लॉकडाउन : पूर्व सीएम के बेटे की हाईटेक शादी से उठे सवाल

Cm-beta_Shadi

रसूखदारों के लिए सारी सुविधाएँ, लेकिन मेहनतकशों के हिस्से केवल ज़िल्लत की ज़िन्दगी

कोरोना/लॉकडाउन के बीच पूरे देश में सबकुछ ठप्प है। लेकिन इसका कहर मेहनतकश ही झेल रहा है, जबकि रसूखदारों के लिए सब तरफ छूट है। जहाँ संकटग्रस्त मज़दूरों को पुलिस मुर्गा तक बना देती है, वहीँ हाई प्रोफाइल शादियाँ हो रही हैं। मेहनतकश जहाँ-तहाँ फँसा है, लेकिन पैसे वालों के लेने के लिए बस का प्रबंध हो रहा है।

शादी में लॉकडाउन की उडी धज्जी

कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच शुक्रवार को कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे व पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के पोते निखिल कुमारस्वामी की शादी हुई। उनकी शादी कांग्रेस के पूर्व गृह मंत्री एम कृष्णप्पा की पोती रेवती के साथ हुई।

जो तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं, उसमें साफ़ है कि लॉकडाउन की धज्जी उड़ाई गई थीं और भौतिक दूरी (फिजिकल डिस्टेंसिंग) का भी ख्याल नहीं रखा गया था। सामूहिक भीड़ में किसी ने मास्क तक नहीं लगाया था। इतना ही नहीं कोरोना वायरस को लेकर कोई भी मेहमान डरा नजर नहीं आया। किसी के चेहरे पर मास्क तक नहीं लगा था। लोग एक दूसरे से हाथ मिलाते और गले लगते नजर आए।

kumarswamy son wedding: एचडी कुमारस्वामी के ...

 “बड़े-बड़ों” के इस शादी के कार्यक्रम के लिए जिलाधिकारी से अनुमति भी मिल गई थी। मामला पूर्व पीएम, सीएम व पूर्व गृह मंत्री का जो ठहरा!

इससे पूर्व कर्नाटक के मुख्यमंत्री व भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा पर पिछले हफ्ते फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करने का भी आरोप लगा था।

लेकिन मज़दूरों को बनाया मुर्गा

दूसरी ओर लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे बेरोजगार-बेघरबार मेहनतकश-मज़दूरों को घर जाने से ना केवल प्रशासन रोकता रहा है, बल्कि पुलिस अमानवीय व्यव्हार के साथ मुर्गा बनाने, दंड बैठक करवाने तक से बाज नहीं आई।

छात्रों के लिए योगी ने कोटा भेजा बस

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बीते शुक्रवार को छात्रों को लेने के लिए 252 बसें कोटा भेजी। इनमे 102 बसें झांसी और 150 बसें आगरा से कोटा गई  थीं और रात में ही छात्र और कुछ अभिभावक बसों से अपने घरों के लिए रवाना हो गए।

हजारों प्रवासी मज़दूरों के लिए कोई व्यवस्था नहीं

देश के विभिन्न हिस्सों में हजारों की संख्या में प्रवासी मज़दूर अटके हुए हैं। उनके पास ना तो रोजगार है, ना रहने का ठिकाना, ना ही खाने को रोटी। वे अपने घर जाना चाहते हैं, कई लोग तो बच्चों और सामानों को लादे मीलों पैदल यात्रा कर चुके हैं। लेकिन उनके लिए किसी सरकार द्वारा कोई व्यवस्था करना तो दूर, लाठियां, मुक़दमें और ज़िल्लत ही हासिल हो रहे हैं।

बांद्रा रेलवे स्टेशन, सूरत से लेकर दिल्ली तक मज़दूरों का जो सैलाब उमडा, वह उनके दर्द की बानगी मात्र है।

प्राथमिकताएँ साफ़ हैं

जेडीएस के कुमार स्वामी के बेटे की शादी हो, भाजपा विधायक की बर्थडे पार्टी या कलबुर्गी में धार्मिक आयोजन के नाम पर हजारों की भीड़, कोरोना संक्रमण से “सुरक्षित” है, लेकिन पलायन का दर्द झेलते पीड़ित मज़दूरों से संक्रमण फ़ैलने का सबसे बड़ा ख़तरा है!

विदेशों से ही संक्रमण आने के बावजूद, विदेशियों को लाने के लिए मोदी सरकार विशेष विमान भेजती है, तीर्थ यात्रियों को बनारस से दक्षिण भारत भेजने के लिए सरकार बसों का इन्तेजाम करती है, कोटा से छात्रों को लाने के लिए योगी सरकार बसों की व्यवस्था कराती है, लेकिन संकटग्रस्त हजारों मेहनतकश-मज़दूरों को उनके घर-गाँव भेजने का इंतेज़ाम तो दूर, उन्हें यातना शिविरों जैसी जगहों में लॉकडाउन कर दिया गया है।

साफ़ है, धनपतियो, रसूखदारों के लिए सारी सुविधाएँ, लेकिन मेहनतकशों के हिस्से केवल दुख-तकलीफ और ज़िल्लत की ज़िन्दगी हासिल है!