उत्तराखंड: घंटों प्रतीक्षा के बावजूद श्रमायुक्त नहीं मिलीं डॉलफिन श्रमिकों से, प्रबंधन से करती रहीं गुफ्तगू

बुनियादी हक़ की माँग पर मज़दूर नेता को जेल; एएलसी की वार्ताओं में प्रबंधन हित में मनमानी, गलत बयान दर्ज करने का आरोप। डॉल्फिन मजदूरों ने श्रमायुक्त उत्तराखंड को भेजा ज्ञापन।
रुद्रपुर (उत्तराखंड)। सिडकुल पंतनगर स्थित डॉल्फिन कंपनी के मज़दूर प्रबंधन, श्रम विभाग, प्रशासन और पुलिस के अत्याचार के खिलाफ लगातार संघर्षरत है। जहां एक तरफ हक की आवाज उठाने पर मज़दूर नेता को कथित शांति भंग में पुलिस द्वारा उठा लिया गया, एसडीएम द्वारा जेल भेज दिया गया था, वहीं एएलसी की वार्ताओं में श्रमिकों के साथ धोखाधड़ी और मनमानी जारी है।
हालात ये हैं कि डॉल्फिन के श्रमिक अपनी आवाज को लेकर उत्तराखंड की श्रम आयुक्त के पास पहुंचे लेकिन घंटों प्रतीक्षा के बावजूद श्रमयुक्त महोदया ने श्रमिकों से मिलने का समय नहीं दिया। हालांकि इसी दौरान कंपनी का प्रबंधन आया, उसने अपनी पर्ची भेजी और तत्काल श्रमयुक्त महोदया ने प्रबंधन को बुला लिया और करीब 1 घंटे तक बंद कमरे में उनसे चर्चा करती रही।
बेहद शर्मनाक: श्रमिक नेता की जुबानी
श्रमयुक्त महोदया से मिलने डॉल्फिन श्रमिकों के साथ बीएमएस के जिला अध्यक्ष गणेश मेहरा भी गए थे। सत्ताधारी पार्टी से जुड़े मजदूर संघ के नेता होने के बावजूद महोदय ने उन्हें नहीं बुलाया। उन्होंने बीएमएस के प्रदेश नेताओं को भी सूचित किया। अंत में एक पर्ची देकर वे वापस लौटे।
बाद में गणेश मेहरा ने लिखा–
साथियो आज हल्द्वानी श्रम भवन में डॉल्फिन कम्पनी के श्रमिक साथियों की समस्याओं को हल्द्वानी श्रमायुक्त महोदया जी को अवगत कराने गए हुए थे, जिस पर सिर्फ एक ज्ञापन देना था, जिसमें सिर्फ लगभग पांच मिनट का समय लगता। लेकिन दो घंटे के इंतजार के पश्चात भी श्रमिक प्रतिनिधियों को नहीं बुलाया गया और कहा गया कि अपना ज्ञापन DLC महोदय को दे दें।
अंत में मुझे श्रमायुक्त महोदया के लिए दो घंटे के इंतजार के पश्चात यह पर्ची बनाकर भेजनी पड़ी। जबकि इस दो घंटे के मध्य में डॉल्फिन कम्पनी का मालिक आया और सीधे श्रमायुक्त महोदया के कार्यालय में गया। फिर उसके लिए चाय, पानी, ग्रीन टी की व्यवस्था की गयी, इस दौरान हम लोग कार्यालय के बाहर बैठे थे, वह डॉल्फिन का मालिक एक घंटे तक कार्यालय से बाहर नहीं आए फिर हम चले आए।

आज के हालात का यह दर्पण है। हालांकि यह वह समय था जब दोनों पक्ष मौजूद थे और राज्य की श्रम विभाग का प्रमुख होने के नाते उन्हें दोनों पक्षों को बैठकर बातचीत करनी थी। लेकिन आज के हालात जिस तरीके से मजदूरों के विपरीत खड़े हैं, प्रशासन श्रम विभाग और सरकार मजदूरों की की पीड़ा को सुनने को तैयार नहीं है।
‘मालिकों को कोई दिक्कत न हो‘
उल्लेखनीय है कि श्रम विभाग के ही एक वरिष्ठ अधिकारी का यह कहना है कि औद्योगिक माहौल को उद्योग हित में बनाए रखना है और इसके लिए किसी भी उद्योगपति या प्रबंधन को परेशान नहीं होने देना है। स्पष्ट है कि मज़दूरों की पीड़ा, दुख-तकलीफ और मनमाने शोषण जारी रहेंगे।
यही वह वजह है कि उत्तराखंड की औद्योगिक राजधानी उधम सिंह नगर में कोई भी सक्षम अधिकारी लंबे समय से तैनात नहीं किया जा रहा है। उप श्रम आयुक्त स्तर का कार्यालय होने के बावजूद लंबे समय से कोई नियमित डीएलसी नहीं है। कार्यवाहक डीएलसी का सप्ताह में एक दिन निर्धारित है, लेकिन वह भी नियमित नहीं है। सहायक श्रम आयुक्त के स्तर पर ऐसे अधिकारी की बार-बार नियुक्ति की जाती है जिसे वेतन, बोनस, ग्रेच्युटी आदि जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को सुनने का अधिकार नहीं होता है।
डॉल्फिन मज़दूरों का संघर्ष
सिडकुल पंतनगर में डॉल्फिन कम्पनी के पांच प्लांट हैं जिनमें महिला श्रमिकों सहित हजारों श्रमिक कार्य करते हैं। डॉल्फिन कम्पनी प्रबंधन द्वारा कम्पनी में विगत कई वर्षों से कार्य कर रहे करीब 25 स्थाई श्रमिकों की अवैध रूप से गेटबंदी कर दी गई है जिनमें महिला श्रमिक भी शामिल हैं। गेटबंदी करने से पूर्व श्रमिकों को कारण बताओ नोटिस या आरोप पत्र भी नहीं दिए गए।
उक्त 25 श्रमिकों में से सिर्फ दो श्रमिकों ललित कुमार के लिए निलंबन आदेश उनकी गेटबंदी के दो महीने बाद और श्रमिक वीरू सिंह के लिए निलंबन आदेश गेटबंदी के डेढ़ महीने बाद जारी किया गया। स्पष्टतः यह प्रमाणित स्थाई आदेशों का घोर उल्लंघन होने के साथ अनुचित श्रम व्यवहार है।
श्रमिक प्रतिनिधियों के अनुसार श्रमिकों द्वारा की गई शिकायत पर चल रही त्रिपक्षीय संराधन/आईआर वार्ताओं की कार्यवृत्ति में सहायक श्रमायुक्त द्वारा श्रमिकों के कथन के अनुसार उनका पक्ष दर्ज नहीं किया जा रहा है। बल्कि उनके बयानों को जानबूझकर मनमाने तरीके से बदलकर ऐसे दर्ज किये जा रहे हैं जिससे कम्पनी मालिक को लाभ प्राप्त हो सके। पीड़ित श्रमिकों द्वारा विरोध करने ओर एएलसी द्वारा वार्ता को बंद करके फ़ाइल निरस्त करने की धमकी देकर हस्ताक्षर करने को विवश किया जा रहा है।
15 मई की वार्ता के दौरान भी एएलसी के इसी हरकत पर श्रमिक प्रतिनिधियों सोनू कुमार, बबलू सिंह, नीरज आदि ने आपत्ति दर्ज कराते हुए लिखित कथन पेश किया किन्तु एएलसी ने उसे कार्यवृत्त का भाग नहीं बनाया तो श्रमिकों ने अपने लिखित कथन को कार्यालय से रिसीव करा लिया और डाक से भी भेज दिया तथा इसकी तत्काल लिखित शिकायत श्रमायुक्त उत्तराखंड के समक्ष भी की।
इस दौरान श्रमिक उत्तराखंड की श्रमायुक्त महोदया से मुलाक़ात के कई प्रयास किए, लेकिन मुलाक़ात नहीं हुई। हालात ये हैं कि 21 मई को मज़दूर श्रमायुक्त कार्यालय हल्द्वानी घंटों मिलने की प्रतीक्षा में बैठे रहे, लेकिन महोदया ने श्रमिकों से मुलाकात नहीं की। इसी बीच डॉलफिन कंपनी का प्रबंधन भी आया, जिसे श्रमायुक्त महोदया ने तुरंत बुला लिया और प्रबंधन से घंटों गुफ्तगू करती रहीं।


दमन: मज़दूर को कथित शांतिभंग में भेजा जेल
बीते 12 मई की सुबह डॉल्फिन कम्पनी के मजदूर नेता सोनू कुमार को सिडकुल पंतनगर चौकी पुलिस उनके घर से उठा ली थी। प्रबंधन के इशारे पर सोनू पर 151,107 और 116 (शांति भंग) की धराएं लगाईं और एसडीएम द्वारा जमानत देने की जगह उन्हें जेल भेज दिया और तीन दिन बाद उनकी जमानत हुई।
ज्ञात हो कि श्रमिक सोनू कम्पनी में श्रमिकों को न्यूनतम वेतनमान देने, नियमानुसार बोनस देने, ओवर टाइम का डबल भुगतान करने, अपनी और अन्य दर्जनों श्रमिकों की अविधिक गेटबंदी समाप्त करने और कम्पनी के स्थाई श्रमिकों को जबरदस्ती त्याग पत्र और अन्य कागजों पर हस्ताक्षर कराके ठेकेदार के तहत नियोजित करने की साजिश के विरोध में कानूनी रूप से आवाज़ उठा रहे थे।
कंपनी की मनमानी
चार पहिया वाहन के शीटकबर, मेट, स्टिकर आदि बनाने वाली डॉलफिन कंपनी में मनमाने रूप से अनगिनत श्रमिकों को मात्र 300 रूपये बोनस दिया गया। न्यूनतम वेतन मान नहीं देना और ओवर टाइम का नियमानुसार भुगतान नहीं करना आम बात है। इसके खिलाफ मज़दूरों का आक्रोश लगातार बढ़ता रहा है।
इस साल की शुरुआत में 4 जनवरी को पीपी, एपीएन, यूएसपीओटी, एएमपीपी सहित डॉल्फिन के पांच प्लांटों के मजदूरों ने 10 सूत्रीय मांगपत्र को लेकर हड़ताल कर दी थी। हालांकि प्रबंधन ने इसे ‘मैनेज’ कर लिया, हड़ताल संपट हो गई। लेकिन मज़दूरों को न्याय मिलने की जगह उनका दमन बढ़ता रहा।
इन्हीं हालात में मज़दूरों का संघर्ष जारी है।