खुली तानाशाही: इसराइल द्वारा सैकड़ों फलस्तीनी बिना किसी आरोप के हिरासत में

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ब्रिटेन से विरासत में मिली इसराइल की खतरनाक सुरक्षा नीति, जो बिना किसी आरोप के हिरासत में रखने का अधिकार देता है। सरकार को कोई सबूत भी नहीं दिखाना होता है।

इसराइल द्वारा फलस्तीनी पर लगातार हमलों के बीच 180 फलस्तीनी बच्चों और महिलाओं में शामिल हैं, जिन्हें ग़ज़ा में बंधक बनाए गए लोगों की रिहाई के बदले में हमास के साथ हुए समझौते के बाद इसराइल ने रिहा किया था।

रिहा हुए 180 फलस्तीनी बच्चों और महिलाओं में शामिल 3 किशोरों की भी रिहाई हुई। उनके हालात के बहाने उस खतरनाक क़ानून, फलस्तीनी लोगों की अमानवीय हिरासत और हालात की एक तस्वीर देती बीबीसी में प्रकाशित जोएल गुंटर की रिपोर्ट…

याजेन अलहसनत कब्जे वाले वेस्ट बैंक के बेथलेहम में अपने घर में मां के पास बैठे हैं। उन्हें नींद आ रही है। 17 साल के याजेन को एक दिन पहले ही जेल से रिहा किया गया है। करीब पांच महीने पहले इसराइली सेना ने सुबह चार बजे उनके घर पर छापा मारकार उन्हें गिरफ्तार किया था। उन्हें प्रशासनिक हिरासत में रखा गया था।

यह इसराइल की काफी लंबे समय से चली आ रहा सुरक्षा नीति है। यह उसे ब्रिटेन से विरासत में मिली थी।

यह नीति इसराइल सरकार को लोगों को बिना किसी आरोप के हिरासत में रखने का अधिकार देता है। सरकार को हिरासत में लिए गए लोगों के खिलाफ कोई सबूत भी नहीं दिखाना होता है।

याजेने कहते हैं, “उन लोगों के पास एक खुफिया फाइल है। वो आपको यह भी नहीं बताएंगे कि उसमें है क्या।”

कैदियों की अदला-बदली से रिहा किशोरों की दास्तान

याजेन उन 180 फलस्तीनी बच्चों और महिलाओं में शामिल हैं, जिन्हें ग़ज़ा में बंधक बनाए गए लोगों की रिहाई के बदले में हमास के साथ हुए समझौते के बाद इसराइल ने रिहा किया था।

सात अक्तूबर के बाद से बहुत से लोग प्रशासनिक हिरासत में हैं। यह पिछले 30 साल के 1300 लोगों के स्तर से बढ़कर 2800 तक पहुंच गया है।

याजेन की रिहाई के समय उनके परिवार से कहा गया था कि वो इसका जश्न न मनाएं और मीडिया से बात न करें। इसी तरह की हिदायतें उन दो किशोरों को भी दी गई थीं, जिन्होंने अपने अनुभव बीबीसी से साझा किए। लेकिन इन तीनों परिवारों का कहना था कि वो चाहते हैं कि प्रशासनिक हिरासत के मामले को सामने लाया जाए।

इसराइल का कहना है कि वो इस नीति का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक करता है। उसका कहना है कि यह चरमपंथ के खिलाफ लड़ाई में एक कारगर तरीका है।

मौरिश हार्स 2013 से 2016 तक वेस्ट बैंक में सैन्य अभियोजन के निदेशक रहे हैं। उन्होंने बीबीसी से कहा कि इसराइल न केवल अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन कर रहा है, बल्कि उससे आगे बढ़कर हिरासत में लिए गए लोगों को अपील का अधिकार दे रहा है और यह सुनिश्चित कर रहा है कि उनकी हिरासत की हर छह महीने में समीक्षा हो।

लेकिन मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इसका अत्यधिक इस्तेमाल सुरक्षा कानून का दुरुपयोग है, जिसे इतने बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए नहीं बनाया गया है। उनका कहना है कि हिरासत में लिए गए लोग प्रभावी रूप से अपना बचाव या अपील नहीं कर सकते हैं, क्योंकि सबूतों तक उनकी पहुंच नहीं है।

क्या कहते हैं मानवाधिकार संगठन

हामोकेड नाम का एक इसराइली मानवाधिकार संगठन फलस्तीनी नागिरकों के हिरासत की निगरानी करता है। इसकी कार्यकारी निदेशक जेसिका मांटेल कहती हैं, ”अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों में प्रशासनिक हिरासत एक दुर्लभ अपवाद होना चाहिए।”

