साल 2021 : जनता त्रस्त, पूँजीपति मस्त, सरकारें पूँजीपतियों की हितसेवा में और ज्यादा व्यस्त

मोदी सरकार के दौरान साल 2021 बेहद अहम रहा; मेहनतकश पर जारी हमलों और दमन के बीच संघर्ष ने नई अंगड़ाई ली, पराजय के बीच जीत ने नए साल के लिए जरूरी सबक दिए।
मुनाफे की हितसेवा बेलगाम; गहन अंधकार में उम्मीद की एक रौशनी जगमगाई
मोदी सरकार की तानाशाही, बेलगाम जनविरोधी नीतियों को थोपने, कोरोना, सरकारी निर्लज्जता, मेहनतकश जनता की असीम पीड़ा, कष्ट, हाहाकार मचाती महँगाई, विकट बेरोजगारी तथा प्रतिरोध, विशेष रूप से ऐतिहासिक किसान आंदोलन की तीव्रता, जीत और उम्मीद की एक किरण के बीच एक और साल गुजर गया।
साल की शुरुआत में मज़दूर विरोधी चार श्रम संहिताओं, जनविरोधी कृषि कानूनों, निजीकरण, छँटनी, बंदी के खिलाफ संघर्ष बढ़ रहा था, विशेष रूप से किसान आंदोलन तेजी पकड़ रहा था।
साल का अंत होते देश के किसानों ने ऐतिहासिक जीत हासिल की। वहीं दिसंबर में मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने बंगलुरु में श्रम संहिताओं व निजीकरण के खिलाफ दो दिनी कार्यशाला, रैली व कन्वेन्शन करके निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष का आह्वान किया।
मोदी सरकार के शासन में असल में साल 2021 बेहद अहम साल रहा; मेहनतकश पर जारी हमलों और दमन के बीच संघर्ष ने नई अंगड़ाई ली, जो नए साल के लिए जरूरी सबक है।
जनविरोधी नीतियाँ, देश बेचो अभियान
बीते साल भी मोदी सरकार आपदा को मुनाफाखोरों के अवसर में बदलने में जुटी रही और मज़दूर व आमजन विरोधी नीतियाँ थोपने को रफ्तार देती रही।
जहाँ मालिकों के हित में 44 श्रम क़ानूनों को खत्म करके 4 श्रम संहिताओं में बदलने, देश की सरकारी-सार्वजनिक उपक्रमों-संपत्तियों को कौड़ियों के मोल पूँजीपति यारों को सौंपने में संलग्न रही। वहीं आपदा को मुनाफे के अवसर में बदलने का खेल तेजी से जारी रहा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 2021-22 के लिए प्रस्तुत केन्द्रीय बजट गरीबों, मज़दूरों, नौकरी पेशा लोगों, मेहनतकश किसानों, माध्यम वर्ग व कोरोना पाबंदियों से बेरोजगार हुए लोगों के साथ एकबार फिर धोखा बना। डिजिटल माध्यम से प्रस्तुत बजट से मालिकों की बल्ले-बल्ले हुई, तो मेहनतकश फिर ठन-ठन गोपाल रहा।
सिलसिला आगे बढ़ाता रहा और बैंक, बीमा, बिजली, रक्षा, कोल, खनन, पेट्रोलियम से जहाज तक बेचने के क्रम को और बेलगाम करते हुए मोदी सरकार ने निजीकरण का नाम बदलकर 6 लाख करोड़ रुपये की राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) का एलान किया।
गौरतलब है कि इंडियन स्पेस एसोसिएशन की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार को ‘निर्णायक सरकार’ बताते हुए कहा था कि तमाम सार्वजनिक कंपनियों के निजीकरण करने में सरकार रही। उनकी सरकार ने राष्ट्रीय हित तथा विभिन्न हितधारकों की आवश्यकता को ध्यान में रखा है। इसे उन्होंने ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाना बताया।
छंटनी-बंदी ने पकड़ी रफ्तार
इस साल भी सरकारी कंपनियों से लेकर निजी कंपनियों तक में कथित वीआरएस के बहाने छंटनी की तलवार तेजी से चलती रही। निजी क्षेत्र की होंडा, टाटा मोटर्स, भारत फोर्ज, थर्मेक्स, टेक महिंद्रा, एचपी आदि कंपनियों में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) की घोषणा हुई।
