अशफाक-बिस्मिल की साझी शहादत-साझी विरासत

काकोरी केस के शहीदों की 92वीं बरसी (19 दिसम्बर) पर

आज जब पूरे देश में एक भयावह विभाजनकारी स्थितियाँ बन गई हैं, मेहनतकश विकट संकट की स्थिति में है, देश नई गुलामी की जंजीरों में जकड़ा है और अर्थव्यवस्थ चरमरा रही है, तब शहीद अशफ़ाक़-बिस्मिल की साझी शहादत साम्प्रदायिक एकता का प्रतीक बनाकर सामने है। धर्म आधारित नागरिकता की ख़तरनाक मुहीम के इस दौर में काकोरी के शहीद जाति-मज़हब के बंटवारे की दीवारों को तोड़कर हक़ के लिए सच्चे संघर्षों को आगे बढ़ाने का आह्वान कर रहे हैं!

काकोरी कांड और अन्यायपूर्ण सजाएं

विख्यात क्रांतिकारी संगठन ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ (एचआरए) के क्रांतिकारियो ने नौ अगस्त 1925 को काकोरी में एक ट्रेन में डकैती डाली थी। इसी घटना को ‘काकोरी कांड’ के नाम से जाना जाता है। क्रांतिकारियों का मकसद ट्रेन से सरकारी खजाना लूटकर उन पैसों से अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध को मजबूती देना था।

काकोरी कांड का ऐतिहासिक मुकदमा लगभग 10 महीने तक लखनऊ की अदालत रिंग थियेटर में चला। इस पर सरकार का 10 लाख रुपये खर्च हुआ। छह अप्रैल 1927 को इस मुकदमे का फैसला हुआ जिसमें जज हेमिल्टन ने धारा 121अ, 120ब, और 396 के तहत क्रांतिकारियों को सजाएं सुनाईं। इस मुकदमे में रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई। शचीन्द्रनाथ सान्याल को कालेपानी और मन्मथनाथ गुप्त को 14 साल की सजा हुई। योगेशचंद्र चटर्जी, मुकंदीलाल जी, गोविन्द चरणकर, राजकुमार सिंह, रामकृष्ण खत्री को 10-10 साल की सजा हुई जबकि विष्णुशरण दुब्लिश और सुरेशचंद्र भट्टाचार्य को सात और भूपेन्द्रनाथ, रामदुलारे त्रिवेदी और प्रेमकिशन खन्ना को पांच-पांच साल की सजा हुई।

चार क्रांतिकारियों की वीरतापूर्ण शहादतें

17 दिसंबर 1927 को सबसे पहले गोंडा जेल में राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को फांसी दी गई। 19 दिसंबर, 1927 को पं. रामप्रसाद बिस्मिल गोरखपुर जेल में फांसी पर चढ़े। फांसी के दरवाजे पर पहुंचकर बिस्मिल ने कहा, ‘मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूं।’ अशफाक उल्ला खां फैजाबाद में फांसी झूल गए। उन्होंने लिखा-‘तंग आकर हम भी उनके जुल्म से बेदाद से, चल दिए सुए अदम जिंदाने फैजाबाद से।‘  जबकि ठाकुर रोशन सिंह ने इलाहाबाद में फांसी का फंदा चूमा। उन्होंने अपने मित्र को पत्र में लिखा था, ‘हमारे शास्त्रों में लिखा है, जो आदमी धर्मयुद्ध में प्राण देता है, उसकी वही गति होती है जो जंगल में रहकर तपस्या करने वालों की।’

साम्प्रदायिक एकता के प्रतीक

काकोरी एक्शन के शहीदों के महत्वपूर्ण होने की वजह यह भी थी कि आजादी आंदोलन के दौरान अंग्रेज जो फूट डालो और राज करो की नीति अपना रहे थे और लगातार तमाम संप्रदायिक दंगे भड़काने की कोशिशें चल रही थी, इन शहीदों ने अंग्रेजों और फिरकापरस्ती की इन सभी नीतियों को नाकाम करते हुए हिंदू और मुस्लिम एकता स्थापित करने की लगातार कोशिश की। इसका एक उदाहरण राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां की दोस्ती से भी देखा जा सकता है।

