झूठे मुक़दमे वापस लो, दंगाइयों को गिरफ्तार करो!

मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने दिल्ली हिंसा की निष्पक्ष जाँच की माँग की
मासा ने कोरोना/लॉकडाउन की आड़ में सीएए-एनआरसी विरोधी आन्दोलनकारियों के बढ़ते दमन, फर्जी मुक़दमों व गिरफ्तारियों और दिल्ली हिंसा के असल गुनाहगारों को बचाने की साजिशपूर्ण कार्यवाहियों की तीखी निंदा करते हुए आन्दोलनकारियों की रिहाई, सत्ता संरक्षित गुनाहगारों की गिरफ़्तारी और दिल्ली हिंसा की निष्पक्ष जाँच की माँग करते हुए बयान जारी किया है।
मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) का कोरोना-संकट के दौरान भाजपा सरकार द्वारा जनवादी अधिकारों पर लगातार हमला, CAA-विरोधी कार्यकर्ताओं पर दमन और झूठे मुकदमे दर्ज करने पर बयान
कोरोना का फैलाव रोकने के नाम पर लगाये गये लॉकडाउन की आड़ में भाजपा सरकार ने कोरोना से बचने की उचित व्यवस्था करने की बजाय अपने फासिस्ट एजेंडे को पूरा करने के रास्ते में आने वाले सभी राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ संघर्ष तेज कर दिया है।
भाजपा सरकार ने एक तरफ तो देश के मज़दूर वर्ग के खिलाफ हमला बोला हुआ है, वहीं दूसरी तरफ सरकार विरोधी प्रत्येक आवाज़ को कुचल कर जनवादी अधिकारों पर लगातार हमला कर रही है। खास कर, सीएए-विरोधी आन्दोलन के कार्यकर्ताओं पर फ़रवरी में हुए दिल्ली ‘दंगा’ से सम्बंधित झूठे मुकदमे बना कर उन्हें जेल में डालने का सिलसिला लॉकडाउन के बीच भी जारी है।
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इसी क्रम में ‘पिंजरा तोड़’ संगठन के कार्यकर्ता और जेएनयू की छात्रा देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को दिल्ली पुलिस ने 23 मई को उनके घर से बिना किसी पूर्व सूचना के गिरफ्तार किया है। उन्हें 24 मई को जमानत देते हुए मजिस्ट्रेट ने कहा था कि “आरोपी केवल एनआरसी और सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे और किसी भी हिंसा में शामिल नहीं थे”।
इस आदेश के तुरंत बाद, क्राइम ब्रांच के पुलिस अधिकारियों ने अदालत में एक और दरख्वास्त देकर एक नई एफ़आईआर के तहत उन्हें दोबारा गिरफ्तार कर लिया, जिसमें हत्या, हत्या के प्रयास, आपराधिक साजिश, दंगे, लोक सेवक पर हमला और सरकारी काम में बाधा डालना और आर्म्स ऐक्ट के तहत गंभीर आरोप शामिल हैं। अभी उन पर UAPA जैसी काला कानून थोपा गया है।
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गत दो मास में दिल्ली पुलिस ने जामिया के छात्र सफूरा ज़रगर, मीरान हैदर, आसिफ़ तन्हा व कार्यकर्ता इशरत जहां, खालिद सैफ़ी, गुलफ़िशा फातिमा और हज़ार से ज्यादा अन्य मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार किया है और संशोधित UAPA के तहत सफूरा ज़रगर और हैदर पर कार्यवाही चलाई जा रही है। 28 मई को उत्तर प्रदेश पुलिस ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र फरहान ज़ुबेरी को सीएए विरोधी आन्दोलन में जुड़े रहने के कारण गिरफ्तार कर लिया है।
यह गिरफ्तारियां गत दिसंबर से देश भर में चल रहे सीएए-एनआरसी विरोधी आन्दोलन को दंडित करने का प्रमुख ज़रिया बनी हैं। सरकार कोरोना महामारी के घातक प्रभाव और लॉकडाउन की वजह से देश की मेहनतकश आबादी पर रोजगार व भूख के संकट की कोई परवाह न करके इस मौके को जनतांत्रिक कार्यकर्ताओं और अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले तेज़ करने के लिए इस्तेमाल कर रही है।

दिल्ली उच्च न्यायालय के जज न्यायमूर्ति मुरलीधर ने कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर जैसे लोगों को नफरत और हिंसा भड़काने का आरोपी मानते हुए इन आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी का आदेश दिया था। जिन लोगों ने दिल्ली के हत्याकांड को अंजाम दिया था, वो लोग आज भी खुलेआम घूम रहे हैं लेकिन दिल्ली पुलिस द्वारा निरंतर सीएए विरोधी कार्यकर्ताओं को फ़र्ज़ी तरीकों से दिल्ली ‘दंगे’ के आरोपी बनाया जा रहा है, “जिहादी-नारीवादी-अर्बन नक्सल” द्वारा रची गयी साजिश की मनगढ़ंत कहानी बनायी जा रही है।
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मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) भाजपा सरकार द्वारा लोकतान्त्रिक अधिकारों पर इन हमलों का सख्त विरोध करता है और यह माँग करता है-
- सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ संघर्ष कर रहे देवांगना कलिता, नताशा नरवाल, सफूरा सहित तमाम राजनीतिक कार्यकर्ताओं को और अल्पसंख्यक प्रदर्शनकारियों को तुरंत रिहा किया जाए और सभी झूठे मुकदमे वापिस लिया जाएं!
- सीएए-एनआरसी-एनपीआर विरोधी आंदोलनकारियों का दमन बंद किया जाए!
- हाल ही में हुई दिल्ली हिंसा की निष्पक्ष न्यायिक जांच करवाकर हिंसा के असल गुनाहगार- शासक पार्टी के कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा जैसे लोगों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए!
- जनविरोधी सीएए, एनपीआर, एनआरसी रद्द किये जाएं!
- यूएपीए जैसे काले कानून रद्द किये जाएं!
—को-आर्डिनेशन कमिटी, मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा)