तीन दशक में महँगाई आसमान पर : यात्रा, दवा-इलाज ही नहीं, जनता से दाल-रोटी भी छिनी

1982 की तुलना में आज साधारण चावल 2 रुपए से 32 रुपए, मसूर की दाल 4 रुपए से 120 रुपए, सरसों का तेल 12 रुपए से 200 रुपए किलो पहुँच गया तो डीजल-पेट्रोल 100 रुपए के पार चला गया।…
उदारीकारण यानी मेहनतकश जनता की बर्बादी के तीन दशक -नौवीं किस्त
महँगाई बेलगाम : का खाऊँ, का पियूँ, का ले परदेश जाऊँ
देश में उदारीकरण की नीतियाँ लागू होने के साथ महँगाई कुलाँचें भरने लगी। आम ज़िंदगी के हर समान- चाहें जीने के लिए दाल-चावल-आटा-तेल हो, दूध-सब्जी हो या यात्रा हो अथवा दवा-इलाज-शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं; कीमतें दिन दूनी रात चौगुनी तेजी से बढ़ती गई, जो अब रोज नए मनमाना रिकार्ड बना रही है। साल दर साल रफ्तार लेते हुए इसने नीचे की व्यापक आबादी ही नहीं, माध्यम वर्ग को भी बेहाल कर दिया है।
‘बहुत हुई महँगाई की मार, आबकी बार मोदी सरकार’ नारे के साथ 2014 से सत्ता में काबिज मोदी सरकार के 7 सालों के दौरान महँगाई आम जनता पर कहर बनकर टूट पड़ा है! करोड़ों लोगों का रोज़गार छिन जाने और आमदनी घट जाने के कारण इस महँगाई ने देश की तीन-चौथाई से भी अधिक आबादी के सामने जीने का संकट पैदा कर दिया है। खाने-पीने और बुनियादी ज़रूरतों की चीज़ों की महँगाई बेरोकटोक बढ़ी है।
आज देश में पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के साथ खाद्य पदार्थों के दाम बेलगाम हैं। पेट्रोल-डीजल 100 रुपये के पार चली गई तो खाद्य तेल डेढ़ गुना महँगी हुई। देश की आम जनता की आमदनी लगातार गिरती जा रही है, ऊपर से महँगाई की बम्पर मार ने कमर पूरी तरह से तोड़ दी है। पिछले डेढ़ साल से कोरोना से जंग लड़ रहे आम आदमी के लिए अब जीना दूभर हो चुका है।
#उदारीकरण के तीन दशक – धारावाहिक-
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सन 1982 की तुलना में आज साधारण चावल 2 रुपए किलो से 32 रुपए किलो, 4 रुपए किलो मसूर की दाल 120 रुपए, सरसों का तेल 12 रुपए से 200 रुपए, चाय की पत्ती 26 रुपए से 350 रुपए और चीनी 7 रुपए किलो से 40 रुपए किलो पहुँच गया। (तालिका देखें)

खाद्य तेल, दाल व अन्य अनाज आसमान पर
बीते तीन दशक के दौरान आम जनता से जुड़ी हर चीज की कीमतें बेइंतेहा बढ़ गईं हैं। गरीबों के लिए भोजन पहले ही मोहाल था जो अब भुखमरी को और बढ़ा दिया है। अब तो माध्यम तबके की थाली से भी दाल-सब्जी छिन चुकी है। दवा-इलाज, यात्रा, शिक्षा सबकुछ मुनाफे की हवस का शिकार होता गया है।
फरवरी, 2021 तक महज तीन महीनों में खाद्य तेलों के दाम करीब 50 रुपए प्रति लीटर बढ़ गए हैं। इसी दौरान तमाम खाद्य पदार्थों के दाम में एकदम उछाल आ गया। खुदरा बाजार में खाद्य तेल (सरसों के तेल, रिफाइंड एवं डालडा घी) के दाम पिछले साल की तुलना में करीब डेढ़ गुना बढ़ गए है। ब्रांडेड सरसों का तेल 2020 में 95 से 105 रुपए प्रति लीटर बिक रहा था वह अब 190-200 रुपए प्रति लीटर की दर से भी अधिक कीमत पर बिक रहा है।
