वेतन संहिता: मज़दूरों के साथ बड़ा छलावा

राष्ट्रपति से भी अनुमोदन के बाद वेज कोड बना कानून
मोदी-2 सरकार ने आक्रामक रूप से मज़दूर अधिकारों को छीनने की गति को तेज कर दिया है। जब इसके खि़लाफ विरोध के स्वर उठ ही रहे थे, उसने कश्मीरी जनता की आज़ादी पर हमला बोलकर मज़दूरों को कथित राष्ट्रवादी बयार में उलझाकर मज़दूरों आवाज़ को दबा दिया। इसी के साथ उसने कश्मीर पर संघी एजेंडे को लागू भी कर दिया।
देशी-विदेशी पूँजीपतियों को खुश करते हुए उसने मज़दूर विरोधी चार श्रम संहिताओं में से एक वेतन श्रम संहिता विधेयक (वेज कोड बिल-2019) को संसद के दोनो सदनों में पारित करके विगत 8 अगस्त को राष्ट्रपति का भी अनुमोदन ले लिया।
मज़दूरी पर श्रम संहिता क्या है?
इससे लम्बे संघर्षों के दौरान हासिल मौजूदा 4 श्रम क़ानून – न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, मज़दूरी संदाय अधिनियम, बोनस संदाय अधिनियम और समान पारिश्रमिक अधिनियम समाप्त हो जायेंगे।
वेतन विधेयक संहिता पहले 10 अगस्त, 2017 को लोकसभा में पेश किया गया था, जिसे संसद की स्थायी समिति के पास भेजा गया था। समिति की रिपोर्ट 18 दिसंबर, 2018 को प्रस्तुत हुई थी। लेकिन लोकसभा चुनाव के कारण यह स्थगित रहा। अब प्रचंड बहुमत के बाद वेतन विधेयक, 2019 संहिता नाम से विधेयक आया।
संहिता की धोखाधाड़ी
वेतन संहिता विधेयक मे मज़दूरी तय करने के उस फार्मूले को पूरी तरह से बदल दिया है, जिसे 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन में तय किया गया था। श्रम मंत्री ने 10 जुलाई को 4,628 रुपए प्रति माह (178 रुपये दैनिक) राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन की घोषणा की है। जबकि सातवें वेतन आयोग ने 1 जनवरी, 2016 सें 18000 रुपए प्रतिमाह की अनुशंसा की थी, जो वर्तमान में 22000 रुपये मासिक हो चुकी है। यह भी ध्यानतलब है कि जुलाई, 2018 में सरकारी पैनल की एक्सपर्ट कमेटी ने प्राइस इंडेक्स के आधार पर देश में न्यूनतम दैनिक मज़दूरी 375 रुपये करने का सुझाव दिया था। इससे वेतन नीति की धेखाधड़ी साफ है।
★ विधेयक में लिखा है- इससे कामगार की क्रय शक्ति बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा। यानी मालिकों को सीधे लाभ।
★ तर्क दिया गया है कि विभिन्न श्रम कानूनों में वेतन की 12 परिभाषाएं हैं, जिन्हें लागू करने में कठिनाइयों व मुकदमेबाजी को बढ़ावा मिलता है। इसको सरल बनाया गया है, जिससे मुकदमेबाजी कम हो और एक नियोक्ता के लिए इसका अनुपालन सरलता हो। यानी न्यूनतम वेतन के लिए क़ानूनी संघर्ष का रास्ता भी बन्द होगा।
★ विधेयक में स्पष्ट लिखा है कि इससे प्रतिष्ठान लाभान्वित होंगे, क्योंकि रजिस्टरों की संख्या, रिटर्न और फाॅर्म आदि न केवल इलेक्ट्राॅनिक रूप से भरे जा सकेंगे। यानी यह झंझट भी ख़त्म!
★ पहले न्यूनतम वेतन निर्धारित करने के लिए त्रिपक्षीय प्रणाली थी जिसमें विभिन्न क्षेत्र के मज़दूर प्रतिनिधि, नियोक्ता और सरकार के प्रतिनिधि मिलकर सेण्ट्रल/स्टेट एडवाइज़री बोर्ड में न्यूनतम वेतन निर्धारित करते थे। पर अब मज़दूरों का प्रतिनिधित्व कमज़ोर कर दिया गया है जिससे मज़दूरों की भागीदारी लगभग ख़त्म हो जायेगी।
★ रोजगार के विभिन्न प्रकारों को अलग करके न्यूनतम वेतन के निर्धारण के लिए एक ही मानदंड बनाया गया है। जो मुख्य रूप से स्थान और कौशल पर आधारित होगा। यानी अलग-अलग प्रकृति और श्रेणियों जैसे अकुशल, अर्धकुशल, कुशल, अतिकुशल खत्म!
★ जीवन सरल बनाने की लफ्फ़ाजी के साथ कोड में साफ लिखा है कि आराम से व्यापार करने को बढ़ावा देने के लिए वेतन पर कोड है।
★ वेतन संहिता खतरनाक है, क्योंकि- वेतन-आयोग या वेतन-पुनरीक्षण आदि खत्म होंगे। एक ‘सलाहकार बोर्ड’ बनेगा जो वेतन तय करेगा।
★ पारिश्रमिक घंटे, दिन या महीने के हिसाब से तय होगा जो, पूरे समय काम के लिए या टुकड़े के काम के लिए मज़दूरी की एक न्यूनतम दर के हिसाब से मिलेगा।
★ टाइम वर्क व पीस रेट पर न्यूनतम मजदूरी तय करने की भी होगी व्यवस्था। मनमाने काम के घंटे तय करने की खुली छूट।
★ एक आम दिन में कुल काम के निर्धारित घण्टे के अतिरिक्त किसी आपातकालीन या पूरक काम, अनिरन्तर रोजगार, तकनीकी कारणों से ड्यिूटी खत्म होने से पहले करने वाले काम, प्रकृति की अनियमितता पर निर्भर काम आदि के बहाने ओवर टाइम भुगतान की बाध्यता नहीं होगी।
★ महिलाओं के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारण की प्रक्रिया में पुरुषों के बराबर वेतन मिलने के लिए कोई तय नियम नहीं है।
★ न्यूनतम वेतन, बोनस, समान वेतन आदि के दावे दाखिल करने को एक समान बनाया गया है। यानी सब धान एक पसेरी!
★ नई कंपनियो के लिए बोनस न देने की 5 साल की सीमा भी खत्म होगी।
★ बोनस या वेतन में धेखाधड़ी पर भी मालिक की गिरफ्तारी का प्रावधान खत्म, क्रिमिनल की जगह सिविल वाद बनेगा।
★ असंतोषजनक काम के बहाने मालिक को वेतन काटने की छूट रहेगी।
★ किसी को भी केवल 2 दिन की नोटिस पर काम से निकाला जा सकेगा।
★ 15 साल से कम उम्र के बालश्रमिकों को काम पर रखने की छूट होगी।
मज़दूर अधिकारों पर मोदी सरकार की डकैतियों को समझकर, उसके खि़लाफ व्यापक लाम्बन्दी और बड़े आन्दोलन से ही मज़दूर अधिकारों को बचाया जा सकता है। इसके लिए संघ-भाजपा की भ्रमपूर्ण कार्यवाहियों और गैर मुद्दों के उलझाव से बाहर निकलना होगा!
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