डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को याद करते हुए

जन्मदिवस पर : भारतीय इतिहास के इस महान नायक के संघर्षों से सीख लें!

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर कई प्रतिभाओं के धनी थे। वे एक राजनीतिज्ञ, न्यायविद, अर्थशास्त्री और समाज सुधारक थे। वे उस समय भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न अन्याय व कुरितियों से लड़ने के प्रति समर्पित रहे। अम्बेडकर ने हजारों सालों से भारतीय समाज का नासूर बने जाति व्यवस्था पर लगातार प्रहार किया और अछूतों के समर्थन में अभियान का नेतृत्व किया…।

डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर का जीवन

डॉ भीमराव अंबेडकर (14 अप्रैल 1891- 06 दिसंबर 1956)

बाबासाहेब भीम राव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को, भारतीय सेना के सूबेदार रामजी मालोजी सकपाल और उनकी पत्नी भीमाबाई के परिवार में हुआ| वे पेशे से शिक्षक व अधिवक्ता थे| भारतीय इतिहास में उन्हें भारतीय संविधान के जनक का ख़िताब हासिल है| इसके साथ ही वे आधुनिक भारत में एक पृथक विचारधारा के रचयिता भी रहे, जिसका भारतीय सामजिक जीवन और राजनीती पर एक दीर्घकालीन प्रभाव रहा है|

अपने पूरे जीवन के विभिन्न कार्यों द्वारा अम्बेडकर ने आधुनिक भारत में जाति व्यवस्था के खिलाफ चेतना और संघर्ष को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण योगदान किया|

अपने जीवन काल में वे विभिन्न संगठनों के ज़रिए अपना राजनैतिक और सामाजिक कार्य जारी रखने की कोशिश करते रहे और इनमें आती चुनौतियों का अपने दर्शन के मुताबिक़ सामना करने की कोशिश की|

जीवन के अंतिम दौर में उनका बौध धर्म से सम्बन्ध बना और मौत के कुछ महीनों पहले उन्होंने सार्वजनिक धर्मांतरण समारोह में बौध धर्म ग्रहण किया| 6 दिसंबर, 1956 को लंबे समय से ख़राब तबियत की स्थिति में उनकी मृत्यु हुई|

जाति व्यवस्था: भारतीय समाज और मज़दूर वर्ग की एकता को जर्जर करता प्राचीन रोग

जाति व्यवस्था भारतीय समाज को जकड़ रखने वाले सबसे प्राचीनतम रोगों में से है| आज भी जाति और धर्म मजदूर के परिचय का एक प्रमुख हिस्सा बने हुए हैं|

जाति का भेद ऐतिहासिक तौर से श्रम का भेद है| धोबी, नाई, चमार इत्यादि के नाम दे कर इसका प्रमुख इस्तेमाल सामंतवादी श्रम विभाजन को बनाये रखने और उसमें लगे मजदूरों को दबा कर रखने में हुआ| साथ ही मजदूरी करने वाली सभी जातियों को कभी भी समाज के संपत्ति – ज़मीन, पानी इत्यादि पर समान हक या सम्मान नहीं मिला|

आज भी इन जातीय भेद-भाव का इस्तेमाल मजदूर वर्ग को बाटने और दबा कर रखने में होता है| इसका साफ़ प्रमाण यह है कि देश के मजदूरों का बड़ा हिस्सा दलितों में से आता है| यही मजदूर महा-शहरों के झुग्गी-झोपडियों में, पानी, शौचालय का प्रबंध, बिजली और साफ़ वातावरण के आभाव में रहते हुए शहर के बड़े-बड़े घरों, इमारतों और फैक्ट्रियों में कौड़ी के भाव अपना श्रम बेचते हैं, जिससे मालिक और कांट्रेक्टर अपना मुनाफा कमाते हैं| ऊपर से सुंदरता और सभ्यता के नाम पर यह बार-बार हमारे झुग्गी-झोपड़ियों को तोड़ कर हमें बेघर और बेरोजगार बनाते हैं|

अम्बेडकर द्वारा उठाए गए जाति उन्मूलन और सामाजिक सुधार के सवाल अब भी उत्तर मांगते हैं|

डा भीमराव अंबेडकर के कुछ विचार

डा भीमराव अंबेडकर को आज उनकेँ विचार और कर्म के साथ याद किया जाने का दिन है…

असमानता व जाति व्यवस्था पर विचार-

“हमें यह बात संज्ञान में लेते हुए ही बात शुरू करनी चाहिए कि भारतीय समाज में दो चीजों का सिरे से अभाव है। इनमें से एक है समानता। सामाजिक स्तर पर, भारत में हम एक श्रेणीबद्ध असमानता के सिद्धांतों पर आधारित समाज में रहते हैं, …इनमें से कुछ के पास अकूत संपदा है दूसरी तरफ वे लोग हैं जो भीषण गरीबी में दिन गुजारते हैं। 26 जनवरी, 1950 से हम अंतर्विरोधों के एक युग में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में हमारे पास समानता होगी, सामाजिक व आर्थिक जीवन में असमानता। …अंतर्विरोधों भरे इस जीवन के साथ हम कब तक जियेंगे?”  ( डॉ भीम राव अम्बेडकर, स्पीच इन द कांस्टिट्यूएन्ट असेम्बली ऑन अडॉप्शन ऑफ द कॉन्स्टिट्यूशन, 25 नवंबर,1949)

“मेरी राय में इसमें कोई संदेह नहीं है कि जब तक आप अपनी सामाजिक व्यवस्था नहीं बदलेंगे, तब तक कोई प्रगति नहीं होगी। आप समाज को रक्षा या अपराध के लिए प्रेरित कर सकते हैं। लेकिन जाति-व्यवस्था की नींव पर आप कोई निर्माण नहीं कर सकते : आप राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते, आप नैतिकता का निर्माण नहीं कर सकते। जाति-व्यवस्था की नींव पर आप कोई भी निर्माण करेंगे, वह चटक जायेगा और कभी भी पूरा नहीं होगा।” ( डॉ भीम राव अम्बेडकर, जाति प्रथा उन्मूलन, 1936)

“हमारे पास यह स्वतंत्रता किसलिए है? हमारे पास यह स्वतंत्रता इसलिए है कि हम अपनी सामाजिक व्यवस्था जो असमानता, भेदभाव और अन्य चीज़ों से भरी है, हमारे मौलिक अधिकारों से टकराव में है को सुधार सकें।” ( डॉ भीमराव अंबेडकर, कांस्टिट्यूएन्ट असेम्बली डिबेट्स, खंड 7, 2 दिसंबर, 1948, पृ. 779-83)

मज़दूरों के संघर्ष का खाका खींचेते हुए अंबेडकर के विचार-

“मेरी राय में इस देश के श्रमिकों को दो दुश्मनों से लड़ना पड़ेगा-ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद.” ब्राह्मणवाद को परिभाषित करते हुए वे कहते हैं कि इस शब्द से उनका आशय सिर्फ ब्राह्मण जाति की सत्ता अधिकार और हित संबंध ही नहीं हैं,बल्कि उनके नजर में ब्राह्मणवाद के मायने हैं  “आजादी,समता और बंधुत्व का अभाव।” (आजादी समानता और बंधुभावना पर आधारित नयी पद्धति श्रमिक संगठन का लक्ष्य हो,बाबा साहब डॉ.अंबेडकर सम्पूर्ण वाङ्ग्मय,पी.डी.एफ,पृष्ठ-91, खंड: 39)