खुलती फैक्ट्रियां : मज़दूरों की क़यामत का नया दौर

सवाल-दर-जवाब : किन शर्तों पर खुल रही हैं फैक्ट्रियां? प्रवासी मज़दूरों का क्या होगा?
नए हालत में खुल रहे कारखानों में मज़दूरों की क़यामत का नया दौर शुरू हो गया है। कोरोना संकट तो एक वक़्त तक रहेगा, लेकिन मज़दूरों के लिए यह लम्बे समय का वायरस साबित होगा। काम के घंटे बढ़ाने, मनमर्जी भर्ती व वेतन का प्रावधान, लॉकडाउन में फंसे मज़दूरों में से काम लायक मज़दूरों को चुनने, संकट के बहाने छंटनी आदि महज संकेत मात्र हैं!
कोरोना/लॉकडाउन के बीच तमाम कारखाने खुल रहे हैं, लेकिन बहुत कुछ बदला हुआ है। जहाँ मज़दूरों के स्किल की जाँच के बहाने मनमाने काम पर रखने की छूट मिल रही है, वहीँ ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ के साथ कार्य-अवधि 8 से बढाकर 12 घंटे दैनिक करने के आदेश पारित हो रहे हैं। इन सबके बीच संकटग्रस्त प्रवासी मज़दूरों की दिक्कतें जारी रहेंगी।

गौरतलब है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने 14 अप्रैल को लॉकडाउन को 3 मई तक आगे बढ़ा दिया था। लेकिन 20 अप्रैल से कुछ राहतों का ऐलान भी किया था। लेकिन ये राहत दरअसल उद्योगपतियों की माँग के अनुरूप हैं। पूरी कवायद पूँजीपतियों की शीर्ष संस्था सीआईआई द्वारा तैयार रूपरेखा के तहत हो रहा है।
कारखानों को खोलने, व्यापार संचालित करने, देश को तीन जोन में बाँटने आदि उनके दिशानिर्देश के अनुरूप ही है। इस बहाने श्रम क़ानूनों में मज़दूर विरोधी परिवर्तनों को लागू करने का अभ्यास भी हो रहा है। जिसमें काम के घंटे बढ़ाना, मनमाने तरीके से मज़दूरों की भर्ती करने और निकालने की खुली छूट देना आदि शामिल है।
उद्योगपतियों के सुझाव
बड़े पूँजीपतियों के परिसंघ सीआईआई द्वारा सरकार को सुझाव दिए गए
थे कि विभिन्न क्षेत्रों को उनके इलाके में कोरोना वायरस के संक्रमण की तीव्रता के
आधार पर चरणबद्ध तरीके से धीरे-धीरे खोला जाना चाहिये। इसके लिए उन्हें लाल, पीले या हरे इलाके में
वर्गीकृत किया जा सकता है।
पीएम द्वारा दूसरे चरण के लॉकडाउन की घोषणा से पूर्व सीआईआई के
प्रस्ताव के अनुसार, ई-वाणिज्य, वाहन तथा रसायन के अलावा
कपड़ा एवं परिधान, दवा, खाद्य प्रसंस्करण, खनिज एवं धातु आदि प्रमुख
क्षेत्र हैं, जिनमें
धीरे-धीरे परिचालन शुरू करने की जरूरत है।
इसी क्रम में कृषि बाजारों, खाद्य एवं किराना डिलिवरी समेत ई-वाणिज्य, वाहन तथा वैसे रसायन
जिनका इस्तेमाल साफ-सफाई में किया जाता है, आदि खोलने, फिर तीसरे चरण में बचे क्षेत्रों को खोला जाना चाहिये।
संगठन ने एक आर्थिक पैकेज की भी माँग की है।
मोदी सरकार दूसरे चरण की पूरी योजना इसी के अनुपालन में लागू कर रही है।
“योग्यता” के अनुसार काम देने पर विचार
19 अप्रैल को जारी गृह मंत्रालय के ताजा दिशा निर्देश में सरकार ने स्थानीय प्रशासन से कहा है कि वह रिलीफ कैंपों में मौजूद मज़दूरों का डेटा तैयार करे और उनकी स्किल के बारे में पता लगाए। इसके बाद उन्हें उनकी “योग्यता” के मुताबिक ही काम देने पर विचार किया जाएगा।
- इसे भी पढ़ें– लॉकडाउन को सशर्त बढ़ाने लेकिन उद्योग खोलने की तैयारी
- इसे भी पढ़ें– कोरोना टेस्ट अब नहीं होगा सबके लिए मुफ्त
- इसे भी पढ़ें– कोरोना/लॉकडाउन के बीच मज़दूर विरोधी श्रम संहिताएँ होंगी पारित
- इसे भी पढ़ें– कोरोना संकट के बहाने काम के घंटे 12 करने की तैयारी

