बंद चाय बागानों के श्रमिकों ने पाया 25% बोनस

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उत्तर बंगाल के मज़दूरों ने स्वयं समिति गठन से रचा एक क्रांतिकारी इतिहास

अलकेमिस्ट ग्रुप के तहत आने वाले धोत्रे, कालेज वैली और पेशोक चाय बगान 2015 से अघोषित रूप से बंद पड़े हैं। इस बीच कई अलग अलग मालिकों ने इन्हें चलाने की कोशिश की लेकिन 2017 के गोरखालैंड आन्दोलन के बाद यह बगान फिर बंद हो गए। इसके बाद से सरकार ने मज़दूरों की मांगों के जवाब में केवल आश्वासन ही दिए हैं और उन्हें राहत दिलाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। 2019 के अंत में इन बागानों को सरकार ने पूरी तरह से बंद घोषित कर दिया। ऐसी कठिन परिस्थितियों में चाय बगान संग्राम समिति 2015 से मज़दूरों के आन्दोलन में साथ देने के लिए गठित की गयी।

जॉइंट एक्शन कमेटी के ज़रिए शुरू किया बागन का स्वचालन

इन बागानों में स्टाफ और यहाँ के मज़दूरों के प्रयासों से एक जॉइंट समिति का गठन किया गया, जिसके तहत मज़दूर विभिन्न प्रकार के आंदोलनों और संघर्षों में शामिल होते रहे। बगान को बचाए रखने के साथ साथ यह जॉइंट एक्शन कमिटी (JAC) चाय के कच्चे पत्तों को तोड़ कर बाहर के चालू बागानों में बेच कर बगान को चलाते रहने के प्रयास में लगी रही है। समिति कच्चे पत्तों को बेच कर होने वाले मुनाफ़े से मज़दूरों को गुमबूट, छाता, उचित छुटियाँ, मज़दूरों के बच्चों की शिक्षा के लिए आर्थिक सहयोग आदि जैसी विभिन्न प्रकार की सहूलियत मुहैया कराती रही है।

तीसरे साल दे रहे हैं बगान मालिकों से ज़्यादा बोनस

2018 में जब सभी चाय बागानों में मात्र 15.5% बोनस दिया गया था तब यहाँ की JAC ने सभी मज़दूरों को 16% बोनस देने का काम किया था। इसी तरह 2019 में यहाँ एक ऐतिहासिक काम किया गया — पहाड़, तराई और दूअर्स के सभी बागानों में जब 2019 में बगान मालिकों द्वारा दो किश्तों में 20% बोनस दिया जा रहा था तब मज़दूरों द्वारा स्वचालित इन बागानों में JAC ने सभी मज़दूरों को एक ही किश्त में 21% बोनस दिया। इस साल. 2020 में भी मज़दूरों को दो किश्तों में बाँट कर कुल 20% बोनस देने का फैसला हुआ है। दो किश्तों में बाँट कर बोनस देने का यह चलन मात्र मालिकों के लिए मज़दूरों के शोषण को और आसान बनाता रहा है।

बोनस भुगतान अधिनियम 1965 में न्यूनतम 8.3% और अधिकतम 20% बोनस दिए जाने का प्रावधान है। किन्तु 16 अक्टूबर, 2020 को टोंगसोंग डिविजन में धोत्रे, पेशोक और कॉलेज वैली “बंद” बगानों के मज़दूरों और स्टाफ द्वारा गठित JAC ने लगभग 150 मज़दूरों को 25% बोनस दे कर चाय बगान मज़दूरों के संघर्षों का एक नया इतिहास रचा है। टोंगसोंग के मज़दूरों ने अपने इस प्रेरणादायक प्रयास से इस बात का बेहतरीन परिचय दिया है कि इस दुनिया को चलाने वाले मज़दूर ही हैं।

मुनाफ़ाखोर पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली के विकल्पों की एक झलक

उत्तर बंगाल के इन बागानों के श्रमिकों ने एक बात स्पष्ट कर दी है कि मज़दूर अपनी क्षमता से ना केवल फैक्ट्री और बगान चला सकते हैं बल्कि मुनाफाखोर पूंजीपतियों के मुकाबले सभी मज़दूरों को बेहतर ज़िन्दगी और उनके हक़ हकूक देते हुए उत्पादन कर सकते हैं। शोषणकारी पूंजीवादी व्यवस्था के अंत की दिशा दिखाता, यह एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण उदाहरण है।      

साभार चाय बगान संघर्ष समिति

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