तो अब लक्ष्मी विलास बैंक भी फँसा

93 साल पुराने लक्ष्मी विलास बैंक पर RBI की कार्रवाई, FIR भी दर्ज

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने लक्ष्मी विलास बैंक पर कड़ी कार्रवाई करते हुए उसे त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन्स PCA) में डाल दिया है। इससे अब बैंक पर नया कर्ज देने और नई ब्रांच खोलने पर पाबंदी लग गई है।

ज्ञात हो कि RBI किसी भी बैंक को PCA के फ्रेमवर्क में तब डालता है जब बैंक का NPA बढ़ जाता है या फिर उसकी इनकम नहीं बढ़ रही है। मौजूदा समय में PCA के तहत आने वाले बैंक यूनाइटेड बैंक ऑफ़ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया, IDBI बैंक और UCO बैंक हैं।

इसे भी देखें- क्या भाजपा बेरोजगारी के संकट को लेकर गंभीर है ?

दिल्ली पुलिस की इकोनॉमिक ऑफेंस विंग (EOW) ने लक्ष्मी विलास बैंक के खिलाफ FIR दर्ज की है। बैंक पर आपराधिक षड्यंत्र रचने, गबन और धोखा देने का आरोप है। RBI की इस कार्रवाई से बैंक का इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस में विलय होने का प्रस्ताव अधर में लटक गया है। विलय को अभी तक RBI से मंजूरी नहीं मिली है।

इसे भे देखें- सबसे धनी बिल्डर भाजपा नेता लोढ़ा कर्ज में, किया छंटनी

इस पूरे मामले पर वरिष्ठ आर्थिक विश्लेषक और स्वतंत्र टिप्पणीकार गिरीश मालवीय की 3 दिन पुरानी पोस्ट गौरतलब है-

तो क्या PMC बैंक के बाद करीब 93 साल पुराने लक्ष्मी विलास बैंक का नंबर है?

देश के प्रमुख निजी बैंकों में शुमार लक्ष्मी विलास बैंक के निदेशकों के खिलाफ दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने 790 करोड़ रुपये का गबन करने केआरोप में मुकदमा दर्ज किया है। यह मुकदमा पुलिस ने वित्तीय सेवा कंपनी रेलिगेयर फिनवेस्ट की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए किया है।

दिल्ली पुलिस को दी गई अपनी शिकायत में रेलिगेयर ने कहा है कि उसने 790 करोड़ रुपये की एक एफडी बैंक में की थी, जिसमें से हेरा-फेरी की गई है। पुलिस ने कहा कि शुरुआती जांच में ऐसा लग रहा है कि पैसों में हेराफेरी पूरी योजना बद्ध तरीके से की गई है। फिलहाल पुलिस ने बैंक के निदेशकों के खिलाफ धोखाधड़ी, विश्वासघात, हेराफेरी व साजिश का मुकदमा दर्ज किया है।

ज्ञातव्य हो कि लक्ष्मी विलास बैंक को जल्द ही इंडियाबुल्स खरीदने वाली है। अप्रैल 2019 में लक्ष्मी विलास बैंक ने इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस के साथ विलय की घोषणा की थी। लक्ष्मी विलास बैंक के निदेशक मंडल ने प्रस्‍ताव पर मंजूरी दे दी है। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस की लक्ष्मी विलास बैंक के साथ प्रस्तावित विलय को मंजूरी दे दी है। विलय की प्रक्रिया पूरी करने के लिए आरबीआई, सेबी समेत अन्‍य संस्‍थाओं की मंजूरी जरूरी है। इस प्रक्रिया में 6 से 8 महीने तक का समय लग सकता है।

इसे भी देखें- पंजाब एंड महाराष्ट्र बैंक के लाखों जमाकर्ताओं की दीवाली काली

पंजाब एंड महाराष्ट्र बैंक का संबंध भी DHFL से पाया गया था लेकिन यहाँ तो मामला और खुला है।

कुछ दिनों पहले इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (आईएचएफएल), उसके शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ जनता के 98,000 करोड़ रुपये की हेराफेरी के आरोप में सोमवार को उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई। याचिका में कंपनी, उसके चेयरमैन और निदेशकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की गई।

इसे भी देखें- ब्रिटेन की ट्रैवल कंपनी थॉमस कुक दिवालिया, दुनियाभर में 6 लाख पर्यटक फंसे

याचिका में आरोप लगाया गया था कि कंपनी के चेयरमैन समीर गहलोत और निदेशकों ने जनता के हजारों करोड़ रुपये के धन का हेरफेर करके उसका इस्तेमाल निजी काम में किया। यचिकाकर्ता और आईएचएफएल के एक शेयरधारक अभय यादव ने याचिका में आरोप लगाया है कि गहलोत ने स्पेन में एक प्रवासी भारतीय ( एनआरआई) हरीश फैबियानी की मदद से कई “मुखौटा कंपनियां” खड़ी कीं । इन कंपनियों को आईएचएफएल ने फर्जी तरीके और बिना आधार के भारी मात्रा में कर्ज दिए।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्यूचुअल फंड कंपनियों से आवास वित्त कंपनियों डीएचएफएल और इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस में उनके निवेश का ब्योरा मांगा है। प्रणाली में नकदी संकट को लेकर चिंता बनी हुई है।

इसे भी देखें- 5 लाख से बिजनेस किया शुरू, आज 95000 करोड़ की संपत्ति

एक बात और महत्वपूर्ण है कि कुछ सालो पहले पनामा प्रकरण में भारत के जिन 50 बड़े लोगों के नाम आए हैं, उसमे इंडियाबुल्स ग्रुप के संस्थापक अध्यक्ष समीर गहलोत का नाम भी शामिल है।

गिरीश मालवीय की फ़ेसबुक पोस्ट, साभार

भूली-बिसरी ख़बरे