स्किल या योग्यता की जाँच का मतलब क्या है? कौन करेगा जाँच? क्या अबतक काम करने वाले योग्यता या क्षमताविहीन रहे हैं? जो मज़दूर पहले जहाँ काम कर रहा था, अचानक वह ‘अनुपयुक्त’ कैसे हो गया? सबको पूर्व की भांति काम क्यों नहीं मिलना चाहिए?

इन सवालों को समझने के लिए मोदी सरकार द्वारा मालिकों की लम्बे समय से माँग के अनुरूप 44 श्रम कानूनी अधिकारों को छीन कर 4 श्रम संहिताओं में बदलने के मज़दूर विरोधी कवायदों से जोड़कर समझा जा सकता है। जिसके मूल में है ‘हायर एंड फायर’ यानी जब चाहो काम पर रखो, जब चाहो निकाल दो।
‘स्किल’ या ‘योग्यता’ की जाँच के बहाने कंपनियों की चाहत के अनुरूप मज़दूरों की छंटाई करने का जरिया है। उल्लेखनीय है कि कंपनियों ने कम-से कम 33 फीसदी श्रमिकों की कटौती की तैयारी कर ली है। यह कवायद उसी प्रक्रिया का हिस्सा है। जिसकी सबसे बड़ी मार अस्थाई मज़दूरों पर पड़ेगी!
कोरोना जैसे मानवीय संकट का फायदा मालिकों के हित में उठाने की महज यह बानगी है।
काम के घंटे बढ़ाने का फरमान
यह ध्यान देने की बात है कि केंद्र सरकार कारखाना अधिनियम, 1948 में संशोधन के लिए एक प्रस्ताव ला रही है। उसका तर्क है कि इससे कारखानों को कम श्रमिकों और उच्च माँग का सामना करने में मदद मिलेगी। यह परिवर्तन कंपनियों को एक सप्ताह में 8 घंटे, छह दिन (या 48 घंटे) के वर्तमान स्वीकृत मानदंड को बदलकर सप्ताह के 12 घंटे, छह दिन (72 घंटे) तक का समय बढ़ाने की अनुमति देगा।
अलग-अलग राज्य सरकारें इसे क़ानूनी रूप देने भी लगी हैं। कारखानों में 12 घंटे का शिफ्ट लागू भी हो चुका है। इस बीच गुजरात सरकार ने संशोधन आदेश पारित भी कर दिया।
गुजरात सरकार का नया आदेश
मोदी की आदि भूमि गुजरात की राज्य सरकार ने कारखाना अधिनियम 1948 के तहत पंजीकृत फैक्ट्रियो दैनिक काम के घंटे 12 करने का आदेश जारी भी कर दिया है। 17 अप्रैल को जारी आदेश में अधिनियम में संशोधन करके कार्यदिवस दैनिक 12 घंटे और साप्ताहिक 72 कर दिया है।

