संघर्ष, यूनियन गठन और झंडारोहण

maruti-2011

मारुति मजदूरों का आंदोलन एक नजर मे – 2

(मारुति मज़दूर आंदोलन के विकास क्रम पर प्रोविजनल कमेटी के राम निवास की रिपोर्ट….)

दूसरी क़िस्त

तालाबंदी के खिलाफ संघर्ष

मारुति प्रबंधन ने 29 अगस्त 2021 को कंपनी को लॉक-आउट कर दिया और मजदूरों के सामने एक उत्तम आचरण पत्र रखा, जिस पर हस्ताक्षर करने के बाद ही मजदूरों को अंदर जाने की इजाजत थी।

इस उत्तम आचरण पत्र में बहुत सारी शर्तें ऐसी थी जो मजदूरों के बिलकुल खिलाफ थी। यदि मजदूर इन शर्तों को मानते हैं तो एक तरीके से वह अपना त्यागपत्र स्वयं दे रहे हैं । सभी मजदूरों ने इन शर्तों को मानने से इंकार कर दिया और कंपनी गेट के बाहर ही धरना देकर बैठ गए।

यह तालाबंदी लगातार 33 दिन तक चली। इस दौरान फिर से कंपनी प्रबंधन ने लगभग 94 मजदूरों को निलंबित व बर्खास्त कर दिया।

संघर्ष से मिली जीत, प्रबन्धन की मक्कारी

30 सितंबर 2011 को पुनः एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ। उस समझौते में बर्खास्त कुछ श्रमिकों को काम पर वापस लिया गया व कुछ अन्य को 1 घरेलू जांच के बाद लेने का निर्णय किया गया। दोनों पक्षों को श्रम विभाग की तरफ से सलाह दी गई कि कोई भी पक्ष द्वेष भावना से काम नहीं करेगा और संयंत्र को सुचारू रूप से चलाने में सहायता करेगा।

लेकिन जैसे ही हम सभी मजदूर संशोधित उत्तम आचरण पत्र पर हस्ताक्षर करके कंपनी के अंदर काम पर वापस गए तो मारुति प्रबंधन ने ठेकेदार के मजदूरों को काम पर लेने से मना कर दिया। प्रबन्धन ने कहा कि ये मजदूर यूनियन के सदस्य नहीं हैं इन्हें हम काम पर नहीं लेंगे।

ठेका मज़दूरों के लिए पुनः हड़ताल

ठेकेदार मजदूर भाइयों के लिए सभी मजदूरों ने फिर से 7 अक्टूबर 2011 को संयंत्र के अंदर ही हड़ताल पर बैठ गए। कंपनी प्रबंधन ने पुलिस प्रशासन के साथ मिलकर बहुत प्रयत्न किए लेकिन वह प्लांट से मजदूरों को बाहर नहीं निकाल सकी। अंततः उन्होंने उच्च न्यायालय का सहारा लिया जिसमें सभी मजदूरों को संयंत्र खाली करने का आदेश था।

उच्च न्यायालय के आदेश के बाद सभी मजदूरों ने प्लांट को खाली कर कंपनी गेट के बाहर फिर से धरना दिया और फिर से एक तीसरा समझौता 29 अक्टूबर 2011 को श्रम विभाग मारुति प्रबंधन व मजदूरों के बीच हुआ।

इस समझौते में सबकी कार्यबहाली हुई, लेकिन कंपनी प्रबंधन ने 30 जुझारू अगवा मजदूरों को जबरन त्यागपत्र देने के लिए मजबूर कर दिया और उन्हें एक मोटी रकम देकर प्लांट से बाहर निकाल दिया। प्रबंधन का मानना था कि इससे मजदूरों की एकता खत्म हो जाएगी और उन्हें अपने नेतृत्व पर भरोसा नहीं रहेगा।

http://मारुति मजदूर आंदोलन : एक नजर मे-1

यह सभी मजदूरों के लिए भी किसी सदमे से कम न था, लेकिन हम सभी ने लगातार तीन आंदोलनों से यह चीज स्पष्ट तौर से समझ ली थी कि यदि हम बगैर यूनियन के कंपनी के अंदर नौकरी करेंगे तो हमें गुलामों की तरह ही रखा जाएगा और हमें हमारी मूलभूत सुविधाओं से हमेशा के लिए वंचित रहना पड़ेगा।

संघर्ष से नई यूनियन का गठन और मान्यता

एकबार फिर से सभी मजदूरों ने एक नई ऊर्जा के साथ मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन का पंजीकरण करवाने के लिए आवेदन किया। तीन बड़ी हड़तालों के बाद कंपनी प्रबंधन के एक हिस्से में यूनियन को मान्यता देने की बातें चलने लगी और अंततः फरवरी 2012 के अंतिम सप्ताह में यूनियन पंजीकरण को मान्यता मिल गई।

1 मार्च 2012 को मारुति मानेसर के मजदूरों ने कंपनी गेट पर यूनियन का झंडारोहण किया और मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के प्रथम झंडा दिवस का जश्न मनाया।

क्रमशः जारी…