सांस्कृतिक समागम में उभरे कई रंग; गीत, नाटक,नृत्य नाटिका आदि विविध संगीतमय प्रस्तुतियां

तीन संगठनों की पहल, देश के विभिन्न हिस्सों के संस्कृतिकर्मी; हिंदी, बांग्ला, नेपाली, कुमाऊनी, भोजपुरी, हरियाणवी, पंजाबी, कश्मीरी आदि भाषाओं के समायोजन से प्रतिरोध के नए स्वर फूटे।
प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच, अभिव्यक्ति सांस्कृतिक मंच और नवयुग सांस्कृतिक अभियान के संयुक्त तत्वावधान में देश के विभिन्न हिस्सों से आए संस्कृतिकर्मियों के दो दिवसीय सांस्कृतिक समागम के तहत व्यापक विमर्श-चर्चा के साथ विविधतापूर्ण सांस्कृतिक प्रस्तुतियां हुईं। आयोजन का मुख्य विषय था प्रतिरोध की संस्कृति।
मंटो जन्म दिवस पर 10-11 मई को कवि शमशेर बहादुर सिंह के गाँव एलम, जिला शामली में हिंदी, बांग्ला, नेपाली, भोजपुरी, हरियाणवी, पंजाबी कश्मीरी आदि विविध भाषा और सांस्कृतिक विधाओं के समायोजन से प्रतिरोध के नए स्वर फूटे।
लगभग 20 सांस्कृतिक टीमों द्वारा नाटक, नृत्य नाटिका, एकल नाट्य अभिनय, जन गीत, रागणी, ग़ज़ल, कविता वाचन इत्यादि विशिष्ट, अनूठे और रोचक प्रस्तुति नें साथियों को अविस्मरणीय अनुभव दिया।

इस दौरान संस्कृतिकर्मियों द्वारा जहां परंपरागत विधियों और लोकगीतों का इस्तेमाल हुआ, वहीं नए किस्म के सांस्कृतिक प्रयोग भी सामने आए। तमाम कठिन कविताओं की गीतमय प्रस्तुतियां व गीतों की नृत्यमय प्रस्तुतियां से लेकर बेहद संवेदनात्मक पहलुओं को छूने वाले और समाज पर करारा व्यंग्य करते हुए नाटक व एकल नाट्य प्रस्तुति हुईं।


माहौल संगीतमय व उत्साहवर्धक था और चौतरफा प्रतिरोध की अनुगूँज थी, शासक वर्ग के वर्चस्व के खिलाफ भविष्य के लिए प्रतिरोध की नई संस्कृति को विकसित करने के विविध आयाम मिले। एक-दूसरी टीमों से सीखने-समझने और कलात्मक प्रस्तुतियों को उन्नत करने की प्रेरणा मिली।


नाटकों की प्रस्तुति:
हिन्दी नाटक ‘दो कसाई की कहानी’, बिजली निजीकरण और स्मार्ट मीटर के खिलाफ ‘पुरखों के लहू’, ‘एक कुर्सी एक आसान और हवा मे लटकते लोग’, ‘कटे हाथ’, मंटो की कहानी पर आधारित एकल नाट्य प्रस्तुति ‘खोल दो’ आदि प्रस्तुतियाँ हुईं।






आधुनिक शहर के बस्ती जीवन की कहानी पर आधारित बांग्ला नाटक ‘कानू हरामजादा’; हिन्दी-नेपाली में ‘न्यू इंडिया एक्सप्रेस’ नाटकों ने समा बाँधा।


नृत्य नाटिका:
कुमाऊनी गीत ‘लसका कमर बांधा हिम्मत क साथ’, पर और फिलिस्टिन समर्पित ‘मत रो बच्चे’ गीतों पर नृत्यमय प्रस्तुति हुई। ‘कहता तू सीना ताने’ कविता की एकल अभिनय हुआ।


समूह गान:
हिन्दी में विभिन्न टोलियों ने ‘हम मोड़ने चले समय की धारा’, ‘जागो रे मज़दूर किसान’, ‘भूल-गलती ज़िरह-बख्तर पहनकर’, ‘संघर्ष की राह पर अब चलना’, ‘दरबारे वतन में जब एक दिन’, ‘तूफ़ान कभी मात नहीं खाते’, ‘ये सन्नाटा तोड़ के आ’, ‘जीवे फेलिस्टीना’, ‘हम समंदर हम बवंडर’, ‘मज़दूर हैं हम’, ‘मई दिवस: अब दिन वो प्यारा आया है’, ‘बदल डालो ए दुनिया अब न रोना मरना है’, ‘मत रो बच्चे’, ‘तय करो किस ओर हो तुम’, ‘जाग मछन्दर’, ‘वो सुबह कभी तो आएगी’ आदि समूह गीत गए।






नेपाली भाषा में ‘तिमी मलाई सारंगीका’, हामीलाई गान मनपर्छ’, ‘कति लामो बाटोहरु’, ‘सुन आमा दीदी बहिनी’, ‘कोही त भने जहाजमा हइइ’, ‘जीवन को निम्ति मायाको निम्ति’, ‘गांव-गांव बाटा उठो’, ‘यो मेरो रातो रुमाल’ गीत गाये गए।


बांग्ला में ‘हे समाल्हो धान हो’, ‘एमॉन देसे जोनोम मोदेर’, ‘हटे हट रेखे पर होबो’, ‘बाँचबो बाँचबो रे आमरा’ समूह गान; कश्मीरी में जन गीत झेलम रोया’ तथा फ़ैज़ का पंजाबी गीत ‘उट्ठ कानू जट्ठा’; भोजपुरी गीत ‘मजदूरवा हो चलो लड़े लड़य्या’, ‘उठल बहाला इहाँ सुनाला’; अमीर खुसरो का गीत ‘काहे को ब्याहे विदेश’; कुमाऊनी गीत ‘हाट बाट तोड़ी बेरा’ आदि गीतों ने रंग भरे।


रामधारी खटकड़ ने ‘मई दिवस’ पर तो राजेश दलाल ने किसान आंदोलन पर ‘बधाई हो बधाई, जीत की बधाई’ हरियाणवी लोक गीत रागणी की प्रस्तुति से खूबसूरत समा बांधा।


देश-दुनिया के मशहूर प्रतिरोध के नज़्म-गीत का गीत कोलाज़ प्रस्तुत हुआ तो ए एन सी कुमालों की कविता ‘हमें ऐसी कविताओं की जरूरत है…’ जैसी कविताओं का पाठ हुआ।


सांस्कृतिक समागम का संचालन नवयुग सांस्कृतिक अभियान के दिगम्बर, प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच के महेंद्र व अभिव्यक्ति सांस्कृतिक मंच के प्रदीप ने संयुक्त रूप से किया।
यह सांस्कृतिक समागम अपसंस्कृति के घटाटोप में, हमारे समाज और जीवन को प्रदूषित कर रही फासीवादी और साम्राज्यवादी संस्कृति के प्रतिरोध में एक नई सांस्कृतिक धारा के निर्माण के पहल का साक्षी बना।