माइक्रोमैक्स मज़दूरों की “ललकार सभा” व रैली 27 दिसम्बर को

गैरकानूनी छँटनी-बंदी के ख़िलाफ़ एक साल से संघर्षरत हैं भगवती प्रोडक्ट्स (माइक्रोमैक्स) के मज़दूर
पंतनगर। भगवती प्रॉडक्ट्स (माइक्रोमैक्स) में 303 श्रमिकों की गैरकानूनी छँटनी और बाकी 48 मज़दूरों की गैरकानूनी गेटबंदी के एक साल पूरा होने पर 27 दिसंबर 2019 को कंपनी गेट स्थित अपने धरना स्थल पर मज़दूरों ने 11 बजे दिन से ’ललकार सभा’ और 3 बजे से ‘रैली’ का कार्यक्रम आयोजित किया है।
ज्ञात हो कि माइक्रोमैक्स के नाम से मोबाइल, पावर बैंक, एलईडी आदि बनाने वाली भगवती प्रोडक्ट्स लिमिटेड ने 27 दिसंबर 2018 को अपने पंतनगर प्लांट से 303 मज़दूरों की गैर कानूनी छँटनी कर दी थी। तबसे मज़दूरों के संघर्ष के एक साल पूरे हो रहे हैं।
इसबीच कंपनी के बाकी बचे 47 मज़दूरों को गैरकानूनी ले-ऑफ के बहाने गेटबन्दी भी जारी है। जबकि यूनियन अध्यक्ष सूरज सिंह बिष्ट को गैरकानूनी रूप से निलंबित कर रखा है। प्लांट बंद है, उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद मशीनें दूसरे राज्य शिफ्ट कर दी गई हैं।
इस अन्याय के खिलाफ एक साल से भयानक ठंड, गर्मी व बारिश को झेलते हुए माइक्रोमैक्स के मज़दूर संघर्षरत हैं। इस दौरान कंपनी गेट पर धरना और क्रमिक अनशन लगातार जारी है। साथ ही उच्च न्यायालय, नैनीताल और औद्योगिक न्यायाधिकरण में कानूनी लड़ाई भी जारी है।
भगवती श्रमिक संगठन ने विज्ञप्ति जारी करके बताया कि हमारी कोई माँग नहीं थी कि अचानक 27 दिसंबर 2018 को माइक्रोमैक्स प्रबंधन ने 303 श्रमिकों की गैरकानूनी छँटनी कर दी। असल मामला यह था कि सरकारी सब्सिडी और टैक्स की छूट का लाभ उठाकर प्रबंधन मज़दूरों के पेट पर लात मार कर राज्य से पलायन करना चाहता था।
दूसरा इस कंपनी का धंधा रहा है कि वह मजदूरों की भर्ती करता है, तीन-चार साल निचोड़ता है, फिर उनको बाहर करके नए लोगों से सस्ती दर पर काम कराता है। 2008 में कंपनी ने जिनकी भर्ती की 2011 में उन मजदूर भाइयों को निकाल दिया। फिर 2012 में जिनकी भर्ती की अब उन्हें निकाल दिया।
तीसरे प्रबंधन के नापाक इरादों की जानकारी मज़दूरों को मिली, कई मजदूरों की धीरे-धीरे किस्तों में छँटनी हुई या राज्य से बाहर भिवाड़ी (राजस्थान) और हैदराबाद (तेलंगाना) कई मज़दूर साथियों को गैरकानूनी रूप से भेजा जाने लगा तो मज़दूरों ने अपने आप को संगठित किया, यूनियन बनाई और यूनियन की फाइल पंजीकरण की प्रक्रिया में आई। जिसकी भनक लगते ही प्रबंधन ने यह गेम खेल दिया।
आज कंपनियों का यह धंधा बन गया है कि सब्सिडी और टैक्स की छूट का लाभ उठाकर मज़दूरों के पेट पर लात मारकर एक से दूसरे राज्य पलायन कर जाना।
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कभी जहाँ इस प्लांट में 5 हजार से ज्यादा मज़दूर काम करते थे, वर्तमान छँटनी तक करीब 400 मज़दूर बचे थे। माइक्रोमैक्स के इस प्लांट में काम करने वाले सभी महिला-पुरुष मज़दूर या तो बी टेक इंजीनियर हैं या डिप्लोमाधारी, जिन्हें महज 10-11 हजार रुपए मासिक पगार पर खटाया जाता है।
मज़दूरों ने बताया कि इस पूरे मामले में श्रम विभाग, जिला प्रशासन, पुलिस और राज्य सरकार खुलकर मालिकों के पक्ष में खड़ी रही, और हैं। मज़दूरों पर फर्जी मुक़दमे लगाए। यहाँ तक कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान माइक्रोमैक्स व इंट्रार्क के मज़दूरों को प्रशासन ने फर्जी मामले में पाबंद कर दिया। फिर भी मज़दूर संगठित और संघर्षरत रहे हैं।
मज़दूरों ने संकल्प बाँधा है कि वे अपने संघर्ष को और भी ज्यादा मजबूती से आगे बढ़ाएंगे, लड़ेंगे और अपना हक लेकर रहेंगे। इसी उद्देश्य से गैरकानूनी छँटनी व बंदी तथा संघर्ष के एक साल पूरा होने पर आगामी 27 दिसम्बर को ‘ललकार सभा व रैली’ का आयोजन किया है।