मारुति मजदूर आंदोलन: 30 सितंबर को मजदूर सभा; बर्खास्त मज़दूरों के साथ महिलाएं भी जुटेंगी

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मानेसर (गुड़गांव)। तमाम विरोधों के बावजूद 2012 से अविधिक रूप से बर्खास्त मारुति सुजुकी मानेसर के मजदूरों का जुझारू आंदोलन व धरना आईएमटी मानेसर तहसील पर जारी है। इस बीच विविध कार्यक्रमों से आंदोलन को मजबूती मिल रही है। मजदूरों द्वारा अपने हालात और अन्याय पूर्ण कार्यवाहियों के संबंध में क्षेत्र बस्तियों व आम मजदूरों के बीच में पर्चा वितरण कार्यक्रम जारी है।

इस दौरान संघर्षरत मारुति मजदूरों ने नए कार्यक्रमों की भी घोषणा की है। 28 सितंबर को शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जन्मदिवस पर मजदूर प्रभात फेरी निकालेंगे और फिर धरना स्थल पर विचार गोष्ठी आयोजित करेंगे।

इसी क्रम में 30 सितंबर को धरना स्थल पर मजदूर सभा का आयोजन होगा, जिसमें संघर्षरत मजदूरों की महिलाओं सहित पूरा परिवार जुटेगा, साथ ही क्षेत्र की विभिन्न यूनियनों व मजदूर संगठनों के प्रतिनिधि भी एकत्रित होंगे और संघर्ष को और तेज करने का ऐलान करेंगे।

मारुति मजदूरों द्वारा पूरे क्षेत्र में वितरित हो रहा पर्चा

मजदूर साथियों से आह्वान!

दोस्तों, हम मारुति के बर्खास्त मजदूर हैं। हमने सालों तक मारुति कार प्लांट में 3,500 से 5,000 रुपये की तनख्वाह पर मैनेजमेंट की बेलगाम तानाशाही के नीचे काम किया है। प्लांट के पहले 5-7 साल इसे अपने पैरों पर खड़ा करने में हमारा ही पसीना बहा है।

2011 में जब मजदूरों का एक हिस्सा पक्का हुआ, तो हमने अपनी यूनियन बनाने की पहल की। यूनियन बनाना हमारी बुनियादी ज़रूरत थी। क्यों? क्योंकि यूनियन ही प्रबंधन के सामने हमारी आवाज़ उठाने का एकमात्र रास्ता था।

उस समय, 45 सेकंड में एक गाड़ी तैयार हो जाती थी। हमें रिलीवर नहीं मिलता था, और सामने रखी बोतल से पानी पीने के लिए रुकना भी संभव नहीं था। पेशाब रोके रखने से मजदूर बीमार पड़ जाते थे। एक वर्कर को एक से अधिक स्टेशन भी संभालने पड़ते थे। एक दिन की छुट्टी लेने पर इंसेंटिव के नाम पर मिलने वाले सैलरी का बड़ा हिस्सा कट जाता था। कंपनी में कुछ मजदूर पक्के तो हुए थे, लेकिन हमारे साथियों की बड़ी संख्या ठेका मजदूरों की ही थी।

जब हमने इन सभी मुद्दों को उठाने के लिए अपनी यूनियन बनाने की पहल की, तो प्रबंधन तुरंत इसे तोड़ने में लग गया। 2011 के जून से शुरू होकर पूरे साल संघर्ष तेज रहा। हड़ताल और लॉकआउट का सिलसिला चला, लेकिन स्थायी और ठेका मजदूरों की एकजुटता नहीं टूटी। ठेका मजदूरों को अंदर कराने के लिए पक्के मजदूर कंपनी पर कब्जा करके बैठ गए। उनके समर्थन में अन्य कंपनियों के मजदूरों ने भी हड़ताल कर दी। इस सबके बाद हमारी यूनियन, मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन, का रजिस्ट्रेशन हुआ, और साथ ही क्षेत्र में कई नई यूनियनें बनीं।

यूनियन बनने के बाद हमारी पहली मांग ठेका प्रथा के अंत की थी। एकता से मजदूरों ने कंपनी में कई अधिकार हासिल किए। लेकिन मैनेजमेंट हमारी इस ताक़त को तोड़ने का मौका ढूंढ रही थी। 18 जुलाई 2012 को उन्होंने वह मौका पा लिया।

हमारे साथी जिया लाल को सुपरवाइज़र ने जातिसूचक गालियाँ दीं। इसके बाद न्याय करने के बजाय प्रबंधन ने जिया लाल को सस्पेंड कर दिया, लेकिन सुपरवाइज़र पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसके विरोध में यूनियन ने आवाज़ उठायी तो प्रबंधन ने मौका देख कर विवाद को सुलझाने की जगह इसे एक बड़े कांड  का रूप दे दिया।

आग लगने से एक प्रबंधक की मौत हो गई। इसका हवाला देते हुए 546 पक्के और 1800 ठेका मजदूरों को बर्खास्त कर दिया गया। पुलिस की धड़पकड़ शुरू हुई और एक व्यक्ति की दुर्घटनावश मौत पर 148 मजदूरों को जेल में डाल दिया गया। कुछ मजदूरों को कंपनी से फिर से नौकरी देने का पत्र मिलने के बावजूद जेल में डाला गया।

