मारुति कांड (18 जुलाई) के 10 साल: अभी बहुत कुछ हासिल करना बाकी है!

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हर साल 18 जुलाई को प्रदर्शन कर विरोध प्रकट होता है। लेकिन वस्तुतः मजदूरों को लामबंद करने, मजदूरों को संघर्ष में उतारने के लिए जिस संघर्ष की जरूरत है, वह अभी तक नहीं हो पाया है।

मारुति कांड के एक दशक पूरा होने पर मारुति संघर्ष के सहयात्री साथी राम निवास का लेख

मारुति सुजुकी मानेसर प्लांट में अपना संगठन बनाने के लिए हुए अभूतपूर्व संघर्ष के बाद मैनेजमेंट ने यूनियन को मान्यता दे दी थी बल्कि ये कहें कि मैनेजमेंट ने यूनियन बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। एक तरफ तो वो नेतृत्व के साथ अच्छे रिश्ते बनाना चाहते थे, दूसरी ओर मजदूरों की एकता तोड़ने के लिए यह फैला दिया था कि यह यूनियन मैनेजमेंट की पॉकेट यूनियन है।

इस बात से मजदूरों में यूनियन प्रतिनिधियों के प्रति अविश्वास तो हो ही गया साथ में सजगता भी बढ़ी। अब हर किसी बात पर नेतृत्व के काम को भी परखा जाने लगा। यूनियन प्रतिनिधियों को भी इस बात का डर था कि कुछ गलत हो जाने पर मजदूर कुछ भी कर सकते हैं। फैसले सामूहिक रूप से लिए जाने लगे और आम मजदूरों की भागीदारी बढ़ी।

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जीत का जश्न

2011 में हुए आंदोलन ने मजदूरों में वर्गीय चेतना पैदा की और इस वर्गीय एकता ने जातीय, क्षेत्रीयता, सांप्रदायिक भावनाओं को खत्म कर भाईचारे और मजदूर वर्गीय भावनाओं को मजबूत बनाया। तीन बड़ी हड़तालों के बाद फ़रवरी के अंतिम सप्ताह में यूनियन का पंजीकरण हुआ और 1 मार्च 2012 को पहला स्थापना दिवस मनाया गया। इस दिन का महत्व अपने आप में ही अलग है।

यूनियन के स्थापना दिवस को मनाने के लिए प्रबन्धन ने भी 1 घंटे काम बन्द रखने की छूट दे दी लेकिन काम 3-4 घंटे बन्द रहा और सभी मजदूरों ने दिवाली, ईद या किसी आजादी के पर्व से ज्यादा खुशी से इसे मनाया।

“मुझे आज भी याद है जब हम 3-4 घंटे के जश्न के बाद वापिस बी शिफ्ट में गए तो कम्पनी गेट पर एक ठेकेदार के मजदूर ने किसी मैनेजर को उंगली हिलाते हुए कहा था कि “आज मै आज़ाद हूं” ये शब्द मात्र शब्द नहीं थे बल्कि उसके अंदर की टीस थी जो कई बरसों से वह कम्पनी में हुए शोषण से महसूस कर रहा था ।

ऐतिहासिक फैसला

यूनियन ने जब अपना वेतन वृद्धि मांगपत्र प्रबन्धन को दिया तो उसमे सभी मजदूरों की सलाह से मुख्य मांग यह रखी गई कि मानेसर प्लांट में काम करने वाले हर मजदूर को एक समान सुविधा दी जाएं चाहे वह बस सुविधा हो, ड्रेस या वेतन। यूनियन ने प्लांट में चल रही ठेकेदारी प्रथा को खत्म कर समान काम समान वेतन की मांग को प्रमुखता से रखा और यह कहा गया कि जबतक इस मांग को नहीं माना जाता तबतक हम दूसरी मांग पर बात नहीं करेंगे।

यूनियन के लिए यह सिर्फ अपने ठेकेदार के मजदूर भाइयों के लिए रखी गई मांग थी, लेकिन प्रबन्धन इस राजनैतिक मांग के प्रभाव का आंकलन शायद पहले ही कर चुका था। मैनेजमेंट ने यूनियन प्रतिनिधियों को कहा कि आप स्थाई मजदूरों की यूनियन है ठेकेदार के मजदूरों की मांग को नहीं उठा सकते, आप अपने लिए ज्यादा वेतन की बात रख सकते हो।

लेकिन इस मांग का महत्व न समझते हुए भी यूनियन प्रतिनिधि इसी बात पर अड़े रहे, जिस कारण मैनेजमेंट ने यूनियन को तोड़ने के लिए 18 जुलाई का षड्यंत्र रचा और यूनियन प्रतिनिधियों के साथ 148 मजदूरों को जेल में डलवा दिया।

18 जुलाई के 10 साल

18 जुलाई 2012 को प्रबंधन ने षड्यंत्र रचकर मजदूरों की एकता को तोड़ने के लिए प्लांट में हिंसक घटना करवाई जिसमें एक मैनेजर की मौत हो गई और उसका आरोप लगाकर 148 मजदूरों को जेल के अंदर डाल दिया गया। 2300 के लगभग मजदूरों को काम से बाहर कर दिया गया। प्लांट में उन्हीं मजदूरों को काम पर रखा गया जिन पर उन्हें भरोसा था कि यह भविष्य में कभी भी आवाज नहीं निकाल पाएंगे।

घटना के तुरंत बाद से ही पुलिसिया दमन शुरू हो गया। सभी मजदूरों के घरों पर पुलिस छापेमारी करने लगी और जो भी मजदूर मिला उसे जेल में डाल दिया गया। अब मैनेजमेंट को लगा कि यह संगठन पूरी तरह से टूट गया है।