यही नहीं, आदेश में यह भी स्पष्ट उल्लेख है कि 8 घंटे के अनुपात में 12 घंटे काम का वेतन मिलेगा, यानी 8 घंटे के 80 रुपए के अनुपात में 12 घंटे का 120 रुपए मिलेगा। यह भी कि 6 घंटे कार्य के बाद आधे घंटे का भोजन अवकाश देना होगा।
ध्यानतलब हो कि अभी तक के क़ानून के तहत कार्य दिवस दैनिक 8 घंटे और साप्ताहिक 48 घंटे रहे हैं। इससे अधिक काम पर दुगना ओवर टाइम भुगतान का प्रावधान है। यह भी प्रावधान रहा है कि 4 घंटे कार्य के बाद आधे घंटे का भोजन अवकाश मिलेगा।
नए आदेश के बाद यह सबकुछ बदल जाएगा।

इस सम्बन्ध में 17 अप्रैल को गुजरात चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री जीसीसीआई की रीजनल काउंसिल द्वारा केन्द्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार को भेजा गया पत्र गौरतलब है।

विकट संकट झेलते प्रवासी मज़दूर रहेंगे लॉकडाउन
गृह मंत्रालय की ओर से मजदूरों के लिए जारी ‘स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग सिस्टम फॉर मूवमेंट ऑफ स्ट्रेंडड लेबर’ में कारोबारी गतिविधियों और संचालन में छूट के साथ कहा गया है कि रिलीफ कैंपों में फंसे मज़दूर जहाँ हैं, उन्हें वहीं काम मिल सकता है। वे उस राज्य में मूवमेंट कर सकते हैं, जहाँ बसे हैं। लेकिन यदि वे दूसरे राज्य के रहने वाले हैं तो उन्हें अपने घर जाने की अभी अनुमति नहीं दी जाएगी।
- इसे भी पढ़ें– लॉकडाउन के बीच धार्मिक आयोजन, तीर्थ यात्रियों की रवानगी
- इसे भी पढ़ें– लॉकडाउन : बांद्रा में हजारों प्रवासी मज़दूरों का दर्द उभरा
- इसे भी पढ़ें– शीर्ष अदालत ने संकटग्रस्त प्रवासी मज़दूरों को नहीं दी राहत
- इसे भी पढ़ें– लॉकडाउन : मज़दूरों को मिले राहत, मासा ने प्रधानमंत्री को भेजा ज्ञापन
- इसे भी पढ़ें– लॉकडाउन : श्रमिकों के वेतन के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

साफ़ है कि देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे बेरोजगार, बेघरबार हुए मज़दूरों को अभी कोई राहत नहीं दी गई है। उन्हें मालिकों की मर्जी से कहीं भी काम कराने की तो छूट होगी, लेकिन अपने घर जाने की इजाजत देने या रोजगार की गारंटी से सरकार ने अपने को दूर रखकर प्रवासी मज़दूरों को उसी नरक में पड़े रहने को अभिशप्त कर दिया है।
यहाँ गौरतलब है कि देश को कोरोना से संक्रमित करने के ज़िम्मेदार विदेशी भारतियों की वापसी, तीर्थ यात्रियों, कोचिंग छात्रों व अपने चहेतों को भेजने का बंदोबस्त तो सरकारें कर रही हैं, यहाँ तक कि मालिकों की आवश्यकता के अनुसार मज़दूरों को लाने-लेजाने के लिए विशेष परिवहन व्यवस्था का निर्देश भी दिया है, लेकिन संकटग्रस्त प्रवासी मज़दूरों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।
मोदी सरकार की पक्षधरता साफ़ है।
काम के किए बसों की व्यवस्था
20 अप्रैल से फैक्ट्रियों में कामकाज भी फिर से शुरू होने लगा। इसी क्रम में गृह मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि मज़दूर बसों के जरिए काम पर जा सकते हैं। कंपनियों में मज़दूरों की आवाजाही सुचारू के लिए स्थानीय प्रशासन को विशेष बसों की व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके तहत वे राज्य की सीमा में एक जगह से दूसरी जगह जा सकते हैं। रस्ते में इनके खाने-पीने की व्यवस्था प्रशासन करेगा।
हालाँकि तमाम छोटी व वेंडर कम्पनियाँ भोजन तो दूर, खाने का भी प्रबंधन करने से हाथ खींच चुकी हैं। तमाम कवायदों के बावजूद सामूहिक उत्पादन की व्यवस्था में आवश्यक भौतिक दूरी बनाने की बात बेईमानी होगी।

