कोरोना संकट : भयावहता से अति भयावहता की ओर

11 जनवरी से 31 मार्च – 80 दिन 1920 घंटे…
कोविड-19 (कोरोना वायरस) ने विश्वव्यापी महामारी का रूप ले लिया। भारत में भी यह घुसता रहा, फिर भी एक लम्बा अर्सा गुजरने के बाद अचानक लॉकडाउन घोषित हुआ। जनजीवन ठहर गया। बड़ी आबादी सडकों पर भटकती रही…। …आने वाला समय किन नए संकटों से जूझने वाला है… इन सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार राजीव मित्तल की यह पोस्ट गौरतलब है…
चलिए चीन से शुरुआत करें–वुहान में 17 नवम्बर को मछुआरिन वुई में नोवेल कोरोना वायरस पाए जाने का जब पहला मामला सामने आया तो चीन इस बीमारी से पूरी तरह अनजान था। रोगी बनते रहे, इलाज होता रहा। बाद में वहाँ हड़कम्प मचा 31 दिसम्बर को, जब एक साथ सैंकड़ों की तादाद में एक सी तकलीफ़ के साथ रैला अस्पताल पहुँचने लगा।
लेकिन आँख खुलते ही चीन जुट गया। वहाँ के वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने हफ़्ते भर की जाँच से 7 जनवरी को पता लगा लिया था कि कोरोना महामारी के एक नये वायरस ने अवतार लिया है। अगले दिन इसे नोवेल कोरोना वायरस का नाम मिला और फ़ौरन इसकी जेनेटिक सिक्वेन्सिंग और इसके इंसान से इंसान में संक्रमित होने की जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को दी गयी।

30 जनवरी को भारत में पहला पॉजिटिव मिला
11 जनवरी को WHO ने इसे वैश्विक महामारी (pandemic) का दर्ज़ा और कोविद-19 (Corona Virus Disease, 2019) का नाम दिया। 18 जनवरी को भारत सरकार ने भी अपने हवाई अड्डों पर चीन से आने वालों की जाँच शुरू कर दी। 30 जनवरी को केरल में पहला कोरोना पॉज़िटिव सामने आया।
डेढ़ महीने सरकार कहाँ व्यस्त रही?
लेकिन जिस फरवरी के महीने को पूरा का पूरा इस आपदा से निपटने में न्यौछावर करना चाहिए था, 29 दिन का वो फरवरी महीना इस बीमारी को न्योतने में लगा दिया गया।
यह पूरा महीना सियासी तिकड़मों, एनआरसी के विरोध और पक्ष में हो रहे आंदोलनों, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनकी बेटी-दामाद, बीवी की खातिरदारियों, आयोजनों, दावतों, फिर दिल्ली चुनाव, फिर दिल्ली दंगे, बजट, संसद, गोली मारो, शाहीनबाग़, मध्यप्रदेश की सौदेबाज़ी और असंख्य भाषणबाज़ी में निकल गया।
पूरे फरवरी भर लापरवाही बरतने के बाद 4 या 5 मार्च को पीएम साहब ऐलान करते हैं कि वो होली नहीं मनाएंगे। फिर राष्ट्रपति महोदय भी यही घोषणा करते हैं। अगले दिन पीएम विदेश दौरे रद्द करते हैं। यानी, 6 मार्च तक देश की हुकूमत कोरोना की भयावहता से पूरी तरह वाकिफ़ हो चुकी थी।
लॉकडाउन की घोषणा 24 मार्च से पहले क्यों नहीं हुई?
अब यहीं रुका जाए और सवाल खड़ा किया जाए कि 5 या 6 मार्च को ही सरकार ने इमरजेंसी डिक्लेयर क्यों नहीं की? देश की जनता को 10 मार्च को होली क्यों खेलने दी गयी? देश में लॉकडाउन की घोषणा के लिए 24 मार्च तक क्यों वेट किया गया? होली की छुट्टियों को एक उत्सव में क्यों बरबाद होने दिया गया?
उन पाँच दिनों में ही आपात कदम उठा लिए गए होते तो 24 के लॉकडाउन के बाद जिस बुरी हालत में देश के कोने कोने में प्रवासी मज़दूर अपने परिवार के साथ सड़कों पर आने को मजबूर हुए, कम से कम वो तो न होता!
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फिर 24 मार्च की रात 8 बजे की घोषणा कि चार घंटे बाद से तीन हफ़्ते के लिए लॉकडाउन किया जा रहा है, प्रवासी मजदूरों पर कहर बरपा गया। ट्रेन-बस-मेट्रो, परिवहन की सारी व्यवस्था ठप्प। जहाँ-जहाँ वो जिस भी हालत में अपना श्रम बेच कर खा कमा रहे थे, वहाँ-वहाँ से उन्हें बेघर और बेरोजगार कर दिया गया।
22 मार्च का थाली-ताली वादन और शंखनाद एक प्रहसन बन कर रह गया, जब उस दिन सैकड़ों जगहों पर कोरोना की हाय-हाय करते जुलूस निकले। यानी तमाशाबाजी में कोई कमी नहीं आयी।
शासकीय एजेंसियां क्या कराती रहीं?
दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में तब्लीग़ी जमात का आयोजन भी धार्मिक तमाशों और शासन प्रशासन की लापरवाहियों का नायाब नमूना है, जिसे हमारे मीडियाई जाबांजों ने 31 मार्च को पूरी तरह साम्प्रदयिक रंग देने में कोई कोताही नहीं की। इस आयोजन की शुरुआत मध्य मार्च में ही हो चुकी थी। ढाई हजार आदमी एक जगह इकट्ठा हो चुका था लेकिन सरकारी एजेंसियाँ आंख पर पट्टी बांध कर किसी भीषण अनहोनी के घटने का इंतजार करती रहीं और हर तरफ होश की आंधी तब बही, जब कई तब्लीग़ी कोरोना से मर गए और ढाई हजार में से न जाने कितने तब्लीग़ी कोरोना के प्रसार के लिए निकल लिए।
शासकीय मज़ाक का एक बड़ा नमूना और देखिए। बकौल कैबिनेट सेक्रेट्री राजीव गौबा, 18 जनवरी से 23 मार्च के दौरान विदेश से आने वाले 15 लाख लोगों को कोराना लाने का भरपूर मौक़ा दिया गया। यह बात खुद देश का सबसे बड़ा नौकरशाह राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लिख कर कह रहा है। इस मज़ाक का सबसे बड़ा उदाहरण पेज-3 की कनिका कपूर हैं, जो यमराज का भैंसा साबित हुईं।
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अब कोरोना से हट कर एक और बात :
इस सप्ताह के आखिर तक भयावह समाचार मिलने शुरू हो जाएंगे। अर्थात इस लॉकडाउन से देश की सप्लाई चेन तितर बितर पड़ गयी है, उसके चलते कितनी बड़ी तबाही उठने वाली है, उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। अगर मोदी जी 24 के अपने संबोधन में सिर्फ इतना सी बात कह देते कि लॉकडाउन के दौरान आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करने वाले वाहनों को नहीं रोका जाए तो एक बार फिर भी परिस्थितिया संभल सकती थी लेकिन अब…!!!
देश के हाइवे देश की लाइफ लाइन होती है, यह बात सभी को पता होती है सिवाए मोदी सरकार के।
बिना पूर्व तैयारी और सोचे समझे घोषित किए गए लॉक डाउन को हाइवे पर पुलसिया डंडे के जोर से इम्प्लीमेंट किया गया। लगभग सभी ट्रकों को जहाँ थे वहीँ रोक दिया गया, हाइवे पर हर तरह की खाने पीने की दुकानें बंद करा दी गई।
लॉक डाउन ने भारत की चारों दिशाओं, राज्यों, शहरों, जिलों और गांवो तक दिन-रात खाने-पीने के जरूरी सामान से लेकर तमाम आवश्यक साजो-सामान की ढुलाई में जुटे ट्रांसपोर्ट उद्योग को खत्म सा कर दिया।
कैसे मिलेगा जरूरी सामन?
देश में करीब 12.47 लाख से ज्यादा नेशनल परमिट वाले गुड्स ट्रक हैं, जो माल ढुलाई का काम करते हैं। अब बता रहे हैं कि लगभग 4 से 5 लाख ट्रक ऐसे हैं, बीच रास्ते में फँसे हुए हैं। लाखों की तादाद में ड्राइवर और हेल्पर डर के मारे रास्ते में ही ट्रक को लावारिस छोड़कर भागने को मजबूर हो गए हैं। कई ट्रकों में करोड़ो का सामान, दवाएं, दवा बनाने वाला कच्चा माल, मेडिकल उपकरण, साबुन, मास्क बनाने का कच्चा माल और जल्दी खराब होने वाली साग-सब्जियां और फल लदे हैं।
दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि ट्रांसपोर्ट कारोबार में आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई की प्रक्रिया में जुटे लाखों ट्रकों में सामान लोड-अनलोड करने वाले कामगार भी भाग खड़े हुए हैं जिससे यह संकट और भयानक हो गया है।
मोदी सरकार द्वारा करीब एक हफ्ते पुरानी गलती को सुधारते हुए आवश्यक और अनावश्यक माल के लिए ट्रकों को आवाजाही में छूट दिये जाने के ऐलान के बावजूद तनाव और सुरक्षा कारणों से ज्यादातर ट्रक ड्राइवर, हेल्पर्स अभी भी सड़कों पर चलने या माल उठाने को तैयार नहीं हैं।
ऐसी परिस्थितियों में हर शहर के होलसेल व्यापारियों ने सभी वस्तुओ के दाम 5 से 10 रुपए तक बढ़ा दिए हैं। अधिकतर दुकानों से आटा गायब हो चुका हैं। देश की हालत इतनी खराब है कि मेट्रो कैश ऐंड कैरी ने देश भर में लॉकडाउन के कारण अपने 27 में से 8 स्टोरों को फिलहाल बंद कर दिया है। उसने कहा है कि आवश्यक वस्तुओं की इन्वेंट्री केवल 5 से 7 दिनों के लिए है। ऐसी ही स्थिति दूसरे बड़े स्टोर्स की भी है।
इसके अलावा खेतों में गेहूं, जौ, चना, मसूर, सरसों आदि की रबी की फसलें पकने को तैयार खड़ी हैं, उनकी कटाई के क्या इंतजाम हैं!
वरिष्ठ पत्रकार राजीव मित्तल की फेसबुक वाल से साभार