रेलवे के बाद शिपिंग कारपोरेशन की बारी, प्राइवेट हाथों में सौंपने की तैयारी

फायदे में चलने वाली कंपनियों को भी पूंजीपतियों को बेचना चाहती है मोदी सरकार

दिल्ली। मोदी सरकार देश की सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी को पूंजीपतियों को बेच देना चाहती है। शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया देश की सबसे बड़ी कंपनी है, जो समुद्र के रास्ते आयातित माल का 75 प्रतिशत संभालती है। प्राइवेट होने के बाद से लाखों लोगों के रोजगार पर संकट रहेगा।


शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया देश की औद्योगिक अर्थव्यवस्था की जान है। कंपनी के पास करीब 120 करोड़ रूपये के लगभग 70 प्रकार के मालवाहक जहाज हैं।


मोदी सरकार का टारगेट अब इसकी संपतियों को बोली लगाकर बेचने का है। शिपिंग मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि इसी माह के प्रारंभ में ही 63 प्रतिशत संपतियों को अलग अलग प्रकार से बेचने की सिफारिश कैबिनेट को भेजी जा चुकी है।
शिपिंग कारपोरेशन आॅफ इंडिया के पास पांच बहुत बड़े कच्चे वाहक, 29 छोटे कच्चे टैंकर और गैस वाहक है। इसके अलावा सभी भारतीय जलजनित कार्गो का एक तिहाइ हिस्सा कंपनी देखती है। इसके हिस्से में ड्राई बल्क कैरियर, कंटेनर जहाज और कई घाट भी हैं।


सरकार ने 2017 में भी अपनी हिस्सेदारी बेचने की कोशिश की लेकिन शिपिंग मंत्रालय सहित विभिन्न संस्थाओं द्वारा विरोध के कारण इस रद्द कर दिया गया। विरोध करने वालों का कहना था कि राष्ट्रीय संपत्ति को बेचना गलत है।


मोदी सरकार देश के सरकारी व अर्ध सरकारी कंपनियों को पूंजीपतियों को बेचने आतुर है। देश में रोजगार की स्थिति यह है कि सन 2018 में सरकार ने रेलवे में 90 हजार पदों के लिए आवेदन मांगा, तो 25 लाख से ज्यादा लोगों ने आवेदन किया।


सरकार फायदे में चलने वाली कंपनियों को भी बेच रही है। रेलवे, आर्डिनेंस फैक्ट्री, भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन सहित 300 से ज्यादा नियम या सरकारी कंपनियों को बेचना चाहती है।

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