अमेरिकी ऑटोमोबाइल कंपनी फोर्ड ने साणंद (गुजरात) और चेन्नई (तमिलनाडु) प्लांट बंद किया, तो कंप्यूटर निर्माता एचपी ने पंतनगर (उत्तराखंड) प्लांट बंद करके हजारों मज़दूरों को बेरोजगार बना दिया।
महँगाई और बेलगाम, अंबानी-अडानी मालामाल
बीते साल भी जनता त्रस्त, पूँजीपति मस्त और पीएम मोदी सहित सभी रंग की राज्य सरकारें पूँजीपतियों की हितसेवा में पहले से ज्यादा व्यस्त रहीं।
देश में पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, खाद्य पदार्थों सहित जीवन उपयोगी समस्त चीजों के दाम बेलगाम रहे। इसी दौरान अडानी की पूँजी में 3.07 और अंबानी की पूँजी में 3.03 अरब डालर कि बम्पर बृद्धि हुई।

अडानी ग्रुप एयर पोर्ट से लेकर राज मार्ग तक के ठेका हासिल करता गया और गौतम अडानी पूँजी कुलाँचें भरती रहीं। 2021 में गौतम अडानी के संपत्ति में 41.5 बिलियन डॉलर का इजाफा हुआ, जबकि मुकेश अंबानी की संपत्ति में 13 बिलियन डॉलर का इजाफा हुआ है।
मुकेश अंबानी 89.7 अरब डॉलर संमपत्ति के साथ दुनिया के रईसों में 12 वें पायदान पर है जबकि गौतम अडानी 73.3 अरब डॉलर के साथ 14वें स्थान पर। इसी के साथ अजीम प्रेमजी, राधाकिशन दमानी, शिव नादर, सावित्री जिंदल, कुमार मंगलन बिरला, दिलिप सांघवी, के पी सिंह, फाल्गुनी नायर अजिसोन की संपत्तियाँ भी तेजी से उछाल लेती रहीं।
मुकेश अम्बानी ने लन्दन में 592 करोड़ रुपए में 49 बेडरूम वाले 300 एकड़ जमीन पर बना ऐशगाह खरीदा। इससे पूर्व कोविशील्ड का मालिक टीका के नाम पर सरकारी सब्सिडी व रियायतें डकारकर लंदन व्यवस्थित हो गया।

इसी बीच देश की आम जनता की आमदनी लगातार गिरती गई, ऊपर से महँगाई की बम्पर मार ने कमर पूरी तरह से तोड़ दी। पिछले एक साल से कोरोना से जंग लड़ रहे आम आदमी के लिए जीना और दूभर हो गया।
भारत 116 देशों के वैश्विक भुखमरी सूचकांक (जीएचआई) 2021 में 94वें स्थान से फिसलकर 101वें स्थान पर आ गया। इसमें वह अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से पीछे है।
महामारी से ज्यादा इलाज की दुर्व्यवस्था से मौतें
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के साथ देश के स्वास्थ्य महकमे का ढाँचा पूरी तरीके से ढह गया। कोई कोरोना से ग्रसित होकर भटकता रहा दम तोड़ता रहा, तो कोविड ग्रसित चिह्नित न होने वाले मरीजों के लिए अस्पताल के दरवाजे बंद रहे।
कोरोना महामारी की दहशत से ज्यादा अस्पतालों व इलाज की दुर्व्यवस्था, ऑक्सीजन, बेड, वेंटिलेटर की कमी से खौफ का जबरदस्त माहौल रहा। पूरे देश में ऑक्सीजन व वेंटिलेटर्स को लेकर त्राहि-त्राहि मची रही। एक साल पहले भी यही किल्लत थी।
इस बीच पीएम केयर फंड बना, देश में वेंटिलेटर्स बनाने की कवायद हुई, खूब पैसा खर्च हुआ, लेकिन हालत फिर भी बदतर रहने के बीच वेंटिलेटर्स खरीद घोटाला उजागर हुआ।
महामारी, पाबंदियों की रफ्तार के बीच उत्तरप्रदेश में पंचायत चुनाव ने कितने शिक्षकों-कर्मचारियों की जानें लीं। कोई इलाज के अभाव में मरा तो कोई अव्यवस्था से अकाल मौत का शिकार बना।
हालात ये थे कि मौत पर भी क्रिया-करम के लिए सहूलियतें गायब हो गईं। नदी में उतराती लाशें, गंगा तट पर बिखरी लाशें भयवाहता की गवाह रहीं।
