महामारी के साथ बढ़ती ज़रूरी सामानों की किल्लत

लॉकडाउन के साथ स्टोर में जमा सामान ख़त्म हो रहे, मगर तैयारी क्या है?
एक तरफ विश्वव्यापी कोरोना महामारी के संकट पूरी आबादी दहशत में है, तो दूसरी तरफ लॉक डाउन से जन-जीवन ही नहीं, सामानों की आवाजाही भी बंद है। इससे रोज़मर्रा के सामानों की किल्लत बढ़ाने की ओर है। सरकार ने घर-घर सामानों के आपूर्ति की जो घोषणा की है, वे फ़िलहाल नाकाफी साबित हो रहे हैं। सवाल यह है की आने वाले दिनों में हालात क्या होंगे?
रिपोर्ट के अनुसार आटा, चावल, दाल, तेल, साबुन, नमक, चीनी जैसे हर रोज़ की ज़रूरत के सामान की भारी किल्लत हो सकती है। लॉकडाउन के कारण अब स्टोर के स्टॉक में पहले से पड़े सामान ख़त्म हो रहे हैं और ऊपर से सप्लाई सही से हो नहीं पा रही है। ये समस्याएँ किसी एक स्तर पर नहीं है, बल्कि फ़ैक्ट्रियों में कच्चा माल जाने से लेकर, ढुलाई, निर्माण, मज़दूरों की कमी और आपूर्ति करने तक में हैं।
हालत ये हैं कि जो स्टॉक पड़े हुए भी थे उससे बड़े शहरों में तो फिर भी कुछ समय के लिए आपूर्ति ठीकठाक होती रही, लेकिन छोटे शहरों और कस्बों में इसकी दिक्कतें पहले से ही आ रही हैं। अब बड़े शहरों में भी ऐसी दिक्कत आ सकती है। क्या ऐसी स्थिति से निपटने के लिए कोई तैयारी है?
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असल में दिक्क़तें क्या हैं?
लॉकडाउन से एक बड़ी दिक्क़त मानव संसाधन की कमी के रूप में है। बगैर तैयारी बंदी की घोषणा से अफरा-तफरी के बीच मज़दूरों की बड़े पैमाने पर पलायन की स्थिति पैदा हुई। आज भी लाखों बेरोजगार हुए मज़दूर रास्तों में फंसे हुए हैं। एक अनिश्चित भविष्य और आशंकाओं के बीच वे ज़रूरी सामानों की किल्लत झेलते हुए जहाँ-तहाँ पड़े हुए हैं। तमाम मज़दूर सामाजिक दूरी रखने और बगैर किसी गारंटी उत्पादन में लगाने की गंभीर चुनौतियों के द्वंद में हैं।
इससे सिर्फ़ आवश्यक सामानों का उत्पादन ही प्रभावित नहीं हुआ है, बल्कि सामान को एक से दूसरी जगह पहुँचाने में भी दिक्कतें आ रही हैं। ट्रक पर सामान लोड करने और उतारने से लेकर वितरकों और खुदरा दुकानदारों तक सामान पहुँचाने में बड़ी समस्या आ रही है।
लॉकडाउन से पहले जिन हज़ारों ट्रकों पर सामान पहले से लदा हुआ था वे भी एक से दूसरी जगह नहीं जा पा रहे हैं। अधिकतर राज्यों की सीमाओं को सील कर दिया गया है और इस कारण हज़ारों ट्रक जहाँ के तहाँ फँसे हुए हैं। इसका नतीजा यह निकल रहा है कि सामान आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।
क्या इन दिक्कतों को टाला नहीं जा सकता है?
आख़िर इन ट्रकों को क्यों रोका गया है? केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन में बेहतर तालमेल हो तो क्या हज़ारों ट्रकों को फँसने की नौबत आती? क्या नीतिनिर्मातों को यह अनुमान नहीं था कि ट्रकों की आवाजाही रोक दी जाएगी तो फिर हर रोज़ की ज़रूरत की चीजें आम लोगों तक कैसे पहुँचेंगी? जब ट्रकों में कच्चे माल ही फँसे रहेंगे तो फ़ैक्ट्रियों में उत्पादन कैसे होगा?
