कोल खदानों के निजीकरण के खिलाफ 2 जुलाई से हड़ताल

कोयला मज़दूरों की 3 दिवसीय हड़ताल के समर्थन में लामबंद हुईं यूनियनें
41 कोयला खदानों को निजी हाथों में बेचे जाने के खिलाफ कोल इंडिया और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) के मज़दूरों ने दो जुलाई से तीन दिवसीय हड़ताल पर जाने का ऐलान किया हैं। इस हड़ताल को सभी सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने भी समर्थन दिया है। हड़ताल के समर्थन में एक संयुक्त बयान भी जारी हुआ है।
आपदा में मुनाफाखोरों को सौगात
प्रधानमंत्री ने कहा था कि कोरोना महामारी आपदा नहीं अवसर है। इसी का पालन करते हुए मोदी सरकार ने 41 कोयला खदानों को निजी हाथों में बेच दिया है। निजी मुनाफाखोरों के लिए इसे खोलते हुए ज़नाब मोदी ने फरमाया था कि वे कोयला क्षेत्र का ‘लॉकडाउन” ख़त्म कर रहे हैं।
सरकार के इस फैसले का विरोध तेज़ हो गया है। यहाँ तक कि बीजेपी और मोदी सरकार समर्थक आरएसएस से संबंद्ध भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) ने भी इसका विरोध किया हैं। इस फैसले से सरकार के ख़िलाफ़ इतना गुस्सा है कि बीएमएस को खुद को लग कर पाना आसान नहीं है।
मोदी सरकार कोयला खदानों निजी हाथों में सौंपे जाने को देशहित में बता रही है और इसे आत्मनिर्भर भारत के लिए एक मास्टरस्ट्रोक बता रही है। साथ ही इस नीलामी से हज़ारों करोड़ों के रेवन्यू आने की बात कर रही है। जबकि सच यह है कि इससे कोयला खनन क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता ख़त्म हो जाएगी और सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली उत्पादन इकाईयां निजी कंपनियों पर निर्भर हो जाएंगी ।
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सेंट्रल ट्रेड यूनियनों का पूर्ण समर्थन
ट्रेड यूनियनों ने 18 जून को सरकार को इस हड़ताल से संबंधित नोटिस भी दिया है और इसका समर्थन सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने किया है। सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने संयुक्त रूप से बयान जारी कर कहा कि सभी ट्रेड यूनियनों ने कोयला खनन क्षेत्र की ट्रेड यूनियनों और फ़ेडरेशनों के हड़ताल का समर्थन करती हैं।
अपने बयान में यूनियनों ने कहा कि कोयला खनन क्षेत्र की ट्रेड यूनियनों ने 10 और 11 जून 2020 को इसका विरोध किया था। लेकिन मोदी सरकार ने इनकी मांगों को दरकिनार कर दिया। उल्टे प्रधानमंत्री मोदी ने खुद 18 जून को नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी।
यूनियनों ने कहा कि इस मामले का तथ्य यह है कि पूर्व नीलामी और आवंटित कोयला ब्लॉक भी अनुसूची अवधि के अनुसार शुरू नहीं किया जा सका। इसलिए उन्हें तुरंत रद्द करने की आवश्यकता है।
यूनियनों ने उठायीं माँगें :
- कोयला उद्योग में वाणिज्यिक खनन का निर्णय वापस लें।
- सीआईएल या एससीसीएल के कमजोर या निजीकरण की ओर सभी कदम वापस लिए जाए।
- सीआईएल से सीएमपीडीआईएल को डी-लिंक करने का निर्णय वापस लें।
- एचपीसी/सीआईएल की तरह ही सीआईएल और एससीसीएल में अनुबंध श्रमिकों के लिए मजदूरी लागू की जाए।
- राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौते के खंड 9.3.0, 9.4.0 और 9.5.0 को लागू करें।
राज्य सरकारों ने भी किया विरोध
सरकार के इस फैसले का पूरे देश में विरोध हो रहा है। झारखंड और छत्तीसगढ़ दोनों ही राज्य खनन के प्रमुख राज्य है, दोनों ही राज्य सरकारों ने मोदी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तो इसको लेकर प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था।
इसके साथ ही छत्तीसगढ़ के सरपंचों ने भी सरकार के इस निर्णय की आलोचना की और इसे तत्काल वापस लेने की बात कही है।