किसान महापंचायत मे उतरा जनसैलाब, धर्म युद्ध में आहुति देने का आह्वान
यह किसान आंदोलन आम जनता की आजादी की लड़ाई है
रुद्रपुर (उत्तराखंड)। जनविरोधी 3 कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसान आंदोलन के तहत उधम सिंह नगर जिले के रुद्रपुर में आज 1 मार्च को किसान महापंचायत में जनसैलाब उमड़ पड़ा। इस दौरान किसान नेता डाक्टर दर्शन पाल, गुरनम सिंह चढूनी, राकेश टिकैत, आशीष मित्तल, सुश्री कविता, अधिवक्ता भानु प्रताप सहित तमाम नेताओं ने आवाज बुलंद की।
राजधानी दिल्ली की सरहदों से लेकर देशभर में चल रहे किसान आंदोलन के बीच इस किसान महापंचायत उत्तराखंड के साथ सीमावर्ती उतर प्रदेश के जिलों से भी भारी संख्या में पूरे हौसले के साथ किसानों के साथ महिलाओं और आम जनता ने भी भागीदारी की।
पंचायत में किसान उत्तराखंड के पारंपरिक छोलिया नृत्य के साथ पहुंचे। गीत गए गए तो टोलियाँ ढोल-नगाड़े के साथ तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के साथ किसानों का समर्थन देने लोग पहुंचे। चारों तरफ काले क़ानूनों को खत्म कराने के लिए उत्साह का माहौल था।
पुलिस-प्रशासन द्वारा मज़दूरों को भागीदारी से रोकने के प्रयास के बावजूद श्रमिक संयुक्त मोर्चा के नेतृत्व में इलाके के मज़दूरों ने भी अपनी उपस्थिति के साथ किसान मज़दूर एकता का प्रदर्शन किया।
किसान नेताओं ने दिया जज्बा, लड़ेंगे, जीतेंगे!
किसान नेता डाक्टर आशीष मित्तल ने कहा कि कोरोना के विकट दौर में 5 जून 2020 को किसान बिल का बम गिराया जो 21 सितंबर को संसद में पारित होने के साथ फट गया। यह देश के किसानों पर बड़ा हमला है। उन्होंने कहा कि किसान देश की जनता को आज़ाद कराने की यह विशेष लड़ाई है। कहा कि मेहनत के श्रम की लूट कराने वाले मेहनत कराने वालों को परजीवी बात रहे हैं।
डाक्टर दर्शन पाल ने कहा कि 26 नवंबर की देशव्यापी हड़ताल में दिल्ली कूच से शुरू आंदोलन के साढ़े चार माह बीत गए, 11 दौर की वार्तायें हो चुकी हैं, लेकिन सरकार की हठधर्मिता कायम है। लेकिन किसान भी खेती-किसानी विरोधी क़ानूनों को खत्म कराकर ही शांत होंगे। उन्होंने आहवन किया कि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान की तरह उत्तरप्रदेश व उत्तराखंड के भी टोल प्लाजा को मुक्त करना होगा।
पंचायत स्थल किसान मैदान घोषित
भाकियू नेता राकेश टिकैत ने कहा कि बड़े उद्योगपति किसानों की जमीनों को महंगे दाम देकर खरीद लेंगे और आने वाले समय में किसान बर्बाद हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ये कृषि कानून किसी भी सूरत में लागू नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की 15 दिनों से चुप्पी किसी साजिश की तैयारी है, इसलिए सतर्क रहना होगा। उन्होंने पंचायत स्थल को किसान मैदान घोषित किया, जिसका जनसमुदाय ने समर्थन किया।
गुरनम सिंह चढूनी ने कहा कि यह लड़ाई अस्तित्व बचाने की लड़ाई है, रोजगार बचाने की लड़ाई है। उन्होंने कहा कि भाजपा के पास धर्म-जाति की लड़ाई के अलावा देश के विकास के नाम पर कुछ नहीं है। उन्होंने भाजपा नेताओं और मंत्रियों के कार्यक्रमों का बहिष्कार कराने के आह्वान के साथ कहा कि ऐसा यहाँ भी करना होगा, जैसा हरियाणा में किसानों ने किया।
किसान नेताओं ने मोदी सरक की तानाशाही और दमनकारी नीतियों पर प्रहार किया। वक्ताओं ने मोदी को जनता को जाती-धर्म के नाम पर बांटकर, दंगों में झोंककर अदानियों-अंबनियों का सेवक बताया। लोगों ने ठग्गू का लड्डू बताते हुए कहा कि ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे उसने ठगा नहीं।
मज़दूरों ने की मजदूर-किसान एकता की आवाज बुलंद
महापंचयत में श्रमिक संयुक्त मोर्चा के नेतृत्व में इन्टरार्क व जेबीएम के मज़दूर अपनी शिफ्टों के साथ पहुँचे, जबकि माइक्रोमैक्स, महिंद्रा, एलजीबी, नेस्ले, यजाकी, गुजरात अंबुजा, कारोलिया, टाटा मोटर्स आदि सहित तमाम कंपनियों के मजदूर शामिल रहे।
मासा, इन्कलाबी मजदूर केंद्र, मजदूर सहयोग केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, पछास, क्रालोस, ठेका मजदूर कल्याण समिति पंतनगर सहित तमाम जन संगठनों ने भी भागीदारी की।
26 नवंबर से दमन के बीच डटे हैं किसान
उल्लेखनीय है कि 26 नवम्बर से दिल्ली की सरहदों पर बैठे लाखों-लाख किसान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। जनविरोधी तीन कृषि कानूनों के ख़िलाफ जारी किसान आंदोलन का देश की खाद्य सुरक्षा, बेरोज़गारी व सरकार द्वारा देशी-विदेशी पूँजी के हित में व्यापक मेहनतकश तबके के विरुद्ध काम करने जैसे विभिन्न मुद्दों के साथ भी सीधा सम्बन्ध है।
मोदी सरकार के इन तीन कृषि क़ानूनों का पुरजोर विरोध करके पंजाब और हरियाणा के किसानों की अगवाई में आगे बढ़ता यह महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, राजस्थान, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना सहित पूरे देश में विस्तारित हो चुका है।
दूसरी ओर मोदी सरकार अपनी चिरपरिचित सजिशपूर्ण व दमनकारी घृणित हरकतों के साथ सक्रिय है। जबकि संघर्षरत किसान पूरी बहादुरी से इनका डटकर मुक़ाबला कर रहे हैं। सरकार प्रायोजित हिंसा, दमन व मीडिया के दुष्प्रचारों को झेलकर भी वे अपने आंदोलन को मुक़ाम तक पहुंचाने के प्रति संकल्पबद्ध हैं।