कोई अंदेशा नहीं मिल रहा। साफ़ है कि प्रशासन और प्रबंधन मज़दूरों को लंबी कोर्ट की प्रक्रिया में फँसा कर थका देना चाहता है। लेकिन इसमें सीमित ना हो कर मज़दूरों ने फिर एक बार ज़मीनी संघर्ष का रास्ता चुना है।
अस्थायी श्रमिकों के अधिकारों का संघर्ष
मारुति सुजुकी के तीन प्लांट् में 77% श्रमिक अस्थायी हैं, जो ‘ट्रेनी’, ‘नीम ट्रेनी’, ‘अप्रेंटिस’, और ‘स्टूडेंट ट्रेनी’ के नाम पर स्थायी काम कर रहे हैं। मारुति मानेसर, गुड़गांव और मानेसर पावरट्रेन प्लांट में 20,000 से अधिक अस्थायी श्रमिक कार्यरत हैं। लेकिन इन्हें श्रमिक का दर्जा नहीं मिलता और न ही वे यूनियन का हिस्सा बन सकते हैं। प्रबंधन ने अस्थायीकरण का सहारा लेकर श्रमिकों के अधिकारों को कुचलने की कोशिश की है।
अस्थायी श्रमिकों को अत्यधिक कार्यभार का सामना करना पड़ता है और उन्हें न्यूनतम सुविधाएं भी प्रदान नहीं की जातीं। वहीं स्थायी श्रमिकों को ऊँचा वेतन और यूनियन का अधिकार तो मिल गया है लेकिन उत्पादन से उनका नियंत्रण पूरी तरह ख़त्म कर दिया गया है जिससे उनकी संगठित ताक़त नाममात्र हो गई है। अंततः कई कंपनियों में स्थायी मज़दूरों को वीआरएस लेने पर मजबूर करके उनकी छुट्टी कर दी जाती है।
हाल ही में, स्थायी श्रमिकों के समझौते में ₹30,000 वेतन वृद्धि हुई, व कई अन्य सुविधाएँ भी बढ़ीं, लेकिन अस्थायी श्रमिकों को कोई लाभ नहीं दिया गया। अस्थायी श्रमिकों की मांग है कि उनका वेतन 40% बढ़ाया जाए और उचित वेतन समझौता किया जाए ताकि उनकी स्थिति में सुधार हो सके।
मेहनतकश मज़दूरों, किसानों और समर्थकों से अपील
मारुति सुजुकी स्ट्रगल कमेटी ने सभी मेहनतकश मज़दूरों, किसानों और श्रमिक आंदोलन के समर्थकों से अपील की है कि वे इस आंदोलन के साथ एकजुट होकर खड़े हों। बर्खास्त श्रमिकों की पुनर्बहाली और अस्थायी श्रमिकों के वेतन समझौते (2024) के समर्थन में आवाज उठाएं। अस्थायी श्रमिकों के अधिकारों के लिए यह संघर्ष पूरे देश के श्रमिकों को प्रोत्साहित करता है और मज़दूर आंदोलन के अपराधीकरण को चुनौती देता है।
मारुति मज़दूर आंदोलन : एक नज़र मे
(अन्यायपूर्ण दमन के साथ अन्यायपूर्ण सजा भोगते मारुति के संघर्षरत मज़दूरों के साथ असल में हुआ क्या… मेहनतकश वेबसाइट में धारावाहिक 10 किस्तों में प्रकाशित मारुति आंदोलन की जीवंत तस्वीर प्रस्तुत करता है…)
संलग्न लिंक पर क्लिक करके पढ़ें/जानें-
- दूसरी क़िस्त- संघर्ष, यूनियन गठन और झंडारोहण
- तीसरी क़िस्त – दमन का वह भयावह दौर
- चौथी क़िस्त- दमन के बीच आगे बढ़ता रहा मारुति आंदोलन
- पाँचवीं क़िस्त- रुकावटों को तोड़ व्यापक हुआ मारुति आंदोलन
- छठीं क़िस्त- मारुति आंदोलन : अन्याय के ख़िलाफ़ वर्गीय एकता
- सातवीं क़िस्त- मारुति कांड : जज और जेलर तक उनके…
- आठवीं क़िस्त- मारुति कांड : फैसले के ख़िलाफ़ उठी आवाज़
- नौवीं क़िस्त- मारुति संघर्ष : न्यायपालिका भी पूँजी के हित में खडी
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