बैंक, जनरल इंश्योरेंस के बाद सवा लाख एलआईसी कर्मियों की हड़ताल
मोदी सरकार के देश बेचो अभियान के खिलाफ हड़तालों का दौर
निजीकरण के खिलाफ बैंक कर्मचारियों के बाद 18 मार्च को भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) करीब सवा लाख कर्मचारी भी एक दिन की हड़ताल पर हड़ताल पर रहे रहे। 15 मार्च से ही भारतीय वित्त व्यवस्था के कर्मचारी हड़ताल पर हैं। 15 -16 मार्च को जहाँ बैंक कर्मियों की हड़ताल रही वही 17 जनरल इंश्योरेंस के कर्मचीरियों की हड़ताल रही।
कर्मचारियों ने कहा यह हड़ताल भारत सरकार द्वारा एलआईसी में आईपीओ लाने, बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा में वृद्धि करने तथा वेत्तन पुनरीक्षण में अत्यधिक देरी होने के विरुद्ध की गई। इस दौरान देशभर के एलआईसी शाखाएं बंद रही।
18 मार्च को एलआईसी के विभिन्न संगठन द्वारा बनाए गए संयुक्त मोर्चा द्वारा आहूत इस हड़तालके समर्थन में देशभर में जुलूस निकाला गया तथा आम सभा की गई जिसमें सभी मजदूर संगठनों का पूर्ण सहयोग रहा। नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार अगर अपने फैसले वापस नहीं लेती यह हड़ताल अनिश्चितकालिन हो सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है एलआईसी
एलआईसी को भारतीय वित्त व्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। ये सभी कर्मचारी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ सड़क पर है लेकिन सरकार अभी भी अपने निर्णय को अटल और देशहित में बताने पर तुली है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने इंश्योरेंस कंपनियों में विदेश निवेश की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% करने का फैसला किया है। राज्य सभा में इस बारे में बिल लाया गया है। ऑल इंडिया इंश्योरेंस एम्पाइज एसोसिएशन का कहना है कि एलआईसी भारत के लोगों का विश्वास है और सरकार के इन फैसलों से लोगों का LIC पर विश्वास कम होगा।
हड़ताल के बीच सरकार ने हठधर्मिता से बिल किया पेश
उधर एलआईसी के कर्मचारियों के हड़ताल के दिन ही सरकार ने राज्यसभा में बीमा संशोधन विधेयक पेश कर दिया। बिल में इंश्योरेंस कंपनियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 49% से बढाकर 74% करने का प्रावधान है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने माँग की कि बिल पर नए सिरे से समीक्षा की ज़रूरत है और इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेज जाए। सरकार की तरफ से कोई आश्वासन न मिलने पर कांग्रेस सांसदों ने सदन में हंगामा किया और सरकार के खिलाफ नारे लगाए।
मुनाफाखोरों के हित में लाभकारी एलआईसी को बेचने पर आमादा
बीमा क्षेत्र में 23 प्राइवेट कंपनियों के साथ एक सरकारी कंपनी एलआईसी काम करती है। इन कंपनियों में बाज़ार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी एलआईसी की है। एलआईसी के पास भारत के कुल बीमाधारियों में से तकरीबन 76 फीसदी बीमाधारी हैं।
इस बार के बजट में सरकार ने एलान किया कि सरकारी कंपनी जीवन बीमा निगम (एलआईसी) में सरकार अपनी हिस्सेदारी बेचना चाहती है। इसके लिए सीधे आईपीओ लाने की बात कही गई है। इसका मतलब है कि एलआईसी के शेयरों की बिक्री की जाएगी।
मौजूदा समय में साठ साल पुरानी कम्पनी एलआईसी के 100 फीसदी शेयरों की मालिक सरकार खुद हैं। सौ करोड़ की ऑथोराइज्ड कैपिटल वाले एलआईसी के कैपिटल यानी पूंजी की कीमत 8.77 लाख करोड़ रूपये है। यह टाटा कंसल्टेंसी सर्विस और मुकेश अम्बानी के रिलायंस इंडिया लिमिटेड के कुल शेयरों की कीमतों से भी ज्यादा है।
एलआईसी की बैलेंस शीट की स्थिति भी बहुत मज़बूत है। एलआईसी की कुल सम्पति 30 लाख करोड़ पार कर पहली बार वित्त वर्ष साल 2019 में 31.11 लाख करोड़ रूपये हो गयी। यह एक साल में तकरीबन 9.38 फीसदी की बढ़ोतरी थी। एलआईसी का सरप्लस साल 2019 में 50 हज़ार करोड़ से अधिक का है।
साफ है कि एलआईसी की स्थिति बुरी नहीं है। न एलआईसी की बैलेंस शीट कमज़ोर है। न ही एलआईसी को नुकसान हो रहा है। इसलिए सवाल उठता है कि सरकार एलआईसी को बेचने क्यों जा रही है? बेचने के पीछे की वजह क्या है? जब बेचने लायक स्थितियां ही नहीं है।
लेकिन देश दुनिया के मुनाफाखोर कंपनियों की निगाह इस अहम सरकारी कंपनी पर है। उन्हीं के हक में मोदी सरकार देश की तमाम संपत्तियों और उद्यमों के साथ एलआईसी को भी बेचने पर आमद है।