इसके साथ ही दालों के दाम भी 20 से 30 फीसद तक बढ़े हैं। दालें व प्याज तक आम जनता की पहुँच से दूर हो गया। थोक महंगाई दर पिछले एक साल में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई है। फरवरी, 2021 में थोक महँगाई दर 2.03 फीसदी पर पहुंच गई है, जो फरवरी 2020 के बाद सबसे अधिक है।
#उदारीकरण के तीन दशक – धारावाहिक-
डीजल-पेट्रोल-गैस : कीमतें मनमाना
मोदी राज में पेट्रोल और डीजल की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचकर रोज इतिहास रच रही हैं तो रसोई गैस; सीएनजी, पीएनजी, एलपीजी की कीमतें भी मनमाने तरीके से रोज रिकार्ड बना रही हैं, आसमान छू रही हैं। यह हाल तब है जब दुनिया में कच्चे तेल की कीमतें काफी नीचे आ चुकी हैं।
सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडर के दाम भी 1 जुलाई से 1 सितंबर के बीच तीन बार बढ़ाने के साथ 2021 के 8 महीने में 190 रुपए बढ़ चुका है। मार्च 2014 में 410 रुपए का सिलेंडर आज दुगने से ज्यादा कीमत पर मिल रहा है। मई 2020 में 581 रुपए की कीमत वाला रसोई गैस सिलेंडर इस समय करीब 900 रुपये पहुंच गए है। सब्सिडी भी घटते हुए 38 रुपये प्रति सिलेंडर कर दी है, कई उपभोक्ताओं के खाते में वह भी नहीं जा रही है।
पेट्रोल और डीजल की कीमतें भी आसान छू रही हैं। अभी (6 अक्तूबर, 2021) पेट्रोल के दाम 111 रुपये प्रति लीटर के पार पहुंच गए है। वहीं, डीज़ल भी अब सेंचुरी लगा चुका है। एचपीएल की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, 6 अक्टूबर को दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल के दाम बढ़कर 102.94 रुपये हो गया, जबकि भोपाल में 111 रुपए हो गया। वहीं, डीज़ल की कीमतें 91.43 रुपये प्रति लीटर है।
दूसरी ओर सीएनजी, पीएनजी की कीमतें भी तेजी से बढ़ रही हैं। बीते 6 अक्तूबर को दिल्ली में सीएनजी की कीमतें 47.48 रुपये जबकि गुरुग्राम में 55.81 रुपए प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई। लोगों के घर तक पाइप के जरिए पहुंचने वाली पीएनजी गैस की कीमत 33.01 रुपये प्रति घन मीटर हो चुका है।
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बिजली-इलाज-शिक्षा-यात्रा जनता की पहुँच से होती दूर
पिछले तीन दशक में बस और रेल यात्राएं लगातार महँगी हुई हैं। मोदी युग में यह मानमानेपन पर पहुँच गई। सड़क परिवहन लगातार महँगी होती गई है। महँगे डीजल-पेट्रोल ने तो यात्रा करना लगातार कठिन बनाता गया है, वहीं टोल टैक्स के बहाने बस भाड़ा भी बेलगाम है, तो टैक्सी भाड़ा भी बेहद महँगा हो गया है।
कॉरपोरेट के हवाले करने की तैयारी के साथ रेल सफ़र जनता की पहुँच से दूर होती चली गई है।
कोरोना समय में रेल को सेवाएं बहाल हुईं तो ‘स्पेशल’ ट्रेन के नाम पर ज्यादा किराया वसूली का धंधा शुरू हुआ। अब सवारी गाड़ियों को एक्सप्रेस व एक्सप्रेस को सुपरफास्ट का दर्जा देकर पॉकेट पर डकैती बढ़ी है। स्टेशन पुनर्निर्माण के बहाने सरचार्ज; प्लेटफ़ॉर्म टिकट से लेकर खाने-पीने तक में लूट का धंधा तेजी पर है।