मैनेजमेंट ने प्लांट के अंदर वर्क्स कमेटी बना दी जो यूनियन की जगह काम करने लगी। जबरन सामूहिक मांग पत्र को मजदूरों पर थोप दिया गया और व्यक्तिगत रूप से हस्ताक्षर लेकर उसे लागू कर दिया गया। नेतृत्व के जेल में चले जाने के बाद सभी मजदूरों को एकजुट होने में समय लगा और फिर से आंदोलन करने की रणनीति बनी।

प्रोविजनल कमेटी का गठन

18 जुलाई 2012 की घटना के बाद यूनियन प्रतिनिधियों को जेल में डाल दिया गया। उसके बाद आंदोलन को गति देने के लिए प्रोविजनल कमेटी का गठन किया गया क्योंकि स्थाई यूनियन के सभी सदस्य जेल में बंद थे। प्रोविजनल कमेटी में देश भर से 7 लोगों को नेतृत्व के लिए चुना गया जिनमें मैं भी एक था।

अब नेतृत्व करना स्थापित यूनियन के नेतृत्व से कई गुना ज्यादा मुश्किल था। क्योंकि एक तरफ 148 साथी जेल में चले गए थे, जिनको बाहर निकालने की जरूरत थी, 2300 मजदूर काम से बाहर निकाल दिए गए थे, उनकी नौकरी बहाली की मांग के लिए लड़ना और सबसे बड़ी लड़ाई मीडिया द्वारा फैलाए गए अफवाहों के खिलाफ थी, जिससे समाज में यह दिखाया गया कि मजदूर हत्यारे हैं उन्होंने एक मैनेजर को जिंदा जला दिया।

अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए हमने देश भर में तरह-तरह के कार्यक्रमों द्वारा समाज में यह बताने की कोशिश की गई कि 18 जुलाई की घटना से अंततः किसे फायदा हुआ और किस तरीके से मैनेजमेंट ने इस घटना को अंजाम दिया।

देशव्यापी मुहिम

प्रदेश भर में अलग अलग तरीके से प्रबंधन सरकार व मीडिया द्वारा लगाए गए आरोपों को मिटाने की मुहिम प्रोविजनल कमेटी द्वारा ली गई। हरियाणा के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी बर्खास्त मजदूरों ने अपने ऊपर हुए जुल्मो शोषण का बखान अपने शब्दों में किया। नुक्कड़ सभाएं, साइकिल यात्रा, पदयात्रा, धरना, अनशन- न जाने कितने तरीकों से लोगों के सामने यही बात रखी गई कि यह घटना जो मैनेजमेंट ने करवाई वह पूर्ण नियोजित तरीके से संगठन को तोड़ने के लिए थी।

लंबे समय के बाद धीरे धीरे मजदूरों पर लगाए गए बेबुनियाद इल्जाम लोगों को समझ आने लगे और आंदोलन को समर्थन मिलने लगा। प्रदेश और देश ही नहीं विदेशों तक में मारुति आंदोलन की चर्चा होने लगी। बहुत सारे देशों के प्रतिनिधि इसकी जानकारी के लिए हमसे मिले।

बहुत सारे राज्यों में अलग-अलग मजदूर संगठनों ने हमें अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया, यहां तक की कई देशों से भी निमंत्रण मिला। लेकिन इतने साथियों को जेल में छोड़कर विदेशों में जाना हमने मुनासिब नहीं समझा और जमीनी स्तर पर ही संघर्ष जारी रखा गया।

प्रोविजनल कमेटी के प्रयास से ही प्लांट के अंदर फिर से वर्क्स कमेटी की जगह यूनियन का चुनाव हुआ और मजदूर हितेषी यूनियन चुनकर प्लांट में स्थापित हुई। तब से जेल की कानूनी कार्यवाही के रूप में व परिवारों की आर्थिक सहायता के रूप में यूनियन ने अच्छा प्रयास किया। लेकिन मजदूरों की बर्खास्तगी के ऊपर वह कोई आंदोलन उस रूप में खड़ा नहीं कर पाए जैसा कि जरूरी था।

ये दुखद घटनाएं भी हुईं कि इस दौरान हमारे 13 अन्यायपूर्ण सजायाफ्ता साथियों मे से तीन साथी न्याय की आस लगाए अकाल मौत के शिकार हो चुके हैं। काफी संघर्षों के बाद अबतक 10 साथियों को जमानत मिल पाई है। अभी सबकी बेगुनाही और सभी पीड़ित साथियों की कार्यबहाली का संघर्ष जारी है।

हर साल मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन 18 जुलाई को प्रदर्शन कर अपना विरोध प्रकट करती है और बर्खास्त मजदूरों की बहाली व जेल में बंद मजदूरों की रिहाई की मांग करती है। लेकिन वस्तुतः जिस संघर्ष की जरूरत है, मजदूरों को लामबंद करने की जरूरत है, फैक्ट्री के मजदूरों को संघर्ष में उतारने की जरूरत है, वह अभी तक नहीं हो पाया है।

(साथी राम निवास 2012 में मारुति दमन के समय संघर्ष के लिए बनी और अबतक पीड़ित मज़दूरों के लिए संघर्षरत मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन, प्रोविजनल कमेटी के अहम सदस्य हैं)

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मारुति संघर्ष गाथा- 

https://mehnatkash.in/2019/08/31/maruti-mazdoor-movement-1-at-a-glance/
https://mehnatkash.in/2019/09/23/lesson-of-maruti-struggle-this-is-class-struggle/