स्थाई रोजगार बनेगा सपना और छंटनी होगी आसान

औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक 2019 : फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट और छंटनी की परिभाषा बदल जाएगी
केंद्र सरकार ने 20 नवंबर (बुधवार) को औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक 2019 को संसद में पेश करने की मंजूरी दे दी, जो श्रम सुधारों के तहत तीसरा कोड है। मोदी सरकार 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को चार लेबर कोड बिल में समेटना चाहती है। दरअसल इसके जरिए केंद्र की भाजपा सरकार ने देश में पूँजी निवेश और उत्पादन व्यवस्था में पूँजीपतियों के मुनाफे को और ज्यादा सुरक्षित और सटीक बनाने के लिए श्रम कानूनों में परिवर्तन करते हुए उसे लगभग खत्म या कमजोर कर दिया है।
श्रम कानूनों परिवर्तन के पीछे सरकार का मुख्य उद्देश्य है स्थाई रोजगार को खत्म करना, ठेका प्रथा को कानूनी अमलीजामा पहनाते हुए श्रमिकों के प्रति नियोजकों और सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी को लगभग खत्म कर देना और सामाजिक सुरक्षा के नाम पर अस्पष्ट और गोलमोल नीति बनाए रखना। इस विधेयक में छंटनी और हायर एंड फायर के प्रावधानों को पूंजीपतियों और मालिकों के पक्ष में और लचीला बना दिया गया है।
संसद ने पहले ही मजदूरी पर संहिता (वेज कोड बिल) को मंजूरी दे दी है। व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य शर्तों पर कोड बिल बजट सत्र में पेश होने की संभावना है। सामाजिक सुरक्षा कोड बिल पर अभी आपत्तियां और सुझाव मांगे गए हैं।
औद्योगिक संबंध संहिता 2019 के प्रमुख प्रस्तावित प्रावधान
इस प्रस्तावित औद्योगिक संबंध संहिता 2019 को ट्रेड यूनियन एक्ट 1926, इंडस्ट्रियल एंप्लॉयमेंट (स्टैंडिंग ऑर्डर) एक्ट 1946 और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट 1947 को मिलाकर प्रस्तावित किया गया है।
इस विधेयक में विवादों के निपटारे के लिए औद्योगिक न्यायाधिकरण की जो अवधारणा है उसमें महत्वपूर्ण मामलों के निपटारे के लिए 2 सदस्यों वाली पीठ के निर्धारण का प्रस्ताव रखा गया है इसके अलावा अन्य मामलों का निपटारा एकल पीठ करेगी।
छंटनी प्रावधानों में लचीलापन और अस्पष्टता
प्रस्तावित विधेयक छंटनी और सेवा मुक्ति के अन्य संबंधित प्रावधानों को लचीलापन प्रदान करता है। 100 से ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनी में छटनी से पहले सरकार की अनुमति लेनी होगी जैसा कि पूर्व में प्रावधान था। हालांकि 2015 में जो मसौदा केंद्र सरकार लेकर आई थी उसमें इस सीमा को बढ़ाकर 300 कर दिया गया था जिसे ट्रेड यूनियनों और मजदूर वर्ग के विरोध के बाद इस बार वापस ले लिया गया है।
मगर इस बार कर्मचारियों को मिलने वाले छंटनी मुआवजे (अग्रिम नोटिस और 3 माह का अग्रिम वेतन भुगतान) का प्रावधान भी गायब है। लेकिन अधिसूचना के माध्यम से ‘कर्मचारियों की संख्या’ बदलने के लिए एक प्रावधान जोड़ा गया है (कार्यकारी आदेश)। इसका मतलब है कि सरकार की मंजूरी की कोई आवश्यकता नहीं होगी इस सीमा को विभागीय कार्यकारी आदेश द्वारा बदला जा सकता है।
निश्चित अवधि रोजगार (फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट)
बिल में फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट की जो परिभाषा है उसके अनुसार श्रमिक को नौकरी से निकालने से पहले नियोजक द्वारा किसी प्रकार का कोई नोटिस या मुआवजा नहीं देना होगा।
प्रस्तावित विधेयक के अनुसार कंपनियां उत्पादन और काम की माँग के अनुसार कर्मचारियों को 3 से 6 महीने के फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट पर रखने को स्वतंत्र होगी। वे अपनी मर्जी से इस समय सीमा को घटा या बढ़ा सकती है। इस कांटेक्ट की अवधि में नियोजित श्रमिकों को नियमित श्रमिकों के सामान माना जाएगा। इससे पहले कंपनियों में उत्पादन की माँग को पूरी करने के लिए ठेकेदारों के माध्यम से भर्ती की जाती थी जो अनिश्चित काल तक या एक लंबे समय तक कारखाने में नियोजित रहते थे।
