प्रबंधन और शासन-प्रशासन-पुलिस संघर्ष रोकने के हर हथकंडे अपना रही है। लेकिन मज़दूर पूरी दृढ़ता से मैदान में डटे हैं- “गिरफ्तार हो जाएंगे, लेकिन न्याय के बिना वापस नहीं जाएंगे।”
मानेसर, गुड़गांव। साल 2012 में फर्जी आरोपों में अविधिक रूप से बर्खास्त किए गए मज़दूरों का आंदोलन एक बार फिर नए जोश के साथ तेज हो गया है। मारुति सुजुकी स्ट्रगल कमेटी के बैनर तले मजदूरों का 18 सितंबर से आईएमटी मानेसर तहसील पर अनिश्चितकालीन धरना जारी है।
अदालत से 500 मीटर का स्टे; पुलिस द्वारा चुनाव का कुतर्क
मारुति के अन्यायपूर्ण बर्खास्तगी के शिकार मजदूरों ने जैसे ही इस कार्यक्रम की घोषणा की, मारुति प्रबंधन तथा पुलिस-प्रशासन और सरकार मजदूरों के खिलाफ सक्रिय हो गई। प्रबंधन ने निचली अदालत में कंपनी परिसर से 2 किलोमीटर की दूरी तक धरना-प्रदर्शन पर रोक का आवेदन लगा दिया।
17 सितंबर को अदालत में हुई सुनवाई के दौरान मजदूरों ने स्वयं पैरवी की क्योंकि वकील का खर्चा वहन करने की स्थिति नहीं थी। अदालत में मजदूरों ने पूरे मामले और अपनी पूरी स्थिति को बयां किया। अंततः अदालत ने मारुति सुजुकी मानेसर प्लांट के गेट नंबर 2 से 500 मीटर तक धरना प्रदर्शन पर रोक लगाने का आदेश दिया।
इससे पूर्व 14 सितंबर को स्थानीय पुलिस ने मजदूरों को धारा 168 की नोटिस भेजी और कहा कि धरना प्रदर्शन की कोई अनुमति नहीं दी जा सकती है।




पुलिस दबाव के बावजूद मज़दूरों का धरना शुरू
पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत 18 सितंबर 2024 को गुड़गांव के डीसी कार्यालय पर मजदूर एकत्रित हुए जहां पुलिस ने धारा-144 और हरियाणा राज्य के चुनाव का हवाला देते हुए धरना प्रदर्शन से रोकने का प्रयास किया।
मजदूर डीसी ऑफिस से राजीव चौक तक जुलूस निकाले और फिर आईएमटी मानेसर की ओर प्रस्थान कर गए। पूरा आईएमटी मानेसर पुलिस छावनी में तब्दील था और वहां स्थित तहसील के बाहर बैरिकेड लगा दिया गया था। मजदूर अलग-अलग टेंपो से पहुंच रहे थे जिन्हें जबरदस्ती उतार दिया गया। पुलिस के साथ काफी वाद विवाद हुआ और उन्होंने तहसील पर भी धरना देने से रोका।
पुलिस इस बात को मानने को तैयार नहीं थी की गेट नंबर 2 से 500 मीटर के बाद न्यायालय के आदेश अनुसार वह धरना देंगे। पुलिस का यह भी कहना था कि वह तहसील में भी धरना नहीं देने देंगे चुनाव के बाद धरना प्रदर्शन आप करते रहो।
मजदूरों ने बड़े ही स्पष्ट शब्दों में सूझबूझ के साथ कहा कि ऐसी स्थिति में आपके पास तो विकल्प है या तो हमें गिरफ्तार कर लो और चुनाव होने तक जेल में रखो, चुनाव खत्म होगा तो हमें यहां धरना स्तर पर ले आना या फिर हमें धरना देने दो।
पुलिस महज ज्ञापन देने की बात करती रही लेकिन मजदूर दृढ़ संकल्प के साथ तहसील के बाहर ही धरने पर बैठ गए और तब से मजदूरों का अनिश्चितकालीन दिन रात का धरना आईएमटी मानेसर तहसील पर जारी है।

विभिन्न यूनियनों का मिला समर्थन
इस दौरान मजदूरों के धरना प्रदर्शन और संघर्ष में स्थानीय विभिन्न यूनियनों और तमाम संगठनों का लगातार साथ मिल रहा है। विभिन्न यूनियनों और मजदूरों की ओर से रहने, खाने आदि की व्यवस्था की जा रही है।
मजदूरों के संघर्ष को समर्थन देने वालों में सत्यम ऑटो यूनियन, लूमैक्स मजदूर यूनियन, ए एस आई यूनियन, दीगानिया मजदूर यूनियन, बेलसोनीका ऑटो कंपोनेंट इंप्लाइज यूनियन, हाइलेक्स मजदूर यूनियन, हीरो मोटोकॉर्प यूनियन आदि का समर्थन मिल चुका है।
इसके साथ ही साथ एचएमएस, श्रमिक संग्राम कमेटी, आईएमके, एमएसके, आईएमके पंजाब जैसे मजदूर यूनियनों/संगठनों ने भी धरना स्थल पर पहुंचकर समर्थन दिया है। मारुति की सभी यूनियनों के साझा मंच मारुति सुजुकी मजदूर संघ किस रूप में मजदूरों के साथ खड़ी होती है मजदूर इसे भी देख रहे हैं।

