पंतनगर: करोलिया लाइटिंग में मांग पत्र लंबित; यूनियन अध्यक्ष व महामंत्री की हुई अवैध गेटबंदी

डेढ़ साल पुराने उस मुद्दे पर हुई कार्यवाही, जिसका कार्यबहाली के साथ समझौता हो चुका था। दोनों नेता संरक्षित कर्मकार हैं, औद्योगिक विवाद जारी है, लेकिन प्रबंधन ने अनुमति भी नहीं ली।
रुद्रपुर (उत्तराखंड)। करोलिया लाइटिंग प्राइवेट लिमिटेड, सिडकुल, पंतनगर में एक बार फिर मज़दूरों का दमन बढ़ गया। करोलिया लाइटिंग इंप्लाइज यूनियन के मांग पत्र पर प्रबंधन की हठधर्मिता कायम है और दूसरी तरफ प्रबंधन ने बिना किसी विवाद और आरोप के यूनियन के अध्यक्ष हरेन्द्र सिंह और महामंत्री अशोक सिंह मेहता का गेट बंद कर दिया। इस माह का वेतन भी इनको अबतक नहीं मिला है।
दरअसल, 13 मार्च 2023 को यूनियन ने नए समझौते के लिए अपना मांग पत्र दिया था। इसका विवाद विगत 10 महीने से लगातार जारी है और श्रम विभाग में त्रिपक्षीय वार्ता गतिमान है। ऐसे में प्रबंधन ने यूनियन व मज़दूरों पर दबाव बढ़ने के लिए एक बार फिर वही पुराना हथकंडा अपनाया।
आज 8 जनवरी को जब अन्य मज़दूरों के साथ दोनों प्रतिनिधि भी कार्य पर पहुंचे तो उनका गेट बंद था। प्रबंधन ने उनको कार्य पर न लेने का कोई कारण नहीं बताया। एक एचआर प्रबंधक ने बात करने पर यूनियन नेता से स्पष्ट कहा कि यदि समझौता हो जाता तो यह कार्रवाई नहीं होती।
मज़दूरों को धमकाने के लिए पुलिस सक्रिय
इसी के साथ पुलिस भी सक्रिय हो गई। सिडकुल पुलिस चौकी से यूनियन अध्यक्ष के पास फोन आया और बताया गया की उनकी घरेलू जांच कर उन्हें बर्खास्त किया गया है और वह गेट पर कोई हंगामा न करें। हालांकि दोनों श्रमिक नेता उस वक्त फैक्ट्री के आस-पास भी नहीं थे और प्लांट सुचारु था। स्पष्ट है कि प्रबंधन की योजना पूरी सुनियोजित है और हमेशा की तरह मज़दूर दमन के लिए पुलिस तैयार है।
दूसरी तरफ सहायक श्रम आयुक्त उधम सिंह नगर के माध्यम से यूनियन को यह जानकारी मिली कि डेढ़ साल पहले के विवाद के समय कथित रूप से जो घरेलू जांच चली थी, उसके आधार पर अब इन दोनों नेताओं को बर्खास्त किया गया है। हालांकि एएलसी ने भी इस कार्यवाही को गलत बताया।
सन 2022 में हुआ था जुझारू आंदोलन और मिली थी जीत
ज्ञात हो कि डेढ़ साल पहले सन 2022 में मांग पत्र और 11 श्रमिकों की अवैध बर्खास्तगी के खिलाफ चले आंदोलन के दौरान यूनियन के यह दोनों शीर्ष पदाधिकारी निलंबित हुए थे।
बाद में एक जुझारू आंदोलन के बाद एसडीएम, एएलसी के समक्ष मौखिक और फिर डीएलसी महोदय की समक्ष हुए लिखित समझौते के तहत 10 श्रमिकों की कार्यबहाली के साथ अध्यक्ष व मंत्री का निलंबन समाप्त करके कार्यबहाली हुई थी और घरेलू जांच की औपचारिकताएं भी पूरी हो गई थीं।
अब डेढ़ साल बाद माँगपत्र के विवाद के दौरान प्रबंधन ने समाप्त मुद्दा फिर से उठा रहा है और गेटबंदी करके मजदूरों को उकसाने और दबाव बनाने का अस्त्र आजमाया है। हालांकि उस वक़्त इनपर यूनियन द्वारा आंदोलन का पत्र देने और मज़दूरों को भड़काने का आरोप था। जिसका समझौता हो चुका है।
गेटबंदी/बर्खास्तगी क्यों है गैरक़ानूनी?
यह गौरतलब है कि यह दोनों श्रमिक प्रतिनिधि संरक्षित कर्मकार है और श्रम कानूनी प्रावधानों के तहत सक्षम श्रम अधिकारी से अनुमति लेने के बाद ही इन पर कोई कार्रवाई हो सकती थी। लेकिन प्रबंधन ने ऐसा कुछ भी नहीं किया और सीधे जब वह कार्य पर पहुंचे तो उनका गेट बंद था।
इसी के साथ डेढ़ साल पहले जिस मामले का निस्तारण हो चुका है और तब से यह श्रमिक कंपनी के भीतर कार्य कर रहे हैं फिर अचानक या मुद्दा उठाया जाना बेहद शर्मनाक है। जबकि कंपनी के भीतर किसी भी प्रकार का कोई भी आंदोलनात्मक कार्यवाही नहीं चल रही है।
यही नहीं मांग पत्र पर विवाद कायम है और श्रम न्यायालय में भी पूर्व समझौते के उल्लंघन का विवाद जारी है। ऐसे में भी प्रबंधन को नियमतः श्रम अधिकारियों और श्रम न्यायालय से अनुमति/अनुमोदन लेना जरूरी था, जिसे भी प्रबंधन ने दरकिनार कर दिया।
मज़दूरों में रोष: क्या करेगा श्रम विभाग?
प्रबंधन की इस मनमानी कार्रवाई से श्रमिकों में बेहद रोष है। हालांकि यूनियन अभी श्रम विभाग की कार्रवाइयों को देख रही है। यूनियन का कहना है कि श्रम अधिकारी नियम कानून का पालन सुनिश्चित करते हुए दोनों नेताओं की कार्यबहाली करते हैं अथवा अन्य तमाम मुद्दों की तरह इस मामले को भी लटकाने की दिशा में जाते हैं।
जाहिर सी बात है कि यदि मजदूरों को न्याय नहीं मिलेगा तो उनके पास अंतिम अस्त्र आंदोलन का ही बनता है।