भयावह ठंड के बीच मज़दूरों के संघर्ष जारी

माइक्रोमैक्स, वोल्टास, एलजीबी, एमकोर, गुजरात अंबुजा के मज़दूर लगातार हैं संघर्षरत

रुद्रपुर (उत्तराखंड)। दिसंबर का ठंड ऊपर से बारिश का कहर, इसके बीच जहाँ एक और भगवती प्रोडक्ट्स (माइक्रोमैक्स) और एमकोर के मजदूरों का धरना दिन-रात चल रहा है, वही वोल्टास के मजदूरों का भी धरना गेट पर जारी है। दूसरी ओर गैरकानूनी गेट बंदी के खिलाफ एलजीबी के मज़दूर संघर्षरत हैं, तो गुजरात अंबुजा के मज़दूर माँग पत्र को लेकर संघर्ष को आगे बढ़ा रहे हैं।

माइक्रोमैक्स मज़दूर आन्दोलन का एक साल

सिडकुल, पंतनगर स्थित भगवती प्रोडक्ट्स (माइक्रोमैक्स) में 303 श्रमिकों की गैरकानूनी छँटनी के खिलाफ मजदूरों के संघर्ष का एक साल होने जा रहा है और मजदूर कंपनी गेट के पास दिन रात के धरने पर लगातार बैठे हुए हैं।

माइक्रोमैक्स मज़दूरों का यह संघर्ष एक ऐसे दौर में चल रहा है जब पूरे देश में श्रम कानूनी अधिकारों को मजदूरों से छीनने लिए मोदी सरकार पूरी तरह से आक्रामक है। उसी के अनुरूप स्थानीय शासन, प्रशासन, श्रम विभाग, सभी मजदूरों के दमन पर खुलेआम उतारू है। और मजदूरों पर फर्जी मुकदमे लगाये हैं।

दरअसल 27 दिसंबर 2018 को माइक्रोमैक्स प्रबंधन ने गैरकानूनी रूप से 303 श्रमिकों की छँटनी कर दी थी। शेष श्रमिकों में से यूनियन अध्यक्ष का गेट बंद रखा और बाद में निलंबित कर दिया। अन्य श्रमिकों को गैरकानूनी लेऑफ से बाहर बैठा रखा है। ऐसे में पिछले एक साल से मज़दूरों का कंपनी गेट पर लगातार धरना व क्रमिक अनशन जारी है। जमीनी स्तर पर आंदोलन के साथ कानूनी लड़ाई हाईकोर्ट से इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल तक चल रहा है।

बंदी के ख़िलाफ़ एमकोर मज़दूरों का आन्दोलन जारी

सितारगंज स्थित एमकोर प्लेक्सिबल के प्रबंधन ने विगत 29 जुलाई को कंपनी बंद कर दी थी और राज्य से बाहर पलायन की तैयारी में जुट गया। तब से मजदूरों का आन्दोलन जारी है। इसबीच नैनीताल हाईकोर्ट ने मशीनों की शिफ्टिंग पर रोक लगा दी है। फिर भी शासन, प्रशासन, श्रम विभाग मौन है और मज़दूर संघर्षरत हैं।

गैरकानूनी बंदी के खिलाफ सितारगंज स्थित एमकोर के मज़दूर विगत 5 महीने से दिन रात का धरना चला रहे हैं।

गैरकानूनी गेटबंदी के ख़िलाफ़ संघर्षरत वोल्टास मज़दूर

वोल्टास लिमिटेड, पंतनगर के 8 मज़दूर पिछले 25 सितंबर से गैरकानूनी कामबंदी के शिकार बने हैं, जिसमें यूनियन के अध्यक्ष, महामंत्री व संगठन मंत्री भी शामिल हैं। प्रबंधन ने मज़दूरों का पूरा वेतन भी काट दिया। लेकिन श्रम विभाग प्रबन्धन की भाषा बोल रहा है।

दरअसल वोल्टास इम्पलाइज यूनियन ने नए वेतन समझौते के लिए 9 दिसंबर 2017 को माँग पत्र दिया था। प्रबंधन तब से लगातार मज़दूरों का दमन और शोषण कर रहा है। इस दौरान प्रबंधन मज़दूरों की कई तरह से सुविधाओं और वेतन में कटौतियाँ की। यूनियन ने स्थायीकरण की माँग उठाई थी तो प्रबंधन ने ठेका मज़दूरों को बाहर कर दिया। एक स्थाई मज़दूर को गैरकानूनी रूप से निलंबित किया। उसने पूरे मामले को उलझाये रखा, जबकि श्रम विभाग इस पर मूकदर्शक बना रहा, माँग पत्रा को श्रम न्यायालय में संदर्भित कर दिया।

एलजीबी में लगातार तेज होता दमन

एलजीबी यूनियन अध्यक्ष की गैरकानूनी बर्खास्तगी का मुकदमा सुप्रीम कोर्ट से हार जाने के बाद से एलजीबी प्रबंधन की बौखलाहट बढ़ गई है और वह तरह-तरह से मज़दूरों का दमन बढ़ा रहा है। उसने यूनियन के कोषाध्यक्ष ललित बोरा व संगठन मंत्री गोविंद सिंह की 11 नवंबर से गैरकानूनी गेटबंदी कर दी है। इसपर श्रम विभाग की भूमिका से भी मज़दूरों में नाराजगी है।

ऐसे में मज़दूर बड़े संघर्ष की तैयारी में हैं।

गुजरात अंबुजा में मज़दूर रखेंगे मौन व्रत

गुजरात अंबुजा कर्मकार यूनियन सिडकुल सितारगंज के सभी सदस्यों ने प्रबन्धन के अड़ियल रुख व दो साथियो के निलंबन के विरोद्ध मै आम सभा कर आन्दोलन को आगे बढ़ाते हुए  दिनांक 23-12-19 से कार्य के दौरान मौन व्रत कर कार्य करने का निर्णय लिया।

ज्ञात हो कि गुजरात अंबुजा एक्सपोर्ट लिमिटेड में यूनियन ने प्रबंधन को श्रमिक समस्याओं के लिए माँग पत्र दिए थे। जिसका समाधान करने की जगह प्रबंधन द्वारा गैरकानूनी गतिविधियों से श्रमिकों का शोषण एवं उत्पीड़न किया जा रहा है।

ये कठिन दौर के आन्दोलन हैं

देखने की बात यह है कि जहाँ एक तरफ मजदूर अपने हकों के लिए लगातार संघर्षरत हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार, शासन-प्रशासन, पुलिस, श्रम अधिकारी लगातार मज़दूरों का दमन उत्पीड़न ही कर रहे हैं। मज़दूर नेताओं का आरोप है कि कंपनी प्रबंधन जो भी कदम उठाता है, उसके लिए राय-परामर्श श्रम विभाग ही देता है।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि पूरे देश में मोदी सरकार द्वारा जिस प्रकार से लंबे संघर्षों के दौरान हासिल श्रम कानूनी अधिकार छीने जा रहे हैं, 44 श्रम कानूनों को मालिकों के हित में 4 श्रम संहिताओं में बांध दिया गया है, छँटनी-बंदी-लेआफ तेजी से बढ़ा है, सरकारी कंपनियां मुनाफाखोरों के हाथों ओने पौने दामों में बेची जा रही हैं और मज़दूरों को भ्रमित करने के लिए कश्मीर, 370, पाकिस्तान, नागरिक संशोधन कानून, एनआरआई आदि के खतरनाक खेल खेले जा रहे हैं, ऐसे में संघर्षरत मज़दूरों के सामने चुनौतियां बेहद कठिन हैं।

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