वो कहती हैं, ” आपको इसका उपयोग तब करना चाहिए जब खतरे को टालने के लिए किसी को हिरासत में लेने के अलावा कोई और उपाय न हो। लेकिन यह साफ है कि इसराइल इसका उस तरह से इस्तेमाल नहीं कर रहा है। वो बिना किसी आरोप के सैकड़ों-हजारों लोगों को हिरासत में ले रहा है। वह खुद को किसी जांच से बचाने के लिए प्रशासनिक हिरासत का इस्तेमाल कर रहा है।”

फलस्तीनियों को इस इलाके में 1945 से ही प्रशासनिक हिरासत में रखा जा रहा है, पहले ब्रिटिश शासनादेश के तहत और बाद में ऑक्यूपाइड फलस्तीन टेरेटरी में।

कुछ दुर्लभ मामलों में ही इसका इस्तेमाल इसराइली नागरिकों के खिलाफ किया गया है। लेकिन इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल वेस्ट बैंक में फलस्तीनियों को हिरासत में लेने में किया जाता है, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं।

फलस्तीनियों को हिरासत में लेने का घातक क़ानून

प्रशासनिक हिरासत में लिए गए लोगों की सुनवाई एक सैन्य अदालत में होती है, लेकिन सरकार हिरासत में लिए गए व्यक्ति या उनके वकील को मामले से जुड़े सबूत दिखाने की जरूरत नहीं होती है।

हिरासत में लिए गए व्यक्ति को छह महीने तक की सजा सुनाई जा सकती है। लेकिन छह महीने की इस सजा को सैन्य अदालत अनिश्चित काल के लिए बढ़ा सकती है। ऐसे में हिरासत में लिए गए व्यक्ति इस बात का अनुमान नहीं लगा सकता है कि उसे कबतक हिरासत में रखा जाएगा।

अपने लिविंग रूम में बैठे याजेन कहते हैं कि वास्तव में आपको जो चीज मिलती है, वह है अनिश्चितता। क्या छह महीने की कैद के बाद रिहा कर दिया जाएगा या आपकी हिरासत को एक या दो साल के लिए बढ़ा दिया जाएगा।

हिरासत में लिए गए लोग अधिकारविहीन

हिरासत में लिए गए लोग इसराइल की सर्वोच्च अदालत तक अपील कर सकते हैं, लेकिन अपने खिलाफ सबूतों तक पहुंच न होने के कारण उनके पास आधार बनाने के लिए कुछ नहीं होता है।

जिन फलस्तीनियों पर सैन्य अदालतों में मुकदमा चलाया जाता है, उनके पास सबूतों तक पहुंच अधिक होती है, लेकिन अदालतें करीब 99 फीसदी सजा दर का दावा करती हैं।

यरूशलम में रहने वाले वकील माहेर हन्ना कहते हैं कि सैन्य अदालतों में फ़लस्तीनियों का बचाव करना लगभग असंभव काम है। वो कहते हैं, ” पूरा तंत्र ही इस तरह का बनाया गया है कि एक फलस्तीनी की अपनी रक्षा करने की क्षमता कम हो। यह बचाव पक्ष पर कठोर पाबंदी लगाता है और सरकारी अभियजोन पक्ष को सबूत पेश करने से बचाता है।”

याजेन की मां सादिह कहती हैं कि इसराइल वेस्ट बैंक में इस नीति को लागू करने की लाल, हरी हर तरह की लाइन पार कर गया है। वो कहती हैं कि हम न्याय की एक समानंतर तंत्र के तहत रह रहे हैं।

उसामा मारमेश 16 साल के हैं. वो बताते हैं कि जब उन्हें हिरासत में लिया गया था तो उन्हें सड़क से उठाकर एक अज्ञात गाड़ी में डाल दिया गया था। इसके 48 घंटे बाद तक उनके पिता नईफ़ को यह पता नहीं चल पाया था कि उसामा कहा हैं।

नईफ़ कहते हैं,”आप उन सभी लोगों को फोन करते हैं ,जिन्हें आप जानते हैं और उनसे पूछते हैं कि आपने मेरे बेटे को देखा है। आप सो भी नहीं पाते हैं।”

उसामा बताते हैं कि अपनी हिरासत के दौरान मैंने बार-बार आरोपों के बारे में पूछा। लेकिन हर बार उन्हें चुप रहने को कहा गया।

17 साल के मूसा अलोरीदत को उनके घर पर सुबह पांच बजे छापेमारी कर गिरफ्तार किया गया था। इस दौरान इसराइली सुरक्षा बलों ने उन्हें उस कमरे से खींच लिया था, जिसमें वो अपने दो भाइयों के साथ रहते थे। सुरक्षा बलों ने उनकी आलमारी पर गोली चला दी, इससे उसका शीशा टूट गया।