आम जनता को मिलने वाली बिजली की दरों में लगातार बढ़ोत्तरी और तरह-तरह के सरचार्ज से बिजली बेहद महंगी होती गई है। स्कूल व कॉलेज की फ़ीसें तेजी से बढ़ती जा रही हैं। तकनीकी और मेडिकल की पढ़ाई आम जनता की पहुँच से काफी दूर चली गई है।
यहाँ यह गौरतलब है कि बाजपेयी सरकार के दौरान शिक्षा व चिकित्सा में “सुधार” के लिए विशेषज्ञों की जगह पहली बार दो पूँजीपतियों- कुमार मंगलम बिड़ला व मुकेश अंबानी की कमेटी बनी थी। जाहीर है उनकी संस्तुति भी मुनाफे के हित में ही थी।
बिड़ला-अंबानी कमेटी शिक्षा के सवाल पर कहती है कि ‘चूंकि उच्च शिक्षा लोग अपनी कमाई के लिए करते हैं, इसलिए उन छात्रों से पूरी फीस लिया जाना चाहिए।‘
कमेटी के केवल इस एक सुझाव से ही हकीकत को समझ जा सकता है। और इसी दिशा में वसूली आगे बढ़ते हुए मोदी युग में भयावह हो गया है।
कुलमिलकर आज चारों तरफ से महँगाई की मार और कीमतों की बमबारी के बीच आम मेहनतकश जनता के लिए जीना भी दूभर हो गया है, जबकि माध्यम वर्ग भी बुरी तरह त्रस्त है।
बैंकों द्वारा तेजी से बढ़ता वसूली का धंधा
1991 तक आम उपभोक्ताओं से बैंक कोई चार्ज नहीं लेता था, बल्कि बचत खातों पर ज्यादा ब्याज मिलता था। लेकिन धीरे-धीरे यह उलटता गया। निजी बैंकों के प्रवेश के साथ जनता से वसूली तेजी से बढ़ गई। बचत खातों में न्यूनतम जमा का कोई प्रावधान नहीं था, लेकिन अब न्यूनतम राशि की सीमा लगातार बढ़ती गई और यह कम होने के बहाने उपभोक्ता की राशि से बैंकों द्वारा कटौती बेलगाम बन गई।
एटीएम से लेनदेन पर इंटरचेंज फीस तथा कस्टमर चार्ज और चेकबुक इस्तेमाल चार्ज लगातार बढ़ाकर, बचत खातों पर ब्याज दरों व ईपीएफ ब्याज दरों को लगातार घटाकर तथा एसएमएस चार्ज सहित तरह-तरह के सरचार्ज लगाकर आम उपभोक्ता के पॉकेट पर लगातार डकैती बढ़ती गई है, जिससे ज़िंदगी और दुश्वार बन गई है।
‘जनता की सेवा’ के नाम पर दोहरे टैक्स का बोझ
इन 30 सालों में आम जनता पर टैक्स की दोहरी मार भारी पैमाने पर बढ़ी है। प्रत्यक्ष कर की लूट तो जारी है ही, साथ ही अप्रत्यक्ष कारों के बहाने डकैती लगातार तेजी से बढ़ी है।
प्रत्यक्ष कर वह है जो सीधे लगाया जाता है जैसे आयकर जमीन या संपत्ति खरीद-बिक्री कर आदि। दूसरा है अप्रत्यक्ष कर। ऐसे कर जो किसी वस्तु या सेवा के बदले अप्रत्यक्ष रूप से वसूले जाते हैं। जैसे- वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी), बिक्री कर, सीमा शुल्क, शॉपिंग, रेस्टोरेंट में खाना, यात्रा टिकट, रोड टैक्स, सरचार्ज, इत्यादि।
इन वर्षों में आम जनता पर सेवा व सुविधा के नाम पर अप्रत्यक्ष करों का बोझ लगातार बढ़ता गया है। ज़िंदगी का लगभग हर साधन अब तरह-तरह के टैक्स के दायरे में आ चुका है, जो जनता के ऊपर बड़ा बोझ बन चुका है।
ये टैक्स वसूल जाता है जनता से और उसका लाभ सब्सिडी और रियायतों के बहाने पूँजीपतियों की थैली में जाता है। और यह सबकुछ ‘विकास’, देशी-विदेशी निवेश और ‘जनता की सेवा’ के नाम पर हो रहा है।
क्रमशः जारी…
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