ज्ञानज्योति सावित्रीबाई फुले के जन्मदिवस पर

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भारत की पहली महिला शिक्षाविद सावित्रीबाई का जन्मदिवस 3 जनवरी की याद में

मौजूदा दौर में सावित्रीबाई जैसे महान लोगों के जीवन और संघर्ष को याद करना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। आज हम अपनी शिक्षा, नौकरी, पर्यावरण और ज़मीन को बचाए रखने के लिए संघर्षरत है। सावित्रीबाई और उनके साथियों की लड़ाई भी मानव जीवन के इसी सम्मान और अधिकार के लिए थी। भारत की पहली महिला शिक्षक और महान शिक्षाविद सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था।

मराठी दंपति सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले ने शिक्षा पर उच्च जाति के पुरुषों के कब्जे के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने भारत में लड़कियों और तथाकथित निचली जातियों के लिए पहला स्कूल खोला। उन दिनों, समाज में छुआ-छुत बहुत ज्यादा था और उनके पढ़ने-लिखने/ शिक्षित होने सम्मानजनक काम करने पर रोक थी। किसी भी जाति की महिला की पढ़ाई लिखाई पर भी रोक था। फुले दम्पति ने अपने स्कूलों में, अपने साथियों के साथ मिलकर, प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथों के बजाय आधुनिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञान को पढ़ाया और ऐसे लेख लिखे, जो आज भी हमारे लिए प्रेरणा की स्रोत हैं।

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उनके साथियों में फातिमा शेख का नाम सबसे पहले आता है। सावित्रीबाई और फातिमा को मिलकर समाज की उस सड़ी गली सोच का सामना करना पड़ा जो सबके लिए समान और वैज्ञानिक शिक्षा के अधिकार को नाजायज़ मानता था। रास्ते में चलते वक़्त सावित्रीबाई के ऊपर कचरा फेका जाता था। उनकी साड़ी दुर्गंध से भर जाती और स्कूल पहुंच कर वह दूसरी साड़ी पहनकर बच्चों को पढ़ाती थी।

फातिमा और उनके भाई उस्मान शेख ने फुले दंपत्ति को हर तरह का सहयोग दिया। फातिमा ने फुले दम्पति के साथ मिलकर स्कूल खोले और पढ़ाया भी। हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के पिछड़े सोच वाले लोगों द्वारा उनका विरोध किया गया। लेकिन लड़कियों को उनके मार्गदर्शन में अध्ययन करना इस हद तक पसंद था कि उनके माता-पिता पढ़ाई के प्रति लड़कियों के समर्पण की ही शिकायत करने लगे! उनके छात्र-छात्राओं ने पढ़ाई में सरकारी स्कूल के लडके-लड़कियो को भी पछाड़ दिया।

सावित्रीबाई का निधन 1897 में पुणे में प्लेग के दौरान गरीब और बीमार मरीजों की सेवा करते हुए हुआ। दूसरी ओर फातिमा शेख के योगदान को रेखांकित करने में हमारा इतिहास विफल रहा।

शिक्षा में योगदान से इतर, सावित्रीबाई ने विधवा और बेसहारा गर्भवती महिलाओं के लिए बालहत्या प्रतिबंधक गृह स्थापित किया और ऐसी ही एक ब्राह्मण विधवा के लड़के को गोद भी लिया। अपने जीवनसाथी ज्योतिराव की मृत्यु के बाद उन्होंने खुद उनकी चिता को अग्नि दी, जो आज भी अकल्पनीय है, साथ ही उनके द्वारा स्थापित सत्यशोधक समाज के संघर्ष को आगे बढ़ाया। उन्होंने अंतरजातीय विवाह का खुलकर समर्थन किया। पुणे के प्लेग के दौरान उन्हें अपनी जान का डर नहीं था। यह समझना आसान है कि क्यों उन्हें ‘ज्ञान ज्योति’ के साथ साथ ‘क्रांति ज्योति’ के नाम से भी जाना जाता है।

सावित्रीबाई फुले जन्मोत्सव समिति व शिक्षा के साथी द्वारा जारी पर्चे से साभार

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