इस मानवीय त्रासदी में कहाँ खड़ी है सरकार?
लोग भागे जा रहे हैं। किसी माँ के कंधे पर बच्चा है, किसी के पीठ पर बैग, तो किसी के सिर पर गठरी। ऐसा कारवां दिख रहा है, जो भारत-पाक त्रासदी की याद दिला रहा है। तब लोग धर्मोन्मादियों से आतंकित थे, आज पुलिस से पिट रहे हैं, लेकिन बढ़ते जा रहे हैं। उनके सामने एकतरफ कोरोना है, तो दूसरी ओर भुखमरी। अजब मानवीय त्रासदी का दृश्य है।
ग़जब स्थिति यह कि जो मोदी सरकार चीन, इटली, ईरान आदि देशों से लोगों को लाने के लिए विशेष जहाज भेज रही है, वही सरकार फंसे हुए ग़रीब मज़दूरों के लिए कोई बंदोबस्त करने में उदासीन है, उसकी पुलिस मजबूर आवाम को पीट रही है, अमानवीय रूप से दण्डित कर रही है। पैसे वालों के लिए एक स्थिति, ग़रीब मज़दूरों के लिए दूसरी स्थिति।

दरअसल, 24 मार्च की रात 8 बजे अचानक लॉकडॉउन की घोषणा के बाद जनता के बीच एक अफरातफरी का माहौल पैदा हो गया। अचानक बस और ट्रेन की सुविधा ठप्प होने से फैक्ट्री में काम करने वाले दिहाड़ी मज़दूर, सड़कों पर फड-खोखा लगाने वाले मज़दूर, मकान बनाने, रिक्शा-ठेली लगाने वाले मज़दूर… अपने घर की तरफ पैदल ही निकल पड़े। ये सब एक अफ़वाह की वजह से हुआ।
मज़दूरों का कहना है कि कोरोना वायरस से पहले उन्हें भूख मार डालेगी। मकान मालिक ने भी इस मुश्किल स्थिति में उनका साथ छोड़ दिया है। पहले जनता कर्फ्यू, फिर 21 दिन के लॉकडॉउन की वजह से उनका काम धंधा बंद हो गया है। माथे पर बोझा उठाए, बच्चों को थामे कोई गुजरात से राजस्थान पैदल चल पड़ा है तो कोई दिल्ली से उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड अपने गांव पैदल ही चल पड़ा है। ज़ाहिर है लोगों को भारत सरकार की कार्य प्रणाली पर भरोसा नहीं है। उनको पता है परदेश में कोई उनका सहारा नहीं बनने वाला।
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बीती रात दिल्ली से उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों के लिए बस चलने की अफवाह के बाद आनंद विहार बस अड्डा व दिल्ली-उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर भारी संख्या में प्रवासी मज़दूरों की भीड़ इकट्ठी हो गई। रात और बारिश के बावजूद लोग रुकने को तैयार नहीं थे। पुलिस ने लोगों को बॉर्डर पर ही रोक दिया।
जिस तरीके से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अचानक से 24 तारीख को रात 8 बजे पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा की गई वो दिखाता है कि इस महामारी से निपटने के लिए सरकार की कोई तैयारी नहीं थी, ना ही कोई विस्तृत और स्पष्ट योजना थी। लॉकडॉउन का फैसला भी ठीक नोटबंदी के फैसले की तरह तुगलकी फरमान था। एकबार फिर चारो तरफ भय का माहौल व्याप्त हो गया है।

लॉकडॉउन की घोषणा करते वक़्त मज़दूरों का ख्याल नहीं किया गया। जिस देश की 90 प्रतिशत आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करती हो वहां थाली बजाकर “जागरूकता” का ज्ञान देना एक प्रधानमंत्री के जाहिलपने को जाहिर करता है। लोगों को दो वक्त का खाना मिलना मुश्किल हो रहा है और सरकार ने इस महामारी के समय अपनी 90% आबादी को उनके हाल पर छोड़ दिया या जनता को नसीहत दे दी कि वह अपने आसपास का ख्याल रखें।
बिहार झारखंड बंगाल उत्तर प्रदेश के कई मज़दूर दिल्ली और हरियाणा के औद्योगिक इलाकों में फंसे हुए हैं, जहां उनके पास खाने के लिए दो वक्त का राशन उपलब्ध नहीं है, एक एक कमरे में 10 10 लोग रह रहे हैं और सरकार सोशल डिस्टेंसिंग का ज्ञान दे रही है। महाराष्ट्र में दो बड़े कंटेनररो में तेलंगाना से आए करीब 300 मजदूर पाए गए।
इस भयावह विश्वव्यापी संकट से निपटने के लिए सरकार की कोई तैयारी नहीं है। संकट के शुरुआती तीन महीने सरकार लापरवाह बनी रही। ट्रंप की अगवानी, गरीबी छिपाने के लिए दीवाले बनाने, विधायकों को कब्जाने, सरकार गिराने व बनाने, दंगा फ़ैलाने आदि में मशगूल रही। और जब पानी सिर के ऊपर आने लगा, तो अपने लापरवाही का ठीकरा मेहनतकश जनता के मत्थे फोड़ दिया। ऐसे में ताली-थाली पिटवाने के नए उन्माद का खेल खेल दिया।
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अब हाल ये हैं कि मकान मालिक कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अग्रिम पंक्ति में खड़े डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ को को घर से निकाल रहे हैं। डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के पास मास्क और पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट तक उपलब्ध नहीं है। यूपी में तो डॉक्टरों को मास्क और पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट उपलब्ध कराने के लिए उनकी वेतन में से पैसे काटे गए। यही नहीं, केन्द्र सरकार ने 8 फरवरी को कोरोना जैसे वायरस के संक्रमण से बचाव हेतु सर्जिकल मास्क, दस्ताने, कपड़ों एवं अन्य सुरक्षा उपकरणों के निर्यात पर लगी रोक को ही हटा लिया था।

पहले से ही चौपट अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी का संकट झेल रहे इस इस देश में कोरोना वायरस की वजह से उत्पन्न हुए भय के माहौल ने केंद्र सरकार की नीतियों और नीयत तथा हमारी सामाजिक प्रशासनिक व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है। हिंदू मुस्लिम के नाम पर राजनीति करने वाले लोग अपने देश के लोगों को कुछ नहीं दे सकते सिवाय नफरत और दंगों की आग के।
और हर बार मारी जाती है ग़रीब मेहनतकश जनता!