यात्रियों से बम्पर लूट : स्पेशल ट्रेन के बहाने, प्लेटफॉर्म टिकट महँगा व पैसेंजर को एक्सप्रेस करके

कोरोना आपदा को कमाई का धंधा बनाते हुए मोदी सरकार के रेल मंत्रालय ने जीरो से नियमित ट्रेनों को स्पेशल बनाकर दस महीने में महज उत्तर प्रदेश में आठ सौ करोड़ रुपए की कमाई की है।

आपदा बना अवसर : यात्रियों से लूट के कई रास्ते बेलगाम

कोरोना पाबंदियों के बीच मोदी सरकार ने एक निश्चित योजना के तहत पिछले साल देश की रेल सेवाएं ठप्प कर दीं। जनता को इस स्थिति में पहुँचा दिया कि किसी भी शर्त पर रेल सेवाएं बहाल हों, चाहें कोई भी कीमत अदा करना पड़े।

जनता की इस मजबूरी का फायदा उठाकर महकमें ने रेल सेवा बहाल करते हुए तमाम तरीके से रेल सेवा महँगी कर दी। सबसे बड़ी लूट नियमित ट्रेनों को ‘स्पेशल’ बनाकर हो रही है।

रेलवे उन्हीं नियमित ट्रेनों को कोविड, पूजा, त्योहार स्पेशल या स्पेशल में तब्दील कर चला रहा है। इसके साथ ही प्लेटफॉर्म टिकट के दाम 10 रुपये से बढ़ाकर 30 से 50 रुपये हो चुका है। जनरल में भी रिजर्वेशन चार्ज वसूल जा रहा है।

पैसेंजर ट्रेन को मेल-एक्सप्रेस और मेल-एक्सप्रेस को स्पेशल ट्रेन के रूप में चलाने का ऐलान करके मोदी सरकार द्वारा यात्रियों की जेब पर एक और डकैती बढ़ी है। हालांकि इन ट्रेनों की गति भी पहले की ही तरह रहेगी, कोई भी नई सुविधा को नहीं जोड़ा गया है, लेकिन किराया काफी बढ़ गया।

#उदारीकरण के तीन दशक – धारावाहिक-

‘जीरो’ लगा बना स्पेशल, रेलवे सफर हुआ काफी महँगा

नियमित ट्रेन के नंबर में सबसे पहले ‘जीरो’ लगा देने से वह स्पेशल ट्रेन बन जाती है और किराया नियमित से अधिक हो जाता है। जीरो के इस खेल में कोविड स्पेशल और फेस्टिवल स्पेशल ट्रेन के नाम पर रेलवे महकमा 100 से 500 रुपए तक अधिक किराया वसूल रहा है। उसने एक ही स्टेशन पर जाने के लिए अलग-अलग किराया तय कर दिया है।

इन स्पेशल ट्रेनों में नियमित ट्रेन से करीबन 30 से 40 फीसदी तक अतिरिक्त किराया वसूला जा रहा है, जबकि त्योहार स्पेशल के नाम पर चल रही ट्रेनों में किराया दोगुना तक वसूला जा रहा है।

उदाहरण के रूप में जयपुर से त्यौहार स्पेशल ट्रेन में स्लीपर किराया 385 रूपए तक वसूला जा रहा है। जबकि स्पेशल ट्रेन में स्लीपर 145 रूपए तक चार्ज लिए जा रहे है।

जयपुर से दौसा जाने वाले यात्री को स्लीपर श्रेणी में जयपुर-हिसार स्पेशल ट्रेन में 145 रुपए, जयपुर प्रयागराज स्पेशल में 175 और अजमेर-जम्मूतवी ट्रेन में 385 रुपए किराया देना पड़ रहा है। जबकि तीनों ट्रेन एक ही गति, एक ट्रैक और एक ही समय में पहुंचती है।

टाटानगर से हावड़ा के बीच हावड़ा-टाटा स्पेशल के एसी चेयरकार का किराया 555 रुपए है, वहीं हावड़ा-बड़बिल स्पेशल में 470 रुपए है। गीतांजलि एक्सप्रेस के स्लीपर क्लास में 215 रुपए लगते हैं, जबकि एलटीटी-हावड़ा स्पेशल में 385 रुपए लिया जाता है।

स्पेशल के बहाने कमाई हो रही है जबरदस्त

अमर उजाला में छपी रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ चारबाग स्टेशन से चलने और गुजरने वाली 125 ट्रेनों से महज 10 महिने में रेलवे ने 280 करोड़ से अधिक की कमाई की है। इसमें लखनऊ जंक्शन और ऐशबाग से गुजरने वाली और चलने वाली ट्रेनें शामिल नहीं हैं। रेल अफसरों के मुताबिक, स्पेशल ट्रेन में स्लीपर व एसी क्लास में पांच सौ रुपये तक अतिरिक्त रूप से खर्च करने पड़ रहे हैं।

इन नियमित ट्रेनों को स्पेशल बनाने से हुई कमाई के आंकड़े रेलवे बोर्ड के पास नहीं हैं। पर, लखनऊ से चलने व गुजरने वाली 125 ट्रेनों में औसतन 600 यात्रियों ने जनवरी से रोज सफर किया, जिनसे रेलवे ने स्पेशल ट्रेन के नाम पर अलग-अलग श्रेणियों में औसतन 125 रुपये प्रति यात्री वसूला।

इस लिहाज से 125 ट्रेनों में औसतन छह सौ यात्रियों से प्रतिमाह 28 करोड़ रुपये कमाए और दस महीने में यह कमाई 280 करोड़ रुपये हो गई। हालांकि, यह आंकड़ा इससे भी अधिक हो सकता है।

