कोविड-19 : बेरोजगारी, भुखमरी विकराल; नस्ली भेद चरम पर

नस्ली राष्ट्रवाद, लोकलुभावनवाद, निरंकुशता और मानवाधिकारों के उल्लंघन के बीच बढ़ता दमन
कोविड-19 का विश्वव्यापी संकट भयावह मानवीय त्रासदी का सबब बन गया है। पहले से ही संकटग्रस्त मेहनतकश आवाम बड़े संकट के आगोश में है। एक झटके में इतनी भयावह बरोजगारी, भुखमरी के साथ इसने अनिश्चय, भय, अविश्वास और धार्मिक व नस्ली नफ़रत को चरम पर पहुँचा दिया है। सत्ता की निरंकुशता भी विकट रूप धारण करती जा रही है।
अभी तक दुनियाभर में 26 लाख से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं, जिनमें से 1.83 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 26 लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं।
हालात ये हैं की वैश्विक पूँजीवादी संस्थाएं भी अचानक पैदा इस संकट पर चिंताएं और चेतावनियाँ जारी कर रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यूरोप में कोरोना से होने वाली मौतों में आधी मौतें केयर होम्स में हुईं हैं।
वर्तमान हालात के तीन गंभीर अहम संकटों पर विचार-
बेरोजगारी : दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे भयावह

22 अप्रैल को विश्व बैंक ने कहा है कि भारत में पिछले करीब एक महीने से जारी देशव्यापी लॉकडाउन से देश के लगभग चार करोड़ प्रवासी कामगार प्रभावित हुए हैं। उनकी आजीविका पर असर पड़ा है। पिछले कुछ दिनों के दौरान 50-60 हजार लोग शहरी केंद्रों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर चले गए हैं।
‘प्रवासी के नजरिये से कोविड-19 संकट’ नामक रिपोर्ट के अनुसार आंतरिक प्रवास की तादाद अंतरराष्ट्रीय प्रवास के मुकाबले करीब ढाई गुना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के चलते नौकरी छूट जाने और सामाजिक दूरी के कारण भारत और लातिन अमेरिका के कई देशों में बड़े पैमाने पर आंतरिक प्रवासियों को वापस लौटना पड़ा है।
संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय ने चेतावनी दी है कि इस संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग में फंस सकते हैं और अनुमान है कि इस साल दुनिया भर में 19.5 करोड़ लोगों की पूर्णकालिक नौकरी छूट सकती है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने कोरोना वायरस संकट को दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे भयानक संकट बताया है।
भारत में बेरोजगारी पहुँचा 23 प्रतिशत

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने जो रिपोर्ट जारी की है, वो ये बताती है कि देश में पहली बार बेरोज़गारी 23 प्रतिशत हो गई है। कोविड-19 से पहले देश में आठ प्रतिशत बेरोज़गारी दर थी, जो कि बर्दाश्त से बाहर मानी जाती है। बेरोजगारी पहले से ही ज्यादा थी, अब तीन गुना और बढ़ गई है।
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ऐसा पहली बार हुआ है की करीब 20 करोड़ लोगों का रोजगार एक झटके में चला गया। इस दौरान असंगठित क्षेत्र के प्रवासी मज़दूरों का जो इतना बड़ा पलायन हुआ, उसके सही आंकडे अभी उपलब्ध नहीं हैं। भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफ़नामा में माना है कि छह लाख मज़दूर सड़कों पर थे, जिनको कैम्प में डाल दिया गया है।
लेकिन हक़ीक़त यह है कि दसियों लाख लोग सड़क पर थे।
भुखमरी बन रही महामारी

संयुक्त राष्ट्र के निकाय विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डेविड बीस्ले ने 21 अप्रैल को ‘अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा अनुरक्षण: संघर्ष से उत्पन्न भूख से प्रभावित आम नागरिकों की सुरक्षा’ विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सत्र के दौरान कहा, ‘एक ओर हम कोविड-19 महामारी से लड़ रहे हैं वहीं, दूसरी ओर भुखमरी की महामारी के मुहाने पर भी आ पहुँचे हैं।’
बीस्ले ने कहा कि कोविड-19 के चलते दुनिया वैश्विक स्वास्थ्य महामारी ही नहीं बल्कि वैश्विक मानवीय सकंट का भी सामना कर रही है। संघर्षरत देशों में रहने वाले लाखों नागरिक, जिनमें कई महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, भुखमरी के कगार पर हैं।
बीस्ले ने कहा कि पूरी दुनिया में हर रात 82 करोड़ 10 लाख लोग भूखे पेट सोते हैं। इसके अलावा 13 करोड़ 50 लाख लोग भुखमरी या उससे भी बुरी स्थिति का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘विश्व खाद्य कार्यक्रम के विश्लेषण में पता चला है कि 2020 के अंत तक 13 करोड़ और लोग भुखमरी की कगार पर पहुँच सकते हैं। इस तरह भुखमरी का सामना कर लोगों की कुल संख्या बढ़कर 26 करोड़ 50 लाख तक पहुँच सकती है।’
हाल ही में कुछ भारतीय विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों ने भी कोरोना वायरस के चलते देश में गरीबी और भुखमरी के बढ़ते खतरे पर चिंता जताई थी। कहा था कि अगर भारत के लोगों को भोजन नहीं मुहैया कराया जाता है और दिहाड़ी मजदूरों की बढ़ती समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता है तो देश में गरीबी बढ़ने और भुखमरी का खतरा बढ़ सकता है।
धार्मिक नफ़रत के साथ बढ़ता मानवाधिकार संकट

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने 23 अप्रैल को कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना वायरस एक मानव संकट है जो तेजी से मानवाधिकार संकट बनती जा रही है। कोविड-19 संकट से निपटने में जन सेवाओं की आपूर्ति में भेदभाव किया जा रहा है और कुछ संरचनात्मक असमानताएं हैं, जो उन सेवाओं तक पहुँच में बाधा उत्पन्न करती हैं।
गुतारेस ने कहा कि वैश्विक महामारी के कुछ समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े हैं, नफरत फैलाने वाले वक्तव्य बढ़ गए हैं, संवेदनशील समूहों पर हमले बढ़े हैं तथा सख्त सुरक्षा कार्रवाई के जोखिम से स्वास्थ्य प्रतिक्रिया कमतर हो रही हैं।
उन्होंने चेतावनी दी, ‘कुछ देशों में नस्ली राष्ट्रवाद, लोकलुभावनवाद, निरंकुशता और मानवाधिकारों से पीछे हटने के मामले बढ़ने से यह संकट महामारी से असंबद्ध उद्देश्यों के लिए दमनकारी उपाय अपनाने का बहाना प्रदान करता है।’
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