तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल आरएन रवि मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ने 'ईमानदारी' से अपना काम नहीं किया है, क्योंकि विधेयकों को राष्ट्रपति के पास तब भेजा गया, जब वे लंबे समय से उन पर विचार कर रहे थे. पीठ ने कहा कि राज्यपाल ऐसे क़ानून को वीटो नहीं कर सकते. नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (8 अप्रैल) कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा दस महत्वपूर्ण बिलों को मंजूरी न देना और उन्हें राष्ट्रपति की सहमति के लिए सुरक्षित रखना गैरकानूनी है. लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि राज्यपाल ने ‘ईमानदारी’ से अपना काम नहीं किया है, क्योंकि विधेयकों को राष्ट्रपति के पास तब भेजा गया, जब वे लंबे समय से उन पर विचार कर रहे थे और पंजाब के राज्यपाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया था. पीठ ने कहा कि राज्यपाल इस तरह से कानून को वीटो नहीं कर सकते. शीर्ष अदालत ने कहा कि इन दस विधेयकों को राज्य विधानसभा द्वारा फिर से पारित किए जाने के बाद दूसरे दौर में पेश किए जाने पर राज्यपाल की मंजूरी मिल गई मानी जाएगी. इस संबंध में न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग किया. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, ‘हम किसी भी तरह से राज्यपाल के पद को कमतर नहीं आंक रहे हैं. हम बस इतना ही कहना चाहते हैं कि राज्यपाल को संसदीय लोकतंत्र की स्थापित परंपराओं के प्रति उचित सम्मान के साथ काम करना चाहिए, विधायिका के माध्यम से व्यक्त की जा रही लोगों की इच्छा और लोगों के प्रति जिम्मेदार निर्वाचित सरकार का सम्मान करना चाहिए.’ अदालत ने कहा कि सरकार राज्य की संवैधानिक मुखिया है और इस उद्देश्य के लिए उसे राज्य के लोगों की इच्छा और कल्याण को प्राथमिकता देनी होगी. न्यायालय ने कहा कि उनकी (विधायकों) शपथ न केवल उनके जनादेश को स्पष्ट करती है, बल्कि राज्यपाल से भी इसकी मांग करती है, क्योंकि उनके द्वारा किए जाने वाले काम की प्रकृति बहुत ही संवेदनशील है और राज्य पर भी इसके प्रभाव की संभावना भी है. इसलिए राज्यपाल को ‘राजनीतिक बढ़त के लिए लोगों की इच्छा को विफल करने और रुकावट पैदा करने के उद्देश्य से काम नहीं करना चाहिए.’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘राज्य विधानमंडल के सदस्य, लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति के परिणामस्वरूप राज्य के लोगों द्वारा चुने गए हैं, इसलिए वे राज्य के लोगों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए बेहतर ढंग से काम करते हैं. ऐसे में लोगों की स्पष्ट पसंद के उलट कोई भी कार्रवाई, दूसरे शब्दों में राज्य विधानमंडल, संवैधानिक शपथ का उल्लंघन होगा.’ अदालत ने आगे कहा, ‘मामले को खत्म करने से पहले हम यह टिप्पणी करना उचित समझते हैं कि उच्च पद पर आसीन संवैधानिक अधिकारियों को संविधान के मूल्यों द्वारा निर्देशित होना चाहिए.’ कौन-से दस विधेयक जो राज्यपाल ने रोके थे ख़बर के मुताबिक, जनवरी 2020 और अप्रैल 2023 के बीच राज्य विधानमंडल द्वारा मूल रूप से 12 विधेयक, जिनमें से ज़्यादातर राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों से संबंधित थे, राज्यपाल की सहमति के लिए भेजे गए थे. हालांकि, राज्यपाल ने उन्हें अनिश्चितकाल के लिए रोक दिया. नवंबर 2023 में जब तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल की कथित निष्क्रियता के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, तो राज्यपाल ने तुरंत दो विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया, पर शेष 10 को सहमति नहीं दी. इसके कुछ समय पश्चात 18 नवंबर, 2023 को तमिलनाडु विधानसभा ने एक विशेष सत्र में 10 विधेयकों को फिर से पारित कर दिया और उन्हें फिर से राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेज दिया. राज्यपाल ने बदले में सभी 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दिया. राष्ट्रपति ने बाद में एक विधेयक को स्वीकृति दी, सात को खारिज कर दिया और शेष दो पर विचार नहीं किया. अब राज्यपाल आरएन रवि द्वारा रोके गए और सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत हुए विधेयक इस प्रकार हैं: 1. तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2020 2. तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2020 3. तमिलनाडु विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक 2022 4. तमिलनाडु सिद्ध चिकित्सा विश्वविद्यालय विधेयक, 2022 5. तमिलनाडु डॉ. एमजीआर चिकित्सा विश्वविद्यालय, चेन्नई (संशोधन) विधेयक, 2022 6. तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2022 7. तमिल विश्वविद्यालय (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2022 8. तमिलनाडु विश्वविद्यालय कानून (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2022 9. तमिलनाडु सिद्ध चिकित्सा विश्वविद्यालय विधेयक, 2022 10. तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2023 11. तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2023