इसके बाद से, आज तक, सरकार द्वारा गठित SIT ने मजदूरों को निर्दोष करार दिया। कंपनी न तो CCTV सबूत पेश कर सकी, न ही ज्यादातर मजदूरों की पहचान साक्षियों से हो सकी। प्रबंधन ने झूठे बयान दिलवाए, लेकिन कोर्ट ने 117 मजदूरों को बाइज्जत बरी कर दिया। फिर भी इन मजदूरों को कंपनी की साजिश के कारण 5 साल जेल में बिताने पड़े। प्रबंधन का पूरा केस खोखला साबित होने के बावजूद, हमारी यूनियन के 12 पदाधिकारियों और जिया लाल को उम्रकैद की सजा सुनाई गई, जिन्होंने 10 साल जेल में बिताकर बेल हासिल की। जब तक हमारा एक भी साथी जेल में था, सभी मजदूर और यूनियन उनके परिवारों के समर्थन में खड़े रहे।

सभी साथियों के बाहर आने के बाद, संघर्ष का नया चरण शुरू हुआ। 2022 के नवंबर से बर्खास्त मजदूर फिर से अपनी नौकरी के लिए सड़क पर उतर चुके हैं। गुड़गांव डीसी कार्यालय पर कई धरनों से लेकर विभिन्न जिलों में प्रदर्शन करने तक, हमने सरकार के सामने अपनी आवाज़ उठाने का हर संभव प्रयास किया। हमारी यूनियन और मारुति सुजुकी मजदूर संघ की सभी यूनियनें लगातार प्रबंधन के समक्ष हमारा मुद्दा उठाती रही हैं, लेकिन प्रबंधन अपने अन्यायपूर्ण फैसले पर अड़ा रहा।

8 सितंबर को हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने मजदूरों को न्याय दिलाने का आश्वासन दिया। हरियाणा श्रम आयुक्त ने प्रबंधन को बुलाकर मजदूरों के साथ न्यायपूर्ण समझौता करने का आदेश दिया, लेकिन अभी तक प्रबंधन से कोई जवाब नहीं आया। जब मजदूरों ने अपनी आवाज़ प्रबंधन तक पहुँचाने के लिए कंपनी गेट पर धरना देने का ऐलान किया, तो प्रबंधन कोर्ट चला गया। कोर्ट ने मजदूरों को गेट से 500 मीटर दूरी पर शांतिपूर्ण धरने की अनुमति दी, लेकिन मानेसर पुलिस ने कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर मजदूरों को तहसील पर ही रोक दिया।

साथियों, हम बहुत लंबा और जोखिम भरा सफर तय करके आज यहाँ पहुँचे हैं। 12 साल का संघर्ष, जो सड़क पर दिखता है, उसे तो देखा जा सकता है, लेकिन हर मजदूर के घर-परिवार के लिए ये साल कैसे बीते हैं, यह कहानी न सुनी जा सकती है और न सुनाई जाएगी। ज्यादातर मजदूरों के परिवार गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। बच्चों की पढ़ाई से लेकर रोज़ी-रोटी जुटाना मुश्किल हो गया है।

यह सब मारुति सुजुकी प्रबंधन ने इसलिए किया ताकि हमारे संघर्ष की मिसाल को तोड़ा जा सके, लेकिन कंपनी आज तक इसमें सफल नहीं हुई है और कभी नहीं होगी। क्योंकि हमने अपने संघर्ष को क्षेत्र और देश के अन्य मजदूरों के संघर्षों से जोड़ा है, और उसी तरह क्षेत्र और देश के मजदूरों ने भी हमारे संघर्ष में साथ दिया है।

मजदूरों की इस एकता के सामने मारुति प्रबंधन की जिद कमजोर पड़ी है और आगे भी कमजोर पड़ेगी। आज भी मारुति प्रबंधन गैरकानूनी तरीके से कंपनी चला रहा है। सिर्फ 1800 पक्के मजदूरों को रखकर 9000 से ज्यादा अप्रेंटिस, ट्रेनी और ठेका मजदूरों से स्थायी उत्पादन करा रहा है।

जापानी कंपनी के सामने देश की पुलिस, कोर्ट और सरकारें भी भारत के मजदूरों के साथ हो रहे अन्याय पर आँखें मूँदकर बैठी हैं। हमारे साथ न्याय इस अन्याय के पहाड़ को तोड़ने की एक चोट है। इस पूरे पहाड़ को गिराने के लिए सभी मजदूर आंदोलन में जुड़ें।

हमारे धरने को रोकने के लिए पुलिस हमें चुनाव आचार संहिता का हवाला दे रही है। लेकिन क्या चुनाव में मजदूरों की भागीदारी सिर्फ किसी नेता के नाम का बटन दबाने तक सीमित है? क्या यह जरूरी नहीं कि इस समय हम मजदूरों के मुद्दे उठाएँ? पूछें कि यूनियनों और पक्की नौकरियों को खत्म करने वाले नए श्रम कानून क्यों लाए जा रहे हैं? क्यों कांग्रेस से लेकर भाजपा तक के मुख्यमंत्री मारुति मजदूरों को न्याय नहीं दिला पाए और हमेशा कंपनी के वफादार नज़र आते रहे? क्यों श्रम विभाग व्यापक ठेका प्रथा देखकर भी कंपनियों पर छापे नहीं मारता?

ये सवाल पूछने ज़रूरी हैं। और अब हमें जेल हो या लाठियाँ खानी पड़े, हम अपने सवालों का जवाब, न्याय, और अपनी नौकरियों के बिना वापस नहीं जाएँगे। सभी मजदूर साथियों से आग्रह है कि इस संघर्ष में हमारा साथ दें!

– आईएमटी मानसर, 20 सितंबर, 2024


मारुति मज़दूर आंदोलन : एक नज़र मे

(अन्यायपूर्ण दमन के साथ अन्यायपूर्ण सजा भोगते मारुति के संघर्षरत मज़दूरों के साथ असल में हुआ क्या… मेहनतकश वेबसाइट में धारावाहिक 10 किस्तों में प्रकाशित मारुति आंदोलन की जीवंत तस्वीर प्रस्तुत करता है…)

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