क्यों उतरे मज़दूर संघर्ष की राह पर?
उल्लेखनीय है कि विकट शोषण के बीच संघर्ष से मारुति मानेसर के मजदूरों ने अपनी यूनियन बनाई, जिसकी पहली मांग ठेका प्रथा के अंत की थी। प्रबंधन की पूरी नाराजगी इस मांग और मजदूरों की व्यापक एकता से थी।
18 जुलाई, 2012 की एक साजिशाना घटना के बाद चले भारी दमन के बीच
मारुति प्रबंधन ने 546 पक्के और 1800 ठेका मजदूरों को बर्खास्त कर दिया। दूसरी ओर पुलिस की धड़पकड़ शुरू हुई और 148 मजदूरों को जेल में डाल दिया गया।
तबसे मजदूरों का विकट स्थितियों में संघर्ष जारी है।
फर्जी आरोपों के बावजूद कोर्ट ने 117 मजदूरों को बाइज्जत बरी कर दिया। लेकिन यूनियन के तत्कालीन 12 पदाधिकारियों और मजदूर जिया लाल को उम्रकैद की सजा सुनाई गई, जिन्होंने 10 साल जेल में बिताकर बेल हासिल की।
संघर्ष का नया चरण
संघर्षरत मारुति के मजदूरों का कहना है कि सभी साथियों के बाहर आने के बाद, संघर्ष का नया चरण शुरू हुआ। 2022 के नवंबर से बर्खास्त मजदूर फिर से अपनी नौकरी के लिए सड़क पर उतर चुके हैं। गुड़गांव डीसी कार्यालय पर कई धरनों से लेकर विभिन्न जिलों में प्रदर्शन करने तक, हमने सरकार के सामने अपनी आवाज़ उठाने का हर संभव प्रयास किया। हमारी यूनियन और मारुति सुजुकी मजदूर संघ की सभी यूनियनें लगातार प्रबंधन के समक्ष हमारा मुद्दा उठाती रही हैं, लेकिन प्रबंधन अपने अन्यायपूर्ण फैसले पर अड़ा रहा।
मजदूरों के अनुसार 8 सितंबर को हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने मजदूरों को न्याय दिलाने का आश्वासन दिया। हरियाणा श्रम आयुक्त ने प्रबंधन को बुलाकर मजदूरों के साथ न्यायपूर्ण समझौता करने का आदेश दिया, लेकिन अभी तक प्रबंधन से कोई जवाब नहीं आया।
जब मजदूरों ने अपनी आवाज़ प्रबंधन तक पहुँचाने के लिए कंपनी गेट पर धरना देने का ऐलान किया, तो प्रबंधन कोर्ट चला गया। कोर्ट ने मजदूरों को गेट से 500 मीटर दूरी पर शांतिपूर्ण धरने की अनुमति दी, लेकिन मानेसर पुलिस ने कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर मजदूरों को तहसील पर ही रोक दिया।
मजदूरों का कहना है कि जापानी कंपनी के सामने देश की पुलिस, कोर्ट और सरकारें भी भारत के मजदूरों के साथ हो रहे अन्याय पर आँखें मूँदकर बैठी हैं। हमारे साथ न्याय इस अन्याय के पहाड़ को तोड़ने की एक चोट है। इस पूरे पहाड़ को गिराने के लिए सभी मजदूर आंदोलन में जुड़ें।
मारुति मज़दूर आंदोलन : एक नज़र मे
(अन्यायपूर्ण दमन के साथ अन्यायपूर्ण सजा भोगते मारुति के संघर्षरत मज़दूरों के साथ असल में हुआ क्या… मेहनतकश वेबसाइट में धारावाहिक 10 किस्तों में प्रकाशित मारुति आंदोलन की जीवंत तस्वीर प्रस्तुत करता है…)
संलग्न लिंक पर क्लिक करके पढ़ें/जानें-
- दूसरी क़िस्त- संघर्ष, यूनियन गठन और झंडारोहण
- तीसरी क़िस्त – दमन का वह भयावह दौर
- चौथी क़िस्त- दमन के बीच आगे बढ़ता रहा मारुति आंदोलन
- पाँचवीं क़िस्त- रुकावटों को तोड़ व्यापक हुआ मारुति आंदोलन
- छठीं क़िस्त- मारुति आंदोलन : अन्याय के ख़िलाफ़ वर्गीय एकता
- सातवीं क़िस्त- मारुति कांड : जज और जेलर तक उनके…
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- नौवीं क़िस्त- मारुति संघर्ष : न्यायपालिका भी पूँजी के हित में खडी