वर्तमान प्रस्तावित बदलावों के बाद कंपनियां बिना ठेकेदार की मध्यस्थता के सीधे श्रमिकों को फिक्स टाइम कांटेक्ट पर रखेंगी और उत्पादन की माँग घटने के बहाने कंपनियां कभी भी श्रमिकों को बाहर का रास्ता दिखा सकती हैं।
गारमेंट उद्योग में, जोकि हमेशा बाजार और मौसमी माँग का रोना रोता रहता है वहां अभी भी फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट लागू है तथा गिने-चुने श्रमिकों को ही स्थाई श्रमिकों के सामान सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ मिलता है। सरकार के इस फैसले से सबसे ज्यादा लाभ गारमेंट उद्योग के मालिकों को होने वाला है।
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अगर ऑटोमोबाइल सेक्टर की बात करें तो नीमराणा औद्योगिक क्षेत्र में कई ऐसी कंपनियां है जहां उत्पादन में फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट लागू है। ऐसे श्रमिकों को एफटीसी कहा जाता है, जिन्हें 6 महीने से लेकर 2 साल तक के लिए रखा जाता है इस दौरान इन्हें ना तो बोनस मिलता है ना ही अन्य सामाजिक सुरक्षा या श्रम कानूनों का लाभ मिल पाता है।
हीरो मोटोकॉर्प नीमराना प्लांट का पूरा उत्पादन इसी एफटीसी के भरोसे है। ऐसे में सरकार का यह दावा की फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट में एक संस्थान के अंदर परमानेंट कर्मचारी के समान सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ मिलेगा हकीकत से कोसों दूर है। फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट परमानेंट नौकरी को खत्म कर देगा जिसमें लोग एक ही कंपनी या प्लांट में काम करते हुए रिटायर होते थे।
दरअसल पिछले साल मार्च 2018 में सरकार औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946, में फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट का कांसेप्ट लेकर आई थी और उसे केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले सरकारी क्षेत्रों में लागू करने का प्रयास किया था मगर उसे पूरी सफलता नहीं मिल पाई थी क्योंकि कई राज्य इस योजना को लागू नहीं कर पाए थे। इस बार केंद्र सरकार इसे कानून बनाकर पूरे देश में समान रूप से लागू कर रही है जिसे लागू करना राज्यों के लिए बाध्यकारी होगा।
वही औद्योगिक विवाद उत्पन्न होने पर संबंधित अधिकारी मामले को अपने स्तर पर निपटा सकता है तथा जुर्माना निर्धारित कर सकता है इसमें औद्योगिक ट्रिब्यूनल की भूमिका कम कर दी गई है।
तो यह है इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड बिल का प्रस्तावित मसौदा जो श्रम मंत्री संतोष गंगवार के अनुसार सरकार संसद के इसी शीतकालीन सत्र में लोकसभा में पेश करने वाली है। इस बीच एक बार फिर सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने 2020 की शुरुआत में 8 जनवरी को अखिल भारतीय हड़ताल का आह्वान किया है और श्रम कानूनों में प्रस्तावित संशोधनों का विरोध और न्यूनतम मज़दूरी के निर्धारण को लेकर संघर्ष जारी है।
पूँजीपति वर्ग और मौजूदा सरकार द्वारा जिस तरीके से निजीकरण और श्रम कानूनों में संशोधन के जरिए मजदूरों के कानूनी और संवैधानिक अधिकारों सहित उनकी सामाजिक सुरक्षा, स्थाई रोजगार, उचित मजदूरी पर हमला बोला जा रहा है उससे लड़ने के लिए और उसके खिलाफ एक प्रभावशाली और निर्णायक अखिल भारतीय प्रतिवाद और आंदोलन खड़ा करने में इस तरह के एक दिवसीय और सांकेतिक हड़ताल आगे बढ़ते हुए इसे निरन्तर और व्यापक सामाजिक आर्थिक लड़ाई का रूप देना होगा।
सवाल यह है कि मेहनतकश आवाम पर मौजूदा हमले के बीच लड़ाई लड़ने की तैयारी कितनी है।