देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने घोषणा की कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के त्रि-भाषा फॉर्मूले के चरणबद्ध कार्यान्वयन के हिस्से के रूप में शैक्षणिक वर्ष 2025-26 से कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी अनिवार्य तीसरी भाषा होगी. विपक्षी दलों ने इसको लेकर भाजपा नीत महायुति सरकार की आलोचना की है.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र में हिंदी भाषा थोपने को लेकर राजनीतिक विवाद छिड़ गया है, क्योंकि विपक्षी दलों ने राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के लिए भाजपा नीत महायुति सरकार की आलोचना की है.
यह विवाद तब शुरू हुआ जब देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने बुधवार (15 अप्रैल) को घोषणा की कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के त्रि-भाषा फॉर्मूले के चरणबद्ध कार्यान्वयन के हिस्से के रूप में शैक्षणिक वर्ष 2025-26 से कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी अनिवार्य तीसरी भाषा होगी. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने एक्स पर एक लंबे पोस्ट में कहा, ‘हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदी नहीं हैं.’ उन्होंने इस फैसले को चुनौती दी और इस बात पर प्रकाश डाला कि हिंदी राष्ट्रीय भाषा नहीं है.
उन्होंने लिखा, ‘अगर आप महाराष्ट्र को हिंदीकरण का जामा पहनाने की कोशिश करेंगे तो महाराष्ट्र में संघर्ष अवश्यंभावी है. क्या यह राजनीतिक लाभ पाने के लिए आगामी चुनावों में मराठी बनाम गैर-मराठी संघर्ष पैदा करने का प्रयास है? इस राज्य में गैर-मराठी भाषी लोगों को भी सरकार की इस चाल को समझना चाहिए. उन्हें आपकी भाषा से कोई खास लगाव नहीं है. वे केवल अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए आपको भड़काना चाहते हैं.’
इस बीच, मनसे पार्टी कार्यकर्ताओं ने भी मुंबई में शिवसेना भवन के पास इस कदम का विरोध करते हुए पोस्टर लगाए, जिसमें लिखा था, ‘हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदी नहीं!’ पत्रकारों से बात करते हुए कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा, ‘संविधान में लिखा है कि राज्य को अपनी मातृभाषा को आगे बढ़ाने का अधिकार है. उन्हें इसे (हिंदी) नहीं लाना चाहिए, यह वैकल्पिक होना चाहिए, उन पर थोपा नहीं जाना चाहिए. मराठी भाषा का अपना महत्व है. अगर नरेंद्र मोदी जी और अमित शाह जी नियमित रूप से हिंदी बोलते हैं, तो यह कहना गलत है कि सभी को ऐसा करना चाहिए. अगर वे महाराष्ट्र आना चाहते हैं तो उन्हें मराठी भी सीखनी चाहिए… पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव 16 भाषाएं बोलते थे. मनमोहन सिंह 11 भाषाएं जानते थे.’
महाराष्ट्र सरकार का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में एक नगरपालिका के साइनबोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल पर फैसला सुनाते हुए देश में भाषाई विविधता की वकालत की है. शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया जिसमें अकोला जिले के पातुर में नगर परिषद की नई इमारत के साइनबोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल की अनुमति दी गई थी.
अदालत ने यह भी कहा कि यह मानना ’वास्तविकता से बहुत दूर जाना’ है कि हिंदी हिंदुओं की भाषा है और उर्दू मुसलमानों की. पिछले कई सालों से नरेंद्र मोदी सरकार और उससे जुड़ी राज्य सरकारों द्वारा हिंदी को वास्तविक राष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करने के प्रयासों का कड़ा विरोध हो रहा है. हाल ही में केंद्र सरकार की कई वेबसाइटों ने भी हिंदी वेब एड्रेस का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन हिंदी को सरकारी भाषा के रूप में स्थापित करने के मोदी सरकार के कदम पर मुखर रूप से हमला कर रहे हैं. उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि हिंदी ने ‘कई भारतीय भाषाओं को निगल लिया है’, जिनमें वे भाषाएं भी शामिल हैं जो पहले उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे हिंदी भाषी राज्यों में बोली जाती थीं. कड़े विरोध के बीच, केंद्र सरकार ने धमकी दी है कि यदि तमिलनाडु ने त्रि-भाषा फार्मूला लागू नहीं किया तो वह समग्र शिक्षा अभियान के तहत राज्य को वित्त पोषण देना बंद कर देगी.