किराए का अंतर : नमूना देखें-
लखनऊ से मुंबई
श्रेणी             नियमित         स्पेशल
स्लीपर           570          805
थर्ड एसी         1,490       2,015
सेकेंड एसी       2,135       2,385

लखनऊ से दिल्ली
श्रेणी             नियमित         स्पेशल
स्लीपर           219          415
एसी             835          1,100

मध्यप्रदेश के चंद्र शेखर गौड़ की ओर से दाखिल एक आरटीआई के जवाब में रेलवे ने बताया कि यात्री किराये से पहली तिमाही में इसकी कमाई 4921.11 करोड़ रही थी। वहीं, दूसरी तिमाही में बढ़ कर यह 10,513.07 करोड़ रुपये हो गई। इस तरह वित्त वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही में यात्रियों से रेलवे की कमाई में 113 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।

‘स्पेशल’ के नाम पर वसूली का धंधा मोदी राज की देन

यदि रेलवे नियमित ट्रेन चलाता है तो उसे वही किराया मिलेगा, जो कि तय किया गया है। लेकिन यदि वह स्पेशल ट्रेन चलाता है तो उस ट्रेन की अधिकतर श्रेणी का किराया अपने आप 30 फीसदी बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि रेलवे ने इस तरह का एक कामर्शियल सर्कुलर जारी किया है।

मोदी राज के शुरुआत में ही 21 मई 2015 को, रेलवे बोर्ड ने स्पेशल ट्रेन के लिए एक कामर्शियल सर्कुलर निकाला था। इसमें कहा गया है कि स्पेशल ट्रेनों में स्पेशल चार्ज लगेगा।

उस सर्कुलर के मुताबिक स्पेशल ट्रेन में सेकेंड क्लास के टिकट का दाम सामान्य ट्रेन के बेसिक फेयर का 10 फीसदी ज्यादा होगा जबकि स्लीपर क्लास, 3 एसी, 2 एसी और एसी प्रथम में अन्य ट्रेनों के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा होगा। इसके अलावा रिजर्वेशन चार्ज, सुपर सरचार्ज और मेला सरचार्ज आदि नियमानुसार लगेगा।

#उदारीकरण के तीन दशक – धारावाहिक-

कम दूरी की यात्रा के किराये में बम्पर बृद्धि

मोदी सरकार ने रेल किराया बढ़ाने के और भी तरीके ईजाद किए हैं। इस साल फरवरी माह में भारतीय रेलवे ने कम दूरी की ट्रेनों का किराया बढ़ा दिया। रेलवे ने कठदलीली दी कि कोरोनाकाल में छोटी दूरी की ट्रेन में गैर-जरूरी भीड़ बढ़ने से रोकने के लिए किराये में बढ़ोतरी की गई है।

रेलवे ने लोकल ट्रेनों के किराये में दोगुना तक बढ़ोतरी कर दी। 25 रुपये की दूरी के लिए 55 रुपये किराया और 30 रुपये की जगह अब 60 रुपया किराया वसूला जा रहा है।

जनरल टिकटों पर रिजर्वेशन चार्ज, प्लेटफ़ॉर्म टिकट महँगा

रेलवे ने अनारक्षित टिकट काउंटर (यूटीएस) बंद कर रखे हैं। जनरल टिकट भी रिजर्वेशन पर मिल रहे हैं, इससे यात्रियों को 15 रुपये अतिरिक्त भुगतान करने पड़ रहे हैं।

लखनऊ से कानपुर जाने वाली गाड़ियों में सेकंड सीटिंग क्लास का टिकट बुक कराने पर 75 रुपये का भुगतान करना पड़ रहा है। इसमें 15 रुपये रिजर्वेशन चार्ज है।

रिजर्वेशन चार्ज जोड़कर लखनऊ से वाराणसी की ट्रेन में सेकंड सीटिंग का किराया 120 रुपये, प्रयागराज के लिए 95 रुपये, बरेली का 105 रुपये, हरदोई का 65 रुपये और सहारनपुर का किराया 200 रुपये हो गया है।

इसी के साथ रेलवे ने प्लेटफॉर्म टिकट के दाम 10 रुपये से बढ़ाकर 30 रुपये और यहां तक कि कुछ निश्चित जोन में 50 रुपये करके जनता की जेब पर डकैती डाल रहा है। यही नहीं रेलवे ने एक आदेश के तहत रेल परिसर में बिना मास्क घूमने पर 500 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया है।

#उदारीकरण के तीन दशक – धारावाहिक-

पूरा खेल रेलवे के निजीकरण के लिए

दरअसल मोदी सरकार जनता के खून-पसीने से खड़ी देश की सार्वजनिक व सरकारी उद्योगों-संपत्तियों को देश-दुनिया की मुनाफाखोर कंपनियों को औने-पौने दमों में सौंपने की कवायद में शुरू से लगी हुई है। इसी क्रम में सबसे बड़े सार्वजनिक महकमें रेलवे को भी निजी हाथों में देने को तैयार है।

इसके लिए वह किस्तों में रेलवे के निजीकरण के साथ मनमाना किराया वसूलने के कई रास्ते खोल चुकी है। इसी के साथ जनता की मानसिकता को इस लूटे जाने के लिए सहज तैयार और स्वीकार करने के लिए भी तैयार कर रही है, और सफल भी है।

मोदी जमात की यही खूबी है- लूटने वाले उसके पूँजीपति यार खुश और लुटती-पिटती जनता श्रद्धा भाव से मग्न!

About Post Author

भूली-बिसरी ख़बरे