कोविड के हत्यारे दौर ने कॉमरेड मुख़्तार पाशा, कॉमरेड शिवराम, कॉमरेड नगेन्द्र, कॉमरेड शर्मिष्ठा, कॉमरेड कंचन जैसे मज़दूर आंदोलन के कर्मठ नेताओं, लाल बहादुर वर्मा जैसे इतिहासकार-सांस्कृतिक कर्मियों, राया देबनाथ जैसी युवा कार्यकर्ताओं को छीना। वहीं भीमा कोरेगांव केस में झूठे आरोपों में जेल में बंद एक्टिविस्ट 84 साल के फादर स्टेन स्वामी निरंकुश सत्ता के शिकार बने।
पाबंदियों के बीच जनता से वसूली बढ़ी, दमन हुआ तेज
ट्रेनों पर पाबंदियाँ और मनमानियाँ, चालानों के बहाने जनता की पॉकेट से सेंधमारी बढ़ती रही। दमनकारी क़ानून और मजबूत होते रहे। आयुध कारखानों में हड़ताल पर पाबंदी के लिए एस्मा जैसा काला क़ानून थोपा गया। मानवाधिकार उल्लंघन के मामले लगातार बढ़ते रहे और उत्तरप्रदेश लगातार तीसरे साल भी शीर्ष पर रहा।
केंद्र सरकार ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) कानून में संशोधन कर इसे पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में अंतरराष्ट्रीय सीमा से मौजूदा 15 किलोमीटर की जगह 50 किलोमीटर के बड़े क्षेत्र में तलाशी लेने, जब्ती करने और गिरफ्तार करने की शक्ति दे दी।
सरकार की मनमानी – घपले-घोटाले शीर्ष पर
वेंटिलेटर्स खरीद घोटाला सामने आने और पीएम केयर्स फंड की मनमानी के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी. लोकुर ने पीएम केयर्स फंड पर आरटीआई एक्ट लागू नहीं होने पर कहा कि नागरिकों को पता ही नहीं है कि इसका पैसा कहां जा रहा है।
अयोध्या के महंत ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्यों, भाजपा विधायक, स्थानीय महापौर के भतीजे और सरकारी अधिकारी के खिलाफ सरकारी जमीन खरीद घोटाला सामने आया।
इसी साल भारत सहित दुनिया भर के नेताओं और अरबपतियों की संपत्तियों और गुप्त सौदे का पर्दाफ़ाश हुआ है। इस लीक को पंडोरा पेपर्स का नाम दिया गया है। 35 से ज़्यादा मौजूदा और पूर्व नेताओं और 300 से ज़्यादा सरकारी अधिकारियों के नाम इस लीक में सामने आए हैं।
साल 2021 में इतिहास रच गया जुझारू किसान आंदोलन
जनविरोधी कृषि क़ानूनों के खिलाफ़ चले आंदोलन के तहत साल के पहले दिन किसान नेताओं ने कहा कहा था, ‘‘सरकार जब तक हमारी मांगें नहीं मान लेती, तब तक हमारे लिए कोई नया साल नहीं है।” और यही वह जज्बा था जिसने इस साल के खत्म होने के पहले तानाशाह मोदी सरकार को झुकाने और ऐतिहासिक जीत हासिल करने में देश के किसान कामयाब रहे।
इस पूरे दौर में भाजपा-आरएसएस और पूरे सरकारी तंत्र व सरकार पोषित मीडिया का षड्यन्त्र, घटिया बयानों व दुष्प्रचारों के बावजूद नए-नए तरीके से किसान आंदोलन फैलता गया, मज़दूर-मेहनतकशों सहित हर संवेदनशील नागरिकों, महिलाओं व छात्र-नौजवानों की व्यापक भागीदारी के साथ यह देशव्यापी जन आंदोलन बन गया।
किसान आंदोलन ने देश के हर एक पीड़ित नागरिक के भीतर हौसला पैदा किया और गलत व अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी, जो बीते साल को महत्वपूर्ण व यादगार बना गया।
दमन के बीच मज़दूर आंदोलन का सिलसिला जारी रहा
साल 2021 जहाँ कोरोना की दूसरी लहर के साथ एकबार फिर मज़दूर-मेहनतकश आबादी के लिए कहर बरपा हुआ, वहीं मज़दूरों के शानदार आंदोलनों का गवाह भी रहा।
निजीकरण के खिलाफ बैंक, बीमा, आयुध कारखानों, कोल खदानों, डाक, बीपीसीएल से लेकर बिजली, रोडवेज, रेल महकमें तक में हड़तालों का सिलसिला पूरे साल जारी रहा। हालांकि ये आंदोलन एक साझा आंदोलन की जगह अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग चलती रहीं।