मूसा के पिता मुहन्नद ने अपने फोन पर एक तस्वीर दिखाते हुए बताया, “वे उसे अंडरवियर में ही ले गए। तीन दिनों तक हमें उसके बारे में कुछ भी पता नहीं था।”

सरकार पर सबूत देने का कोई दबाव नहीं

हिरासत के दौरान न तो याजेन, उसामा न मूसा न उनके अभिभावकों या वकीलों को उनके खिलाफ कोई सबूत दिखाए गए। बंधकों की अदला-बदली के दौरान इसराइल ने उन लोगों की सूची जारी की जिनको रिहा किया जाना था। इस सूची में याजेन, मूसा और उसामा पर लगे आरोप के कॉलम में, इलाके की सुरक्षा के लिए खतरा, जैसी अस्पष्ट लाइन लिखी थी।

सूची के एक दूसरे संस्करण में कहा गया कि याजेन और मूसा पर फलस्तीनी चरमपंथी समूहों से संबद्ध होने का संदेह था।

जब उसामा को रिहा किया गया, तो उन्हें दिए गए संक्षिप्त आरोप पत्र में कहा गया था कि महीनों पहले उसने दो मौकों पर, इसराइली सुरक्षा चौकियों पर पत्थर फेंके थे. उन पत्थरों का आकार उसकी हथेलियों का आधा था।

याजेन और मूसा को सैकड़ों अन्य प्रशासनिक कैदियों के साथ ओफर जेल में रखा गया था।

सैन्य अभियोजन के पूर्व निदेशक मौरिस हिर्श कहते हैं कि सीमित जानकारी के आधार पर कोई नतीजा निकालना गलत होगा। वो कहते हैं, “इन चरमपंथियों के खिलाफ खुले तौर पर उपलब्ध सबूत और खुफिया जानकारी में बहुत अधिक अंतर है।”

क़ैदियों के रहने की स्थिति और बुरी हो गई

अंत में याजेन, उसामा और मूसा ने चार से सात महीने तक जेल में बिताए। इन तीनों का कहना था कि सात अक्तूबर को हमास के हमले तक हालात तुलनात्मक रूप से ठीक थे।

उस हमले के बाद से उनकी बेडशीट, कंबल, अतिरिक्त कपड़े और राशन को हटा दिया गया। बाहरी दुनिया से संपर्क को काट दिया गया। इसे उन्होंने हमले की सामूहिक सजा बताया।

वहीं अन्य कैदियों ने आरोप लगाया कि उन्हें पीटा गया, उन पर आंसू गैस छोड़ा गया या उन पर कुत्ते छोड़े हए।

इसराइली जेल सेवा ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि उसने हमास के हमले के जवाब में जेलों को आपातकालीन मॉड में रखा और सुरक्षा के नाम पर हिरासत में लिए गए कैदियों की रहने की स्थिति को कम कर दिया है।

याजेन, उसामा और मूसा इसलिए जल्द रिहा हो गए क्योंकि इसराइली बंधकों की अदला-बदली में महिलाओं और बच्चों को प्राथमिकता दी गई। इसराइली जेल सेवा के ताजा आंकड़ों के मुताबिक उसकी जेलों में अभी भी 2,873 लोग प्रशासनिक हिरासत में हैं।

मनोवैज्ञानिक हिरासत में रहने की स्थिति

घर पहुंचने के अगले दिन मूसा अपने कमरे में लौटे, जहां से करीब चार महीने पहले इसराइली सेना उन्हें उनके बिस्तर से उठाकर ले गई थी। सैनिकों की गोली से टूटे हुए अलमारी के दरवाजों को बदलने के लिए हटा दिया गया था।

लेकिन कमरे को उसके माता-पिता ने ठीक कर दिया था। उन्हें मूसा के लंबे समय तक जेल में रहने की आशंका थी। क्योंकि उनके वकील ने हिरासत बढ़ाए जाने की 90 फीसदी आशंका जताई थी।

इन तीनों लड़कों का कहना था कि वे अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करना चाहते हैं। मूसा ने कहा कि फिर से हिरासत में ले लिए जाने की आशंका में रहना एक तरह से मनोवैज्ञानिक हिरासत है।

याजेन का कहना था, “उन्होंने हमें एक बड़ी जेल में छोड़ दिया।” उसकी ओर देखते हुए याजेन की मां ने कहा, “कोई शांति नहीं है। वे तुम्हें किसी भी समय ले जा सकते हैं।”

साभार: बीबीसी न्यूज़, वेस्ट बैंक, 3 जनवरी 2024