लॉकडाउन से हाहाकार : मज़दूर सडकों पर

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दिल्ली से मदुरई तक मज़दूरों का रोटी के लिए संघर्ष आनेवाले दिनों के संकेत हैं!

आज तमिलनाडु के मदुरई जिले के यगप्पा नगर के एमजीआर रोड पर दिहाड़ी मज़दूरों के प्रदर्शन की ख़बर आई, वहीं,यमुना में एक मज़दूर की लाश मिलने से दिल्ली के कश्मीरी गेट के पास यमुना किनारे बने शेल्टर भवनों में बवाल भड़का, जबकि हीरा नगरी सूरत में हज़ारों प्रवासी मज़दूर सड़कों पर उतर पड़े थे…।

कोरोना वायरस के संक्रमण और देशभर को लॉकडाउन के बीच सबसे अधिक मार मज़दूर जमात के ऊपर ही पड़ रही है। इधर-उधर फंसे प्रवासी मज़दूरों के सामने दिक्कतें ज्यादा गंभीर हो रही हैं। लोगों को जरूरी सामान तक नहीं मिल रहा है। नतीजतन लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। बिना तैयारी के किये गये लॉकडाउन ने उत्तर से लेकर दक्षिण तक हाहाकार मचाया हुआ है।

मदुरई में दिहाड़ी मज़दूरों का प्रदर्शन

रविवार को तमिलनाडु के मदुरई जिले के यगप्पा नगर के एमजीआर रोड पर दिहाड़ी मज़दूरों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि उनके पास राशन खरीदने के पैसे तक नहीं हैं। लॉकडाउन के बाद से ही उनके पास काम नहीं है और अब रोज़ कमाकर, रोज़ खाने वाली यह आबादी भूख और अभाव से त्रस्त है। ख़ास बात ये है कि जहाँ ये प्रदर्शन हुआ, उसे कोरोना प्रभावित मानकर संक्रमित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था। लेकिन मज़दूरों के पेट की आग कोरोना के डर पर भारी पड़ रही है।

दिल्ली में शेल्टर होम बनी कब्रगाह

वहीं, दिल्ली के कश्मीरी गेट के पास यमुना किनारे बने तीन शेल्टर भवनों को शनिवार आग के हवाले कर दिया गया। ख़बर के मुताबिक शेल्टर होम में काम कर रहे सिविल डिफेंस वालंटियरों का व्यवहार वहाँ रह रहे मज़दूरों के प्रति अमानवीय था। 10 अप्रैल को खाना वितरण के समय मज़दूरों और वालंटियरों में बहस हुई। आक्रोशित वालंटियर्स ने उनपर डंडे बरसाने शुरू कर दिए। दहशत में तीन-चार मज़दूर यमुना नदी में कूद गये। अगले दिन उनमे से एक की लाश मिलने के बाद मज़दूर भड़क गये और उन्होंने रैन बसेरे में आग लगा दी।

फोटो : सोशल मीडिया

दिल्ली में यमुना नदी के किनारे 5000 से ज़्यादा प्रवासी मज़दूर खुले आसमान के नीचे रहने को मज़बूर हैं। यह वह आबादी है जो किसी रैन बसेरे में भी जगह नहीं पा सकी है। निश्चित ही इस घटना से सवाल केंद्र सरकार के अलावा केजरीवाल सरकार के दावों पर भी उठता है।

सूरत में मज़दूरों का गुस्सा फूटा

एक कठिन स्थिति में 10 अप्रैल की रात 10 बजे के क़रीब हीरा नगरी सूरत में हज़ारों प्रवासी मज़दूर सड़कों पर उतर पड़े। ये मज़दूर वेतन, राशन और अपने घर वापस जाने की इजाज़त देने की माँग कर रहे थे। न्याय के रूप में उन्हें लाठियां, मुक़दमे और जेल मिली।

दरअसल, यहाँ ज़्यादातर टेक्सटाईल व अन्य कारखानों में काम करने वाले प्रवासी मज़दूर हैं। इनमें अधिकांश मज़दूर ओडिशा, यूपी और बिहार से हैं और लॉकडाउन के चलते वो सूरत में ही फंस कर रह गए हैं। काम बंद होने की वजह से खाने पीने तक की दिक्कत हो गई है। प्रधानमंत्री की घोषणा से उन्हें वेतन मिलने की उम्मीद थी, लेकिन 10 तारीख़ आने के बावजूद उन्हें वेतन भी नहीं मिला और दयनीय स्थिति पैदा हो गई।

पटियाला में निहंगों की पुलिस से मुठभेड़

आज 12 अप्रैल की सुबह पंजाब के पटियाला में लॉकडाउन के दौरान निहंग सिखों और पुलिस में मुठभेड़ हो गई, जिसमें एक पुलिसकर्मी का हाथ पूरी तरह से कट गया। इसमें दूसरे पुलिसकर्मी भी घायल हो गए। बलबेरा के गुरुद्वारे से 7 निहंगों को गिरफ्तार किया गया है। इनमें से एक निहंग पुलिस फायरिंग में घायल हो गया था, जिसे अस्पताल ले जाया गया है।

वैसे तो यह अपराध की घटना लगती है, लेकिन यह देश में बढ़ते तनाव का भी सूचक है।

ये चंद घटनाएँ, देश के हालात की बानगी मात्र हैं।

मेहनतकश आबादी बुनियाद चीजों से महरूम

देश की जनता के एक हाथ में थाली और दूसरे हाथ में दिया पकड़ाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेने वाली सरकार ने देश के मज़दूरों को उनके भाग्य भरोसे छोड़ दिया है। जहाँ देश की एक आबादी घर में सेनिटाइजर पोतकर हाथ रगड़ रही है, वहीं दूसरी तरफ़ हमारे मज़दूरों को भोजन के लिए भी हाथ पसारना पड़ रहा है, उन्हें हर तरह अपमान भी सहना पड़ रहा है।

covid-19: ...जब कोरोना पर भारी पड़ती है ...

असल में कोरोना संकट के बीच पहले से सक्षम और सुरक्षित छतों के नीचे रहने वाली आबादी की सहूलियत के हिसाब से ही सरकार सारे उपाय कर रही है, जबकि सही मायने में इस देश के बहुसंख्यक, यानी रोज़ कुंआ खोदकर पानी पीने वाली देश की मज़दूर आबादी पूरे देश में फंसी हुई है और ज़िंदा रहने की ही बुनियादी लड़ाई की तरह लड़ रही है।

हालत ये हैं कि देश की सर्वोच्च अदालत ने भी प्रवासी मज़दूरों को राहत देने से हाथ खिंच लिया और कह दिया कि भोजन मिल रहा तो पैसे की क्या ज़रूरत!

ज़ाहिर है कि मुनाफे की सेवा में लगी सरकारों, यहाँ तक कि न्याय प्रणाली के लिए मेहनतकश आबादी की वास्तव में कोई फ़िक्र नहीं है! ऐसे में बगावतें होना आश्चर्यजनक नहीं है!