इसलिए बढ़ रहा है ज़रूरी सामानों का संकट
रिपोर्ट है कि क़रीब 75 फ़ीसदी दाल मिलें बंद हैं क्योंकि न तो मज़दूर उपलब्ध हैं और न ही कच्चा माल।
मिडिया रिपोर्ट के अनुसार मेट्रो कैश एंड कैरी की थोक बिक्री में 50 फ़ीसदी की कमी आ गई है। कंपनी के सीईओ और एमडी अरविंद मेदिरत्ता ने ’इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा, ’हमारे पास अगले दो हफ्तों के लिए हमारे स्टोर पर सभी आवश्यक खाद्य पदार्थों – चावल, दाल, अटा का भंडार है। और फिर हमारे पास भी इसकी कमी हो जाएगी।’
मेडिकल स्टोर पर भी कुछ दवाइयों की कमी पड़ने लगी है। दिल्ली स्थित ग्लोब मेडिकोस के फार्मेसी के प्रबंधक डीके चौधरी ने कहा, ’हम विटामिन सी और मल्टीविटामिन ब्रांडों की कमी देख रहे हैं।’
कोरोना वायरस के तेज़ी से फैलने के कारण फ़िलहाल 21 दिन के लिए पाबंदी है। लेकिन यदि स्थिति नहीं सुधरी तो लॉकडाउन बढ़ भी जा सकता है। तब क्या हाल होंगे?
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मुद्दों से भटकाता मीडिया
विकट दौर की इन चिंतनीय स्थितियो में मुख्य धारा की मिडिया साम्प्रदायिक विद्वेष फ़ैलाने में पिली पड़ी है। भारत में कोरोना का दस्तक होने पर सरकार दूसरे एजेंडे पर लगी रही और इस मिडिया से लेकर भाजपा आईटी सेल तक चीन-चीन चिल्लाते रहे। फिर इटली-राहुल गाँधी कनेक्शन पर पिल पड़े। अब जब सरकार की अक्षमता सतह पर आने लगी, तो जमात-मुस्लिम-कोरोना के गंठजोड़ को ज़िम्मेदार ठहराकर अपना टीआरपी बढ़ाने मिडिया में जुटी है।
मिडिया से ये सवाल ग़ायब हैं कि 30 जनवरी को केरला में कोरोना का पहला मामला सामने आने के बाद सरकार क्या कर रही थी? साफ़ है कि मोदी सरकार के सियासी तिकड़मो में यह मिडिया भी मशगूल रही। सीएए, एनआरसी, एनपीआर का खेल और विरोध को राष्ट्रविरोधी घोषित करने, शाहीन बाघों के जन आंदोलनों को बदनाम करने, दिल्ली चुनाव और गोली मरो के जंग में, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप, उनके बेटी, दामाद, पत्नी की अवभगत में, दिल्ली को दंगे में झोंकने, मध्यप्रदेश में विधयाकों को कब्जाने, सरकार गिराने-बनाने और चिल्ल-पों मचने में यह मिडिया खुद साझीदार बनी रही।
आज की मिडिया का मुख्य काम सरकार का भोंपू बन चिल्लाना है, तो फिर उससे सरकार की असफलताओं पर बोलने और जनसरोकार पर बोलने की उम्मीद ही बेमानी होगी! इस गोदी मिडिया से मुद्दों को भटकाकर हिन्दू-मुस्लिम करने की ही अपेक्षा रहनी चाहिए!
लेकिन वर्तमान और आने वाले संकट को देश के संवेदनशील जनता को समझाना होगा और मेहनतकश आवाम को इसके लिए तैयार रहना होगा।