मज़दूरी हड़पने वाले मालिकों को नहीं होगी जेल; योगी सरकार का एक और मज़दूर विरोधी फरमान

मोदी से भी तेज निकलने को व्याकुल यूपी की योगी सरकार ने मालिकों के हित में एक और क़ानून बदल दिया। अब मज़दूरी न देने वाले नियोक्ता पर जेल की जगह केवल जुर्माना लगेगा।

उत्तर प्रदेश औद्योगिक शांति (मज़दूरी का यथासंभव संदाय) अधिनियम 1978 में संशोधन

लो अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने हिन्दुत्व का कथित झण्डा लहराकर और समाज को सांप्रदायिकता के खेल में उलझकर मालिकों के हित में एक और क़ानून पारित कर दिया है।

उत्तर प्रदेश औद्योगिक शांति (मज़दूरी का यथासंभव संदाय) अधिनियम 1978 में संशोधन को कैबिनेट बाईसर्कुलेशन के जरिए दोबारा से हरी झंडी दे दी गई है। अब मज़दूरों की मज़दूरी हड़पने वाले मालिकों को जेल नहीं होगी। उस पर जुर्माना बढ़ा दिया गया है।

पारित होगा नया अध्यादेश

दरअसल इसके लिए अध्यादेश को 13 अक्तूबर को भी कैबिनेट में स्वीकृति दी गई थी। 18 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा के एक दिवसीय सत्र में उत्तर प्रदेश औद्योगिक शांति (मज़दूरी का यथासंभव संदाय संशोधन) अध्यादेश 2021 पारित करने की तैयारी थी। इस एजेंडे को कार्यसूची में शामिल भी कर लिया गया था।

लेकिन विधानसभा में पेश न होने के कारण यह कानून नहीं बन सका है। ऐसे में पारित अध्यादेश का पिछला प्रस्ताव कालातीत हो रहा था। ऐसे में इसे दोबारा से अनुमोदित कराया गया है। अब इस अध्यादेश को आगामी विधानसभा सत्र में पेश कर पारित कराने की पूरी तैयारी है।

अभी मज़दूरी न देने पर 3 साल तक की सजा का प्रावधान

इस अधिनियम के तहत यदि किसी नियोक्ता/मालिक पर किसी श्रमिक की एक लाख रुपये या इससे ज्यादा मज़दूरी बकाया है और नियोक्ता उसका भुगतान नहीं कर रहा है तो जेल के साथ जुर्माना लगाया जा सकता था। इसके तहत नियोक्ता को तीन माह से तीन वर्ष तक की सजा एवं पचास हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान था।

मज़दूरी हड़पने पर भी मालिकों पर आपराधिक कार्रवाई नहीं होगी

मोदी से भी तेज मालिकों का चाकर साबित करने को व्याकुल उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मालिकों के हित में इसे कैबिनेट में दोबारा पास कर दिया।

नए बदलाव के तहत अब नियोक्ता/मालिक को जेल नहीं होगी। जेल का प्रावधान खत्म कर केवल जुर्माना ही लगाया जाएगा जो अधिकतम एक लाख रुपये तक हो सकता है।

मज़दूर विरोधी क़ानूनों की बमबारी जारी

केंद्र से लेकर राज्य तक की सरकारों, विशेष रूप से भाजपा सरकारों द्वारा देशी-विदेशी मुनाफाखोर कंपनियों के हित में मज़दूर अधिकारों पर लगातार बमबारी जारी है। तमाम विरोधों को किनारे लगाकर मोदी सरकार ने लंबे संघर्षों से हासिल 44 श्रम क़ानूनों को खत्म करके 4 श्रम संहिताएं पारित कर चुकी हैं। केंद्र सहित कई राज्य सरकारों ने इसकी नियमावलियाँ भी पारित कर ली हैं।

‘हायर एण्ड फायर’ यानि जब चाहो रखो, जब चाहो निकाल दो की तर्ज पर बनी इन संहिताओं को अब लागू करने की तैयारी मुकम्मल है।

इन संहिताओं में जहाँ मज़दूरों के जायज आंदोलनों पर जेल और भारी जुर्माने के प्रावधान थोपे गए हैं, वहीं मालिकों के किसी भी आपराधिक कृत्यों पर आपराधिक मामले और जेल के प्रावधान खत्म करके महज सिविल वाद दायर करने और जुर्माने की राशि देकर सारे कुकर्म करने की छूट दी गई है। योगी सरकार का बदलाव भी उसी तर्ज पर है।

उत्तर प्रदेश के कई क़ानून केंद्र से अलग, इसलिए अलग से बदलाव

उत्तर प्रदेश के साथ उत्तराखंड में प्रभावी उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 सहित कई क़ानून ऐसे हैं जो केन्द्रीय क़ानूनों से अलग हैं। इन्हीं में से उत्तर प्रदेश औद्योगिक शांति (मज़दूरी का यथासंभव संदाय) अधिनियम 1978 भी है।

इसलिए केंद्र के तर्ज पर अलग से बदलाव को दोनों राज्य सरकारें आतुर हैं। उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने केंद्र के तर्ज पर कर्मकारों के प्रवर्ग में फिक्स्ड टर्म यानी नियत अवधि अनुबंध जोड़ दिया। यह स्थाई नौकरी पर बड़ा हमला है। इसी तरह आंदोलन पर अवरोध बढ़ाने व ट्रेड यूनियन क़ानून आदि में भी बदलाव हो चुके हैं।

यूपी-उत्तराखंड के श्रम क़ानून पहले से ही मज़दूर विरोधी

यहाँ यह गौरतलब है कि यूपी के कई श्रम क़ानून पहले से ही केन्द्रीय क़ानूनों से खतरनाक व मज़दूर विरोधी रहे हैं। जैसे यूपी-उत्तराखंड में 300 से कम श्रमशक्ति वाले प्रतिष्ठानों को छँटनी, बंदी के लिए अनुमति की आवश्यकता पूर्व से नहीं रही है, जो केन्द्रीय स्तर पर पहले 100 थी, जिसे नई संहिताओं में 300 किया गया है।

इसी तरह इन दोनों राज्यों में यूनियन पंजीकृत होने के बाद दो साल तक पंजीकृत यूनियन को माँगपत्र न देने का मज़दूर विरोधी प्रावधान है। ले-ऑफ का क़ानून मालिकों के पक्ष में है, जिससे वे मनमर्जी ले-ऑफ ले सकते हैं और बाद में बंदी/छँटनी पर 45 दिन के बाद की दी गई ले-ऑफ राशि से मज़दूर से ही वसूली का खतरनाक प्रावधान विद्यमान है।

मज़दूरों को किसानों के जुझारू आंदोलन से सीख लेने की जरूरत

कुलमिलकर मज़दूरों पर हमले बेहद तेज हो गए हैं। और सबकुछ ‘हिन्दुत्व’ की फिरकापरस्ती में मेहनतकश आवाम को झोंककर, मानसिक रूप से भक्त बनाकर हो रहा है।

ऐसे में मज़दूरों को किसानों के जुझारू आंदोलन से सीख लेने की जरूरत है।

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