काम नहीं तो वेतन नहीं
मोदी सरकार ने लॉकडाउन में ‘सबको वेतन देने’ से पलती मारते हुए निर्देश दे दिया है कि, प्रबंधन द्वारा बुलाने पर कार्य पर उपस्थित ना हो पाने वाले मज़दूर को वेतन देने के लिए प्रबंधन की बाध्यता नहीं होगी। लेकिन यह कहीं स्पष्ट नहीं है कि जो मज़दूर दूर या दूसरे राज्यों में फंसे हैं, जिनके आने के लिए कोई स्वीकृति नहीं है, उनके वेतन का क्या होगा?
ज्ञात हो कि देश के कई औद्योगिक केंद्र दो राज्यों की सीमा में हैं। जैसे गुडगाँव, धारूहेड़ा, बवाल हरियाणा-राजस्थान दो राज्यों से जुडी है। इसी तरह सिडकुल रुद्रपुर व सितारगंज उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश की सीमा पर है। मज़दूरों का दो राज्यों के बीच रोज का आवागमन है। ऐसे में तमाम मज़दूर फंसे हुए हैं। उनके काम पर पहुँचाने की सम्भावना नहीं है, तो वेतन का क्या होगा?
ज़ाहिर सी बात है कि इन सबकी (कोरोना संक्रमण की संभावना से लेकर वेतन कटौती तक की) मार मज़दूरों पर ही पड़नी है!
- इसे भी पढ़ें– लॉकडाउन : पूर्व सीएम के बेटे की हाईटेक शादी से उठे सवाल
- इसे भी पढ़ें– धरना स्थल पर लॉकडाउन हैं माइक्रोमैक्स के संघर्षरत मज़दूर
- इसे भी पढ़ें– कोरोना महामारी के बीच छँटनी-बर्खास्तगी झेलते मज़दूरों के गहराते संकट
- इसे भी पढ़ें– लॉकडाउन से हाहाकार : मज़दूर सडकों पर
गृह मंत्रालय के आदेश की कुछ मुख्य बातें-
- 20 अप्रैल से कंटेनमेंट जोन के बाहर कई तरह की छूट दी जा रही है। ऐसे में मज़दूर, मनरेगा, खेती, कंस्ट्रक्शन, इंडस्ट्रियल और मैन्युफेक्चरिंग के काम कर सकते हैं।
- यह छूट भी उन्हीं इलाकों के लिए है, जिन्हें हॉटस्पॉट घोषित नहीं किया गया है।
- काम पर जाने के उपयुक्त मज़दूरों को बाहर जाने की अनुमति होगी। लेकिन उनकी स्क्रीनिंग की जाएगी। यानी बुखार वगैरह जांची जाएगी।
- जो लोग ठीक होंगे उन्हें काम पर जाने की अनुमति होगी, इन्हें बस से ले जाया जाएगा।
- बस में जाते समय सोशल डिस्टेंसिंग (भौतिक दूरी) का पालन करना होगा। यानी दो लोगों के बीच करीब 3 मीटर की दूरी होगी, चेहरे पर मास्क होगा।
- मजदूरों को ले जाने वाली वाहनों को स्वास्थ्य मंत्रालय के नियमों के अनुसार सैनिटाइज किया जाएगा।
- काम पर जाने की यात्रा के दौरान स्थानीय प्रशासन खाने-पीने की व्यवस्था करेगा।
- काम से घर लौटने से पहले मज़दूरों का लोकल अथॉरिटी में रजिस्ट्रेशन किया जाएगा। उनकी दक्षता यानी स्किल की जांच होगी, जिससे कि उनके हिसाब से काम ढूढ़ा जा सके।
- जो मज़दूर जिस राज्य में हैं, वहीं रहेंगे, वे राज्य से बाहर नहीं जा सकते हैं।