उधर छँटनी, बंदी, श्रमिक उत्पीड़न, दमन और माँगपत्रों को लेकर भगवती माइक्रोमैक्स, वोल्टास, एलजीबी, इंटरार्क, अंबुजा, एचपी से लेकर डाइडो, अशोका, सत्यम आदि कंपनियों में सतत आंदोलन चलते रहे।
आंगनवाड़ी, आशा, भोजन माता, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन आदि स्कीम वर्कर्स के आंदोलन पूरे साल चले और कई जगह/राज्यों में कुछ सफलताएं हासिल हुईं। तो देश के विभिन्न हिस्सों में सफाई कर्मी भी आंदोलित रहे।
कर्मचारी विरोधी नई पेंशन व्यवस्था को समाप्त कर पुरानी पेंशन बहाली के लिए देश भर में आंदोलन जारी रहे। वहीं दमन के बीच बेरोजगारी के खिलाफ आंदोलन पूरे साल चला और रोजगार देने की माँग, शिक्षा का निजीकरण व भगवाकरण, अवैज्ञानिकता के बढ़ते प्रचालन के बीच छुटपुट आवाज़ें भी मुखर होती रहीं।
लगातार संघर्षों के बीच कुछ जीतें भी मिलीं
लगातार जारी संघर्षों के बीच पंतनगर स्थित राकेट इंडिया, महिंद्रा सीआईई, डेना इंडिया, महिंद्रा एण्ड महिंद्रा, वोल्टास, हेंकेल एडहेसिवस, संसेरा इंजीनियरिंग, ऑटो लाइन, बीसीएच, एंडोरेन्स आदि में; टाटा मोटर्स के गुजरात स्थित साणंद प्लांट में, मारुति सुजुकी मज़दूर संघ के बैनर तले मारुति सुजुकी गुरुग्राम व मानेसर प्लांटों और सुजुकी पॉवर ट्रेन में सामूहिक माँगपत्र पर, परफेटी पंतनगर व परफेटी मानेसर, हीरो मोटोकॉर्प गुड़गाँव आदि तमाम कंपनियों में वेतन समझौते हुए।
डायडो इंडिया, नीमराना (अलवर) के मज़दूरों ने यूनियन का रजिस्ट्रेशन हासिल किया; चेन्नई स्थित मदरसन कंपनी में 48 मज़दूरों की बर्खास्तगी अवैध घोषित हुई। भगवती प्रॉडक्ट्स माइक्रोमैक्स में लगातार संघर्षों के बीच कुछ आंशिक जीतें मिलीं और कार्यबहाली का रास्ता और साफ हुआ।
अन्यायपूर्ण सजा झेलते नरुती सुजुकी के दो मज़दूर साथियों का दुखद निधन हुआ तो मारुति के एक साथी को 9 साल बाद जमानत मिली।
बीते साल गूगल से जुड़े कर्मचारियों ने सैन फ्रांसिस्को में अल्फाबेट वर्कर्स यूनियन बनाकर एक बड़ी कामयाबी हासिल की।
नफरत का व्यापार तेज रहा
इस साल भी आरएसएस-भाजपा की फासीवादी ताकतों ने जातिय, धर्मिक व राष्ट्रवाद के नाम पर उन्माद, सांप्रदायिक खेल तेजी से आगे बढ़ाया। जिसके चलते राष्ट्रवाद के नाम पर देश के भगवाकरण और विकास के नाम पर कॉरपोरेटीकरण (पूँजी की लूट को खुली छूट) की राह आसान बनी रही।
हालांकि किसान आंदोलन ने जाति-मजहब के बहाने बंटवारे की दीवार को एक हद तक तोड़ने का काम किया और एक बार पुनः साबित किया कि बेलगाम लूट के लिए ही सत्ताधारी आपस में एकदूसरे के खूनी दुश्मन बनाते हैं और हक़ का संघर्षों ही इसे तोड़कर मजबूत एकता में बदल सकती है।
जुझारू, निरंतर और निर्णायक संघर्ष का साल बनाना होगा!
नए साल में प्रवेश के साथ एकबार फिर कोरोना का कहर बरपा होने लगा और सरकारी तंत्र की निरंकुशता व पाबंदियों की आशंका के बीच चौतरफा ख़ौफ का मंजर कायम है। मज़दूर विरोधी श्रम संहिताएं लागू करने, निजीकरण और बेलगाम बनाने की मोदी सरकार की तैयारी पूरी है।
ऐसे में मज़दूर-मेहनतकश जनता के सामने एक जुझारू, निरन्तरता में आगे बढ़ाते हुए निर्णायक संघर्ष के लिए कमर कसना ही पड़ेगा। किसान आंदोलन ने एक सबक दिया है, उसे मज़दूरों को भी आत्मसात करना होगा।
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