शहीदों के सपनें और सीएए-एनआरसी का दंश

उन शहीदों का सपना था कि एक सुंदर भारत का निर्माण किया जाए जिसमें सांप्रदायिकता और जातिवाद जैसे दंगे देश के अंदर ना भडके, नौजवान बेरोजगार न हो, महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न जैसी घटना ना घटे, जिसमें एक इंसान दूसरे इंसान का शोषण न कर सके। लेकिन आज देश के अंदर लगातार मेहनाताकशो-नौजवानों को जाति और धर्म के नाम पर बांटने की ख़तरनाक मुहिम चल रही है। कश्मीर, धारा-370, अयोध्या, नागरिकता रजिस्टर, नागरिकता संशोधन क़ानून आदि के साथ देश में भयावह स्थितियाँ पैदा की जा चुकी हैं।

सीएए या एनआरसी, जैसे कानून पूरी तरह गैर संवैधानिक और समानता के अधिकार की धज्जियां उड़ाने वाले हैं। असल में चाहे कश्मीर की स्वायत्तता भंग करने का मामला हो या फिर एनआरसी या अब नागरिकता कानून में संशोधन यह सब भाजपा सरकार द्वारा योजनाबद्ध तरीके से कथित हिंदुत्ववादी एजेंडे को लागू करने के लिए किया जा रहा है। यह कानून जनता को धर्म के आधार पर बांटने वाला और संघीय ढांचे व धर्म निरपेक्षता पर हमला है। ये प्रावधान स्पष्ट रूप से संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार का खुला उल्लंघन है। इस तरह आज अशफ़ाक-बिस्मिल के देश में विभाजनकारी ताक़तें हावी हैं।

असल मामला कुछ और है. . .

आज देश के हालात बेहद नाजुक़ हो चुके हैं। देश की अर्थव्यवस्था संकट में फंसी हुई है। देश आर्थिक मंदी की चपेट में है। आर्थिक मंदी का सारा बोझ मजदूरों पर डाला जा रहा है। श्रम कानूनों को पूँजी के हित में बदला जा रहा है। निजीकरण-छँटनी-बन्दी, महँगाई-बेरोजगारी, भुखमरी-अत्महत्याएं रोज नये रिकॉर्ड बना रहे हैं। इसी के साथ समाज के भीतर इंसान को इंसान के दुश्मन के तौर पर उसी तेजी से खड़ा किया जा रहा है। इस तरह आंदोलनरत जनता के गुस्से से अपनी सरकार और पूँजीवादी व्यवस्था को बचाने के लिए मोदी सरकार जनता में फूट डालने के लिए यह सब कुटिल चालें चल रही है।

दरअसल मोदी के नेतृत्व में संघ-भाजपा बड़े ही खूबसूरती व तेजी से जो एजेण्डे लागू कर रहे हैं, उनमें एक तीर से कई निशाने साध रहे हैं। बड़े पूँजीपतियों के हित में कुशलता से नीतियाँ लागू करना; संघ के कथित हिन्दूवादी नीतियों को थोप देना और हर तरह के प्रतिरोध को ठंडा करने के लिए कथित राष्ट्रभक्ति के नशे की खुराक कुशलता से परोसना।

साझी शहादत-साझी विरासत को याद करो!

ऐसे हालात में आज काकोरी के शहीदों को याद करना, बिस्मिल-अशफ़ाक़ की दोस्ती, उनकी साझी शहादत-साझी विरासत को याद करके उनके अधूरे सपनों को पूरा करने के संघर्ष को तेज करना होगा!

बिस्मिल-अशफ़ाक का आह्वान-

“अब देशवासियों के सामने यही प्रार्थना है कि यदि उन्हें हमारे मरने का जरा भी अफसोस है तो वे जैसे भी हो, हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करें – यही हमारी आखिरी इच्छा थी, यही हमारी यादगार हो सकती है।” (शहीद रामप्रसाद बिस्मिल के अन्तिम सन्देश से, जिसे भगतसिंह ने ‘किरती’ पत्र में जनवरी, 1928 में प्रकाशित कराया था)

“हिन्दुस्तानी भाइयो! आप चाहे किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के मानने वाले हों, देश के काम में साथ दो। व्यर्थ आपस में न लड़ो।” (फाँसी के ठीक पहले फैजाबाद जेल से भेजे गये काकोरी काण्ड के शहीद अशफाक उल्ला के अन